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सोमवार, 2 जनवरी 2017

मुझे रीतना था

उम्मीद के टोकरे में होकर सवार
आया नववर्ष मेरे द्वार
तो क्या हुआ

मुझे रीतना था , रीत गयी
वक्त ने जीतना था , जीत गया

एक नामालूम , बेवजह सा सपना था
टूटना था , टूट गया
ज़िन्दगी पाँव में पायल डाल जरूरी नहीं झंकार ही करे

मैंने उम्मीदों की शाख पर नहीं सुखाई अपनी हसरतें
क्योंकि
वक्त ने खार सा चुभना था , चुभ गया