चलूँ कि बहुत अँधेरा है
हाथ को हाथ दिखाई नहीं देता
रूह जाने किस द्वारका में प्रवेश कर गयी है
कि अजनबियत तारी है खुद पर ही...
रुके हुए हों रस्ते जैसे, मंजिलों ने किया हो अलगाववाद का शोर
और किसी रहस्यमयी जंगल में घूम रहा हो मन का मोर ...
संवाद के लिए जरूरी हैं शब्द और शब्दों के लिए जरूरी है अक्षरज्ञान
एक निपट अज्ञानता से सूख चुकी हैं उम्मीद की कड़ियाँ
हिज्जों में बंटा है अस्तित्व
खुद से संवाद के लिए भी मुझमें मेरा होना तो जरूरी है और मैं ...प्रश्नचिन्ह सा टंगा हूँ वक्त के ताखे पर
हाथ को हाथ दिखाई नहीं देता
रूह जाने किस द्वारका में प्रवेश कर गयी है
कि अजनबियत तारी है खुद पर ही...
रुके हुए हों रस्ते जैसे, मंजिलों ने किया हो अलगाववाद का शोर
और किसी रहस्यमयी जंगल में घूम रहा हो मन का मोर ...
संवाद के लिए जरूरी हैं शब्द और शब्दों के लिए जरूरी है अक्षरज्ञान
एक निपट अज्ञानता से सूख चुकी हैं उम्मीद की कड़ियाँ
हिज्जों में बंटा है अस्तित्व
खुद से संवाद के लिए भी मुझमें मेरा होना तो जरूरी है और मैं ...प्रश्नचिन्ह सा टंगा हूँ वक्त के ताखे पर