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बुधवार, 29 अप्रैल 2009

निर्णय करें ................क्या मुझे लिखना छोड़ देना चाहिए?

दोस्तों,

आज मैं मजबूर होकर आपके दरबार में आई हूँ .अब आप ही निर्णय करें और बताएं मुझे क्या करना चाहिए।
मेरे एक शुभचिंतक हैं रावेन्द्र रवि जी.............वो बेचारे मेरे लेखन से बहुत त्रस्त हैं। जब भी मौका मिलता है कहने से नही चूकते.उन्हें मेरा लेखन कभी भी पसंद नही आया । मेरे ब्लॉग पर ही कई बार मुझे उनकी टिप्पणियां मिलीं मगर मैंने उन्हें डिलीट नही किया क्यूंकि कहने का सभी को अधिकार है । जब तक कोई बताएगा नही तो कमियां कैसे पता चलेंगी । बस इसीलिए उन्होंने जो कहा मैंने हमेशा वो वैसा ही प्रकाशित भी किया । मगर अब तो उन्हें मेरी की हुई टिप्पणियां भी पसंद नही आतीं या कहिये जहाँ भी मैं टिपण्णी करती हूँ वहीँ जाकर मेरे लेखन के बारे में जी भरकर लिखते हैं ।

मैंने अपने प्रोफाइल में शुरू में ही लिखा है कि जो भी मन में आता है मैं वो ही लिखती हूँ । ये सब मैं आत्संतुष्टि के लिए लिखती हूँ । और मेरे ख्याल से आत्मसंतुष्टि के लिए कुछ भी करना कोई गुनाह तो नही है , कम से कम वो तो जिससे किसी का कुछ बुरा न हो। वैसे भी हम ऐसे देश के नागरिक हैं जहाँ कानून और संविधान भी हमें कुछ भी कहने की इजाज़त देता है। तो ऐसे में अगर मैं अपने सुख के लिए कुछ करती हूँ तो इसमें किसी को भी कोई परेशानी तो नही होनी चाहिए। मेरे बारे में ग़लत बातें कहकर मुझे लिखने से रोकना या मेरे लिखे को ग़लत कहना ------------क्या यह मेरे अधिकारों का हनन नही है।
एक बात और कहना चाहती हूँ .............यह जो रवि जी हैं ...........अपने ब्लॉग पर अपना लिखा कम और दुनिया का ज्यादा लगाते हैं..................क्या ऐसे मैं उन्हें कुछ कहने का अधिकार है? जब आप अपना नही लिख सकते तो मेरे ख्याल से दूसरे को भी कुछ कहने का अधिकार नही बनता । कम से कम उन लोगों को तो नही कह सकते जो कोशिश तो करते हैं अपने दिल की बातों को शब्द देने की । मेरे ख्याल से ...........शीशे के घर में रहने वालों को दूसरे पर पत्थर नही फेंकने चाहिए।

हों सकता है मुझे हिन्दी के व्याकरण पक्ष का कुछ कम ज्ञान हो ,शायद मैं छंद , दोहे,सोरठे,गीत या ग़ज़ल के बारे में इतना कुछ न जानती होऊं ..........मगर किसी के दिल से निकले जज़्बात तो अच्छे से समझती हूँ । और इसीलिए चाहती हूँ .....................अब आप ही निर्णय करें .............क्या मैं गलत हूँ?
क्या मुझे लिखना छोड़ देना चाहिए?

38 टिप्‍पणियां:

L.Goswami ने कहा…

आराम से लिखिए ..जिनकी टिप्पणी पसंद न हो मोडरेट कर दीजिये ..सबको अपनी बात कहने का हक़ है

Rachna Singh ने कहा…

Remove this post why give him somuch importance
you hv already thrashed him on mayank post
if you have to quit bloging do it because you want to
why do you want others to tell you what to do

this is a very unhealthy trnd in hindi bloging to tell every one we are quiting and then stay on
dont make your self a puppet

mohit parashar ने कहा…

mai pahle aapse sawal karta hoon ki ravinderji aapke lekhan ko hamesha padte kuin hain. yeh koi aur decide nahi karega, ki aapko likhana hai ya nahi.

vijay kumar sappatti ने कहा…

vandana ji

aap likhiye ... aur likhiye ... man ke lekhan ko kya rokna hai ji .. bus bahne do man ki dhaara ko , kyonki yahi dhaara ek din raadha ban jayengi sahitya ke krishn ki.....

In sab baaton par kya sochna .. just chill boss .. blogging ki duniya me bahut kuch bola jaata hai , likha jaata hai .. meri to ye request hai saare bloggers se ki , sab ek dusare ka samman kare ... modesty ka dhyaan rakhe...dusro ke baare me ho sake to accha likha.accha kahen . accha bole. ...isme mehnat kam lagti hai .....

dhanywad.

vijay

निर्झर'नीर ने कहा…

मेरे ख्याल से ...........शीशे के घर में रहने वालों को दूसरे पर पत्थर नही फेंकने चाहिए।
hona to ye chahiye ki

patthar ke garon mein rahne valo ko bhi doosro ke gharo mein patthar nahi faikne chahiye.

ek sher yaad aa raha hai kisi ne kaha hai ki..

kon rota hai kisi or ke dukh ki khatir !
har kisi ko apni hi kisi baat pe rona aaya !!

kisi le liye koi bhi apne man ko nahi maarta or maarna bhi nahi chahiye..ye hamari galti hai ki hume jo pasand na ho uske paas hi na jaye.

संगीता पुरी ने कहा…

किसी के कहने पर लिखना क्‍यूं छोड देंगी .. अपने भावों की अभिव्‍यक्ति करने का आपको अधिकार है .. जिसे पसंद है पढे .. जिसे पसंद न हो न पढें .. और क्‍या कहा जा सकता है ?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वन्दना जी!
‘चरैवेति’ के सिद्धान्त को अपना कर चलती रहो।
लोग क्या कहते हैं इस पर ध्यान न दो।
दुनिया में सभी तरह के मनुष्य होते हैं।
परन्तु हमें और आपको तो अपने ही मार्ग पर चलना है।
उनको वही मार्ग अच्छा लगता है।
मन को एकाग्र रखो।
आपने उन्हें उत्तर दे दिया।
यदि वो अपना मार्ग बदलना चाहेंगे तो बदल लेंगे।
वैसे आजकल ब्लागिंग में ऐसी टिप्पणियों का
प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है।

बेनामी ने कहा…

वन्दना जी,

मज़बूरी और दरबार में आना, आपके इन शब्दों से थोडा सा असहज हो गया.
आप अपनी लेखनी जारी रखिये क्यूँकी ये आपकी भावना हैं, विचार है अनुभव है और हिन्दी के खजाने में बढोत्तरी है. रही बात लोगों के क्षुद्र व्यवहार की तो ये तो होना ही था और होगा भी.गालिब को लोगों ने नहीं बख्शा सो ये तो चलन रहा है हमारे यहाँ का.
आप बेधड़क नि:संकोच बस लिखें. लोगों को बेबाक होने दें और आप भी बेबाक रहें मगर इस से आपकी लेखनी ना प्रभावित हो.

शुभकामना.

निर्मला कपिला ने कहा…

vandana ji ye to achhi bat hai shaayad vo aapko ek acchhi lekhika ke roop me dekhna hi chahte ho vese aisi baat ko ek chellenge ki tarah len aise kal koi kahe ki apka jeena hame achha nahi lagata to kya aap jeena chhod dengi apni rah par aaram se chalte rahiye

बेनामी ने कहा…

आप लिखना जारी रखिये और किसी अनचाही आलोचना पर कोई प्रतिक्रया न दें.

बस

Harshad Jangla ने कहा…

Please continue to write and ignore the unwanted comments.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

रंजू भाटिया ने कहा…

आप अपना काम करिए लिखने का वह अपना काम करेंगे टिप्पणी देने का ....यूँ हताश होने की जरुरत नहीं हैं ...

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

aap comments ko le ke etni tense kyun hai.....just leave it....n keep writing..

Vinay ने कहा…

चलिए आपके मन के भाव स्पष्ट कर देता हूँ कि कोई भी विधा हमने बनायी है न कि हम किसी विधा के लिए बने हैं, छंद क्या है कोई चार लोग मिलकर यह फ़ैसला नहीं कर सकते कि यही छंद है और यही लय। जो आपने जान लिया वह छंद और लय, जो हम अपनी तरह से लिखते रहे सो मूर्ख कहने वाले कम नहीं।

आप लिखिए, कोई भी पंक्ति गीत बन सकती है, चाहे वह छंद में हो या न हो... मेरे पास ऐसे कई उदाहरण हैं।

---
तख़लीक़-ए-नज़रचाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलेंतकनीक दृष्टा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आप सिर्फ अपने लेखन पर ध्यान दें। कल किसी को आपका नाम अच्छा नहीं लगेगा, परसों किसी को पहरावा, किसी को कुछ, किसी को कुछ तो? यदि लेखन में कोई कमी होगी तो सलाह लीजिए। हताश ना हों। मैदान नहीं छोड़ा करते।
वैसे अच्छा नहीं लगता कहना कि मेरा ब्लाग देखें, पर आप को इसलिये कह रहा हूं क्योंकि आपके प्रश्न से संबंधित है मेरी आज की पोस्ट। समय निकाल देखियेगा।

अनिल कान्त ने कहा…

यहाँ सब लोग अपने दिल की तसल्ली के लिए लिखते हैं ....जो दिल से लिखा जाए वो अच्छा ही होता है ....और ज्यादातर कौन से पेशेवर लेखक और कवि हैं ....वो जो लोग भी हैं कहते हैं कहने दो ....लोगों का क्या है ...

आप यूँ ही दिल का जो भी हो लिखते रहिये ...पढने वाले बहुत हैं ...जिन्हें परेशानी हो वो न पढें ...

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

वंदना जी,
ज़्यादा परेशान मत होइए!
अभी आपने लिखना शुरू ही कहाँ किया है,
जो छोड़ने की बात कर रही हैं!

क्रमश: ... ... .

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

likhtey rahiye.mayus hon to mere blog per lekh padein-aatmviswas key sahare jeetein jindagi ki jung-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

Anil Kumar ने कहा…

यही तो आपकी परीक्षा है. यदि इतनी सी बात पर लिखना छोड़ देंगी तो परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाएँगी. बेधड़क लिखिए - जितना अच्छा लेखक होता है उसके उतने ही अधिक आलोचक भी होते हैं.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

VANDANA JI!
IS POST KO LAGA KAR AAPAKO VAJOOD KA AABHAAS HO HEE GAYAA HOGAA.
COMMENTS KA AMBAAR LAG GAYAA HAI.
SAB BLOGGERS KEE SHUBH-KAAMNAAYEN AAPKE SAATH HAIN.

Anil Pusadkar ने कहा…

इतना ध्यान देने की ज़रूरत नही है। वैसे भी ब्लोग परिवार के लोग ज़ल्द समझ जाते है कि माजरा क्या है। आप लिखते रहिये,आलोचनाओ की ओर ध्यान मत दिजिये,एक समय आयेगा वो खुद थक कर चुप हो जायेगा।

vandana gupta ने कहा…

doston,
aap sab ka tahedil se shukriya meri hoslaafjai ke liye.
aap sabne jo bhi advice di hain main un sab par dhyan doongi aur aapke iradon par sahi utarne ki poori koshish karungi.
ek baar phir se .........hardik dhanyavaad.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

कोई भी इन्सान हर किसी को खुश नही कर सकता. अगर किसी शख्स के कमेंट आपको पसंद नही हैं या लग रहा है कि वो निजी खुन्नस के चलते ऐसे कमेंट कर रहा है तो उसे मोडरेट करने का हक आपको है.

आप क्युं उसे इतना भाव दे रही हैं? आखिर आपका सोच आपका है, और जरुरी नही की हर कोई उससे सहमत हो? जो आपके विचारों से साम्य ना रखता हो वो अपने रास्ते लगे आप अपने रास्ते रहिये.

इन परिस्थितियों से कभी ना कभी सबको सामना करना पडा है, ज्यादातर लोग इसी लिये कमेंट मोडरेशन की सुविधा का लाभ ऊठाते हैं

बाकी तो सब आपकी मर्जी पर है, आप भी स्वतंत्र हैं फ़िर क्यों इस बात का टेनशन ले रही हैं?

रामराम.

mark rai ने कहा…

vandana jee aapke blog par pahli dafa aaya hoon ..kaaphi achchha laga...aur aisi post dekhkar bada hi aaschary hua....kisi dusare ke kahne se mai to likhna nahi chhod sakta ...mujhe bhi jo dil me aata hai wahi likhta hoon ...aap bhi likhiye ham padhne ko taiyaar hai ..

उन्मुक्त ने कहा…

अरे किसी की टिप्पणी पर क्या सोचना। कमेंट मॉडरेशन चालू रखिये। बेकार की टिप्पणी को मत प्रकाशित कीजिये।

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

मुझे दूसरों के सामान से अपना घर सजानेवाला कहनेवाली वंदना जी क्या मुझे यह बता पाएँगी कि अपने चेहरे पर किसी और का चेहरा लगानेवाले को क्या कहते हैं?

ऐश्वर्य राय का चेहरा अपने चेहरे पर लगाकर अंतरजाल पर विचरण करनेवाली वंदना जी और उनके सभी समर्थकों के संज्ञान में यह बात अच्छी तरह से आ जानी चाहिए कि मेरा एकमात्र ब्लॉग "सरस पायस" अंतरजाल पर एक हिंदी साहित्यिक पत्रिका के रूप में जाना जाता है!

बेनामी ने कहा…

ढीठपने की हद है,
मित्र रवि आपकी लोचना और आलोचना दोनों ही अद्भुत है, आप साहित्यकार हैं लेखक हैं या टीका टिपण्णीकार हैं जो भी हों, आचरण से नि:संदेह हिन्दी को शर्मिन्दा कर रहे हैं.
आपका कौन सा ब्लॉग है और उस पर क्या है अगर इसका प्रचार करने के लिए आपको ये रास्ता लगता है तो एक बार फिर से कहूँगा की क्यूँ हमें हमारी हिन्दी के लिए संघर्ष करना पड़ता है. धान के बिना बाली वाले पौधे के बजाय धान रहित बाली के पौधे बनिये.
आपके ब्लॉग पर लोग लेखनी से जायेंगे ना की इस तरह के छिछोडे हडकत से.
लेखनी सशक्त कीजिये.

लोगों के व्यक्तिगत जीवन में झांकना बंद कीजिये, और बौद्धिक बनिये, वैसे इस बौद्धिकता का हिंदी में सर्वथा आभाव है जिसका खामियाजा हम संघर्षरत हो कर चुका रहे हें.

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

वंदना जी,

आदरणीया निर्मला कपिला जी की टिप्पणी को आठ-दस बार ध्यान देकर पढ़ लीजिए, शायद आपको सही रास्ता दिखाई दे जाए!

आपने स्वयं ही मुझे विवश कर दिया है आपसे अनेकों प्रश्न पूछने के लिए!

अब चुप मत रहिए! मैं एक बार में एक ही बात पूछूँगा! आप आराम से एक-एक करके बताती रहिएगा!

श्यामल सुमन ने कहा…

हौंसले के साथ बढ़ना और सृजन है जिन्दगी।
साथ होंगे सत्य के सब और होगी बन्दगी।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

रजनीश जी,
अभी कुछ टिप्पणियाँ और कर लीजिए ... ... .

क्रमश: ... ... .

vandana gupta ने कहा…

mr ravi
jawab to dena nahi chahti tumein kyunki tum is kabil nhi ho magar socha tumhein bata hi dun ki yeh jaroori nhi ki har koi apni pic hi lagaye.
jise jo pasand hoga wo wahi lagayega . aap kisi ko force nhi kar sakte .
vaise aap itne bachain kyun hain meri pic dekhne ke liye?
aur bhi blogger mitr hain unmein se to kisi ne kabhi nhi dekhna chaha aur na hi aapki tarah ochhapan dikhaya.

admin ने कहा…

मेरी राय में ऐसी टिप्‍पणियों को माडरेट करने की आवश्‍यकता नही है। अगर कोई व्‍यक्ति आपकी कमियॉं बता रहा है, तो उसे सहर्ष स्‍वीकार कीजिए और उन्‍हें सुधारने का प्रयत्‍न करिए। इससे आपकी लेखनी में आशातीत सुधार होगा।

-----------
TSALIIM
SBAI

Preeti tailor ने कहा…

likhna yaani apni anubhuti ko kalambadhdh karna hota hai ..jaroori nahin ham kisiko khush ya nakhush karne likhe .dusari baat apni bhavnao ko kalam bandh karne ki shakti har kisike pass nahi hoti...agar hamare dil ko achcha lage to jaroor likho..dil ke bhavon ko abhivyakt karna aur sabke saath is tarah bantna bhi chahiye... aur koi baat mat socho vandanaji.....
keep it up ...
ha bhavnaye koi chhand aur alankar ki mohtaj nahin hoti vo to pahadi jarana hai bahne dijiye ...

"अर्श" ने कहा…

HA HA HA YAHAAN EK ALAG HI JANG CHHIDI HUI HAI... KRIPYA KAR KE AISA NAA KAREN... BLOG KO SWATANTRA RAHNE DE APNE LEKHAN SE... VANDANAA JI AAP EK GANTH BAANDH KE RAKH LE KI AGAR AAPKI AALOCHANAA HOTI HAI TO HONE DE ISASE DARE NAHI ... AALOCHANAA KO APNE SANGSAATH KAREN AUR DEKHE KI KYA KAARANA HAI... MAGAR ANYATHAA KI BAATO KO NAHI... USE APNE SE DUR RAKHEN... SAHI YAHI HAI KE AAJ KE SAMAY ME AALOCHANAA ACHHE LOGON KI HI HOTI HAI... AAP KRAMAAGAT ROOP SE LIKHE KISI KI NAA SUNE...

ARSH

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

आंधियां भी चले और दिया भी जले ।
होगा कैसे भला आसमां के तले ।

अब भरोसा करें भी तो किस पर करें,
अब तो अपना ही साया हमें ही छले ।

दिन में आदर्श की बात हमसे करे,
वो बने भेड़िया ख़ुद जंहा दिन ढले ।

आवरण सा चढ़ा है सभी पर कोई,
और भीतर से सारे हुए खोखले ।

जिंदगी की खुशी बांटने से बढ़े ,
तो सभी के दिलों में हैं क्यों फासले ।

कुछ बुरा कुछ भला है सभी को मिला ,
दूसरे की कोई बात फ़िर क्यों खले ।

आखिरी शेर में इसका जवाब है।अब तो ये लडाई बन्द हो.....
हर सप्ताह हर ब्लाग पर नई रचनाएं डाल रहा हूँ।आप के टिप्प्णी का इन्तज़ार है.....
for ghazal ----- www.pbchaturvedi.blogspot.com
for geet ---www.prasannavadanchaturvedi.blogspot.com
for Romantic ghazal and songs-- www.ghazalgeet.blogspot.com

Sajal Ehsaas ने कहा…

aisi kisi baat ka issue banna hi nahi chhaiye...ek hadd ke baad ye baat saaf ho jaati hai ki aalochna ek personal roop leti ja rahi hai,uske baad ye nahi maayne rakhta ki galat kya hai,apitu ye ki galat kaun hai...aise mein bas isko nazar andaaz kare aur agar is tarah ke bartaav ka saamna karna pad raha ho to shauk se saamne waale ke comments ko delete kare...kyon apne mooh ka zaayka kharaab karnaa....

ek angrezi ki pankti yaad aa gayee:

what is greatness,when not accompanied by humility....
aap kitn ebhi bade lekhak ho,bartaav to sahi hona hi chhaiye :)

Navin ने कहा…

Vandana ji...

Aap apne name ke according sirf shabdo ki vandna kijiya....un ka roop khud-b-khud nikhar jayaga....Garden me ...differents kinds ke phool hote hai...and sath me kuch caktus bhi...to kya malli un caktus ka khayal rakhna chod deta hai nhi na....balki un ka jayada care karta hai kiu ki un se hi to phoolo ki raksha hoti hai.....it means..suno sab ki...karo dil ki....is liya sari duniya ke liya aap likhna bhle hi chod de...but for my sake...apne liya nhi.....at least jo dil ko sakoon de...us se bhi naata nhi todna chyaee....agar sab log mahan poet hi baan jaye to...un ki galtiya kaun nikalaga....i hope u understand what i mean....

shyam gupta ने कहा…

वन्दना जी,

तू गाता चल ए यार ,कोई कायदा न देख,
कुछ अपना ही अन्दाज़ हो ,खुद्दारी गज़ल होती है ।