कुछ तो था उसमे
शायद उसकी आदत
बच्चियों सी जिद पकड़ने की
और फिर खिलौना देख
बच्चे जैसे खुश होने की
या शायद उसकी बातें
जिसमे मैं तो कहीं नहीं होता था
मगर सारा ज़माना अपने संग लिए घूमती थी
हर बात पर खिलखिलाना
हर बात की खाल खींच लाना
हर बात पर एक जुमला कस देना
या शायद उसकी वो दिलकश मुस्कान
जिसमे बच्चों की मासूमियत छुपी थी
जैसे किसी फूल पर शबनम रुकी हो
और इंतज़ार में हो कब हवा का झोंका आये
उसके वजूद को हिलाए
और वो नीचे टपक जाए
ना जाने क्या था उसमे
मगर कुछ तो था
शायद ख्वाब को पकड़ने की उसकी आदत
वो मेरी आँखों में चाँद देखने की उसकी जिद
और फिर उस चाँद को
किताब में सहेजने का उसका जूनून
या शायद एक चंचल हवा का
रुके हुए पानी में
हलचल पैदा कर जाने जैसा
उसका वजूद
कभी लगती
किसी मदमस्त इठलाती
पवन की मीठी बयार सी
तो कभी लगती जैसे
जेठ की तपिश में जलती रूह पर
किसी ने बर्फ का फाया रखा हो
या शायद सागर में तैरती वो कश्ती
जिसमे मुसाफिर को मंजिल की चाह ना हो
बस सफ़र चलता रहे यूँ ही
अनवरत ............अनंत की तरफ
बस उसका साथ हो
कुछ तो था उसमे
तभी आज तक
उसकी सरगोशियाँ हवाओं में सरसरा रही हैं
कानों में गुनगुना रही हैं
रूह पर थाप दे रही हैं
एक संगीत जैसे कोई बज रहा हो
और वो कोई गीत गुनगुना रही हो
तभी उसमे कुछ होता है
जिसे भूल पाना नामुमकिन होता है
कुछ आहटें बिन बुलाये भी दस्तक देती हैं ..............
शायद उसकी आदत
बच्चियों सी जिद पकड़ने की
और फिर खिलौना देख
बच्चे जैसे खुश होने की
या शायद उसकी बातें
जिसमे मैं तो कहीं नहीं होता था
मगर सारा ज़माना अपने संग लिए घूमती थी
हर बात पर खिलखिलाना
हर बात की खाल खींच लाना
हर बात पर एक जुमला कस देना
या शायद उसकी वो दिलकश मुस्कान
जिसमे बच्चों की मासूमियत छुपी थी
जैसे किसी फूल पर शबनम रुकी हो
और इंतज़ार में हो कब हवा का झोंका आये
उसके वजूद को हिलाए
और वो नीचे टपक जाए
ना जाने क्या था उसमे
मगर कुछ तो था
शायद ख्वाब को पकड़ने की उसकी आदत
वो मेरी आँखों में चाँद देखने की उसकी जिद
और फिर उस चाँद को
किताब में सहेजने का उसका जूनून
या शायद एक चंचल हवा का
रुके हुए पानी में
हलचल पैदा कर जाने जैसा
उसका वजूद
कभी लगती
किसी मदमस्त इठलाती
पवन की मीठी बयार सी
तो कभी लगती जैसे
जेठ की तपिश में जलती रूह पर
किसी ने बर्फ का फाया रखा हो
या शायद सागर में तैरती वो कश्ती
जिसमे मुसाफिर को मंजिल की चाह ना हो
बस सफ़र चलता रहे यूँ ही
अनवरत ............अनंत की तरफ
बस उसका साथ हो
कुछ तो था उसमे
तभी आज तक
उसकी सरगोशियाँ हवाओं में सरसरा रही हैं
कानों में गुनगुना रही हैं
रूह पर थाप दे रही हैं
एक संगीत जैसे कोई बज रहा हो
और वो कोई गीत गुनगुना रही हो
तभी उसमे कुछ होता है
जिसे भूल पाना नामुमकिन होता है
कुछ आहटें बिन बुलाये भी दस्तक देती हैं ..............