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बुधवार, 1 अप्रैल 2009

ये कैसा इंतज़ार !

तुमने दर्द माँगा
मैं दे न सकी
तुमने दिल माँगा
मैं दे न सकी
तुमने आंसू मांगे
मैं दे न सकी
तुमने प्यार माँगा
मैं दे न सकी
तुमने मुझे चाहा
मैं तुम्हें चाह न सकी
दिल की बात कभी
होठों पर ला न सकी
न जाने किस मिटटी के बने हो तुम
जन्मों के इंतज़ार के लिए खड़े हो तुम
ये कैसी खामोशी है
ये कैसा नशा है
ये कैसा प्यार है
जिसे जन्मों का इंतज़ार है
क्यूँ ज़हर ये पी रहे हो
क्यूँ इश्क में मर रहे हो
मैं इक ख्वाब हूँ , हकीकत नही
किसी की प्रेयसी हूँ,तेरी नही
फिर क्यूँ इस पागलपन में
जी रहे हो
इतना दीवानावार प्यार कर रहे हो
अगले जनम मिलन की आस में
क्यूँ मेरा इंतज़ार कर रहे हो

11 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया रचना है\बधाई।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वन्दना जी!

इन्तजार में ही तो मजा है।

शब्द अच्छे हैं प्रेरणा भी देते हैं

और जीवन की राह भी दिखाते हैं।

इस कविता के हरेक शब्द मे सच्चाई छिपी हुई है।

Prem Farukhabadi ने कहा…

ये कैसा नशा है
ये कैसा प्यार है
जिसे जन्मों का इंतज़ार है
क्यूँ ज़हर ये पी रहे हो
क्यूँ इश्क में मर रहे हो
मैं इक ख्वाब हूँ , हकीकत नही
किसी की प्रेयसी हूँ,तेरी नही
फिर क्यूँ इस पागलपन में
जी रहे हो
aapki rachna padke flim ke gaane ki lines yaad aa gayi hain . pesh kar raha hoon.

बरबाद होना जिसकी अदा हो
दर्दे - मुहब्बत जिसकी दवा हो
सताएगा क्या गम उसे जिन्दगी का.
ये दुनिया उसी की ज़माना उसी का
मुहब्बत में जो हो,गया हो किसी का
rachna aap ki atiuttam hain.badhaai ho.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

yahi to pyaar hai......

Dr. Manish Kumar Mishra ने कहा…

AAP KI KAVITA DIL KO GAHRAAEE TAK CHHOTEE HAI .

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन रचना लिखी है आपने और लगता है कि सच्‍चा प्‍यार करने वाला है यह सख्‍स मेरी इस बात को दिल पर मत लेना मैं केवल आपकी कविता के करेक्‍टर को ध्‍यान में लाकर लिख रहा हूं बहुत ही अच्‍छा लिखते हो आप

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

मेरी टिप्‍पणी कहां चली जाती हैं पता ही नही चलता

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

prem ke antaartam me utrne vaalo ko isase knha matlab hota he ki unhe koi chahta he yaa nahi..yadi vo ye chahe ki jisa se vo prem karte he vo bhi kare to sach maniye vo prem hota hi nahi...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

प्रिय वन्दना जी!
वन-वे पर चलना अच्छा नही है।
कुछ उनके जजबात का भी जो इन्तजार करें ।
हो सकता है कि उनका भी यही हाल हो।
कविता के शब्द सारगर्भित हैं।
हमारी कामना हैं कि आप इसी तरह
अच्छा ही लिखती चली जायें..........चली जायें..........चली जायें..........।
मंजिल आपकी प्रतीक्षा में है।
बधायी स्वीकार करें।

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

entjaar me kyamat aa gyee..unka aanaa ek kyamat hua.......

राकेश जैन ने कहा…

prem ! jab parvan chadhta hai to yug aur janma pal bhar ki bat lagte hain ..

aap prati uttar me meri kavita parhen.

http://29rakeshjain.blogspot.com/2008/05/blog-post.html