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सोमवार, 27 अप्रैल 2009

क्या खोजा क्या पाया

दोस्तों ,

ज़िन्दगी पर आज मैं अपनी ५० वीं पोस्ट डाल रही हूँ , उम्मीद है हमेशा की तरह इसे भी आपका प्यार मिलेगा।


आज खोजने चली मैं
क्या ? पता नही
पर , फिर भी चली मैं
हर तरफ़ इक
भीड़ नज़र आई
भागती , दौड़ती
ज़िन्दगी नज़र आई
न जाने किस उधेड़बुन में
गुजरती ज़िन्दगी
नज़र आई
अपनी ही उलझनों में
उलझती ज़िन्दगी
नज़र आई
कभी खुशियों को
तो कभी ग़मों को
छूती , ज़िन्दगी नज़र आई
तो कहीं
वक्त रुका हुआ नज़र आया
जैसे कहीं ठहर गया था
कहीं कोई स्पंदन न था
अनुभूतियाँ सब रुक चुकी थीं
अवलंबन सब टूट चुके थे
अपने सब पीछे छूट चुके थे
तो कहीं
सिर्फ़ खामोशी ही नज़र आई
सागर सी गहराई नज़र आई
वक्त की सुइयों पर टिकी
निगाहें ही नज़र आयीं
पल -पल को काटता
वक्त नज़र आया
अकेलेपन को झेलता
वो दर्द नज़र आया
आज खोजने चली मैं
तो पता नही
क्या खोजा क्या पाया

14 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

सचमुच जिंदगी इसी उधेड़बुन में तो चलती है ....कभी रुकी रुकी सी ...कभी लड़खादाकर चलती सी ...तो कभी सरपट दौड़ती सी

आपने बहुत अच्छी कविता लिखी हैं ....

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया लिखा। जिन्दगी इसी तलाश का नाम है।क्या मिला क्या खोया ।यह आखिर तक समझ नही आता।

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

vandana ji, aapko 50 th post par dher saari mubarakbaad.aur is dard bhari abhivyakti par badhai.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वन्दना जी !
सबसे पहले जिन्दगी ब्लॉग पर 50वीं पोस्ट
(SILVER JUBLEE) के लिए बधाई।
आपने में कुछ खोया ही बल्कि पाया ही है।
आपकी लेखनी में परिपक्वता आयी है।
शैली में परिमार्जन और सुधार आया है।
निरन्तर लिखती रहें।

Arvind Mishra ने कहा…

संजीदगी लिए एक कविता !

Vinay ने कहा…

सुन्दर अति सुन्दर...

----
तख़लीक़-ए-नज़रचाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलेंतकनीक दृष्टा

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

वंदना जी
आपको जैसी भी जिंदगी नज़र आई
हर तरफ कमी ही कमी नज़र आई
अपना नज़रिया बदल कर तो देखो
लगेगा तुम्हें खुशियों की बरात आई
-विजय

अजित त्रिपाठी ने कहा…

bilkul sahi kaha aapne..
khbhi khushi to kabhi gum
kabhi sukh se to kabhi dukh se aankhe num...
woqt ki teeliyon me fasi zindgi ke hi hisse hain...
bahut achhi kavita...

अजित त्रिपाठी ने कहा…

bahut achhi kavita
badhayi sveekaren...

admin ने कहा…

शायद इसी का नाम जिन्दगी है।

----------
S.B.A.
TSALIIM.

kavi kulwant ने कहा…

khoobsurat..

Preeti tailor ने कहा…

jindagi ko saalon me nahin dino me jiyo to har subah nayi subah bankar samne aati hai ...ek ati sundar kashmakash

vijay kumar sappatti ने कहा…

vandana ,

sabse pahle , is 50th post ke liye bahut bahut badhai ..

aur is baar jo likha hai , wo 50th post ke liye bilkul anuroop hai .. aur ye bahut hi acchi rachna hai ..

poem ka thought accha hai ,undertone bhi serious hai , flow accha hai , shabdo ka chayan bhi bahut accha ban padha hai , aur overall , aapne is poem ko ek sanvedinsheel poem banane me poori mehnat laga di hai .. i aprreciate this .

vey good work of words.
badhai sweekar kare..

vijay

रश्मि प्रभा... ने कहा…

इस कविता को अपनी आवाज़ में अपने संशिप्त परिचय के साथ मेरे पास भेज दें rasprabha@gmail.com