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मंगलवार, 31 जनवरी 2012

ये है मेरा नज़रिया ……





बोधि प्रकाशन जयपुर द्वारा प्रकाशित कृति "स्त्री होकर सवाल करती है " स्त्री विषयक काव्य संग्रह एक उपलब्धि से कम नहीं ...........माया मृग जी और डॉक्टर लक्ष्मी शर्मा जी के अथक प्रयासों का जीवंत रूप है ये काव्य संग्रह जिसे उन्होंने आभासी दुनिया को संगठित करके संगृहीत किया है जो अपने आप में एक अनोखा प्रयोग है . फेसबुक पर लिखने वालों को एकत्रित करना और फिर उनकी रचनाओं को संकलित करना बेशक एक प्रयोगधर्मिता है जिसे कोई भी प्रकाशन इस तरह प्रकाशित करने की  हिम्मत नहीं कर पायेगा जिसमे कोई खास चर्चित नाम ना हो सब आम लेखक ही वहाँ जुड़े हों जो अभी अपनी पहचान बनाने में संलग्न हों..........इतना बड़ा जोखिम उठाकर बोधि प्रकाशन ने सिद्ध कर दिया कि वहाँ सिर्फ रचनाओं को सम्मान दिया जाता है ना कि किसी व्यक्तिगत नाम को या प्रतिष्ठित नाम को .............इसके लिए पूरी प्रकाशन टीम  बधाई की पात्र है  .


इसी श्रृंखला में मेरी ३ कविताओं को भी सम्मिलित करके सम्मानित किया है जिसके लिए मैं बोधी प्रकाशन की दिल से आभारी हूँ :
१) झीलें  कब बोली हैं
२) वर्जित फल
३) कोपभाजन से कोखभाजन तक 



अब बात करते हैं इस कृति से जुड़े कवियों और कवयित्रियों की ..........चाहे पुरुष हो या स्त्री सबने अपने भावों में स्त्री के हर पहलू को छुआ है चाहे आदिम हो या आधुनिक स्त्री की स्थिति , सोच और व्यवहार सबका अवलोकन सूक्ष्मता से किया गया है .

मैं कोई समीक्षक तो हूँ नहीं एक पाठक की दृष्टि से जो मैंने महसूस किया वो लिख रही हूँ . सबके बारे में लिखना तो मेरे लिए संभव नहीं मगर इनमे से कुछ कविताओं ने सोचने को तो मजबूर किया ही और साथ में नयी सोच भी परिलक्षित की ..........उन्ही में से कुछ कविताओं का जिक्र कर रही हूँ ........



इस सन्दर्भ में सबसे पहले बात करते हैं अर्पण कुमार जी की कविता "नदी" की जिसे उन्होंने स्त्री को नदी के बिम्ब से शोभित करते हुए स्त्री मन के भावों को पकड़ा है, क्या है स्त्री.... ये बताया है जो इन पंक्तियों में चरितार्थ होता है 

दुष्कर नहीं है 
नदी को समझना
दुष्कर है
उसे विश्वास में लेना
ये है स्त्री और उसका स्वरुप ............जिसे अर्पण कुमार जी ने चंद लफ़्ज़ों में समेट दिया है .


अरुण कनक की  कविता " प्रेम करने वाली औरतें " बताती है कि कैसे एक औरत जो प्रेम करती है तो उस प्रेम के दर्प से उसका ओजपूर्ण व्यक्तित्व खिल उठाता है . अपनी आकांक्षाओं के साथ ऊँचे उड़ते जाना और फिर प्रताड़ित  होने पर भी प्रेम से लबरेज़ रहना ही शायद उनके प्रेम को उच्चता प्रदान करता है और मुख प्रेम मे ओज से दर्पित .......ऐसी औरतें जो प्रेम के विभाजन नहीं चाहतीं प्रेम के हर अणु में जैसे उनका अस्तित्व बंधा  होता है , प्रेम का विखंडित  होना उनके लिए किसी परमाणु विस्फोट से कम नहीं फिर भी कवि का प्रश्न खड़ा हो ही जाता है .........आखिर क्या चाहती हैं प्रेम करने वाली औरतें ? प्रेम के बदले प्रेम या वो सब जो एक अस्तित्व की तलाश होती है .........ये प्रश्न  करता कवि इस सवाल का जवाब ढूँढने में अनुत्तरित रहता है और इसे भी औरतों पर छोड़ अपने कर्त्तव्य की  इतिश्री कर लेता है .




अरुणा मिश्र की कविता " कविता " स्त्री के प्रति पुरुष की सोच को दर्शाती एक उत्कृष्ट रचना है . चंद  शब्दों में उन्होंने बता दिया कि कैसे कैसे पुरुष ने स्त्री अंगों का इस्तेमाल किया सिर्फ अपने फायदे के लिए कैसे उसका दोहन किया मगर फिर भी स्त्री से कहीं ना कहीं हारता ही है एक सोच में डूब जाता है सब कुछ अपनाने के बाद भी एक प्रश्न उसे कचोटता है ......कि अब आगे और क्या ? सुख कहाँ है ? स्त्री देह में या स्त्री अस्तित्व में या मानस के अन्तस्थ में .




देवयानी भरद्वाज की "स्त्री, एक पुरुष की कामना में " एक ऐसी सशक्त अभिव्यक्ति है जिसे एक स्त्री ही समझ सकती है कैसे पुरुष के लिए स्त्री सिर्फ एक स्त्री ही होती है उसका कोई रूप नहीं होता और ना ही वो जानता  जब स्त्री सामने हो तो उसमे सिर्फ देह ही दिखती है और देह में भी वो अंग जिनका उपयोग करके वो अपने पौरुष को तो संतुष्ट करे ही मगर स्वयं को बिना किसी अग्निपरीक्षा से  गुजारे  , अपने दामन पर पान की पीक  एक छींटा भी किसी को नज़र ना आये इस तरह इस्तेमान करना चाहता है और स्त्री, यदि स्वेच्छा से समर्पण करे तो उसकी नज़रों में गिर जाती है फिर चाहे खुद ने गिरावट की हर हद को पार ही क्यों ना किया हो . पुरुष की कामना में स्त्री कभी देह से इतर होती ही नहीं यही कहना चाहा है देवयानी जी ने .




गोपीनाथजी की "कमरा, बच्ची और तितलियाँ " कविता के माध्यम से गोपीनाथ जी ने भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध को उजागर किया है . उस अजन्मे भ्रूण की मनःस्थिति को इतनी मार्मिकता से पेश किया है कि आँख नम हो जायें और भ्रूण हत्या करने वाले भी सोचने को विवश .





"उस लड़की की हँसी " कविता में गोविन्द माथुर जी ने बेहद संजीदगी से एक अल्हड, किशोरवय: लड़की की उन्मुक्त हँसी का जिक्र किया है जो दुनियादारी की पाठशाला से अनभिज्ञ  है . कितनी निश्छल हँसी होती है ना किसी भी किशोरी की  आने वाले कल से अनजान मगर वो ही हँसी आप उम्र भर फिर चाहे कितना ही ढूंढते फिरो वो मासूमियत फिर नहीं मिलती इसलिए सहेज लो उन पलों को जिसमे ज़िन्दगी ज़िन्दगी से मिल रही हो अपनी संपूर्ण उन्मुक्तता के साथ .




"यही है प्रारंभ" कविता में हेमा दीक्षित जी ने नारी के उस स्वरुप का वर्णन किया है जो स्वप्न में भी नहीं चाहती कि कोई उसे सिर्फ देह ही समझे और स्वप्न  में ही एक टकराव बिंदु का आरम्भ  करती हैं  जो पुरुष के अहम् से जुदा है यानि एक ऐसी नारी जो स्वप्न में भी अपना सिर्फ देह होना नहीं स्वीकारती और पुरुष को ललकारती है और करती है एक नयी शुरुआत ......




हरकीरत हीर जी यूँ तो अपनी पहचान आप हैं फिर भी उनकी कविता "तवायफ की एक रात " के माध्यम से पुरुष के दोगले चरित्र को छान रही हैं कैसे पुरुष धार्मिकता , सज्जनता और साफ़ चरित्र का लबादा ओढ़े अपने पौरुष को ढकता है मगर उससे तो वो तवायफ अच्छी जो खुले आम स्वीकारती तो है सच्चाई की परतों को ............




हरी शर्मा जी की "औरत क्या है " कविता औरत की शक्ति का दर्पण है . औरत के बिना इंसान का कोई अस्तित्व नहीं दर्शाती कविता  औरत को सिर्फ जिस्म मानने से इंकार करती है साथ ही बताती है हर इन्सान के अन्दर एक औरत का वजूद जीवित रहता है बशर्ते वो उसे पहचाने तो सही ....






जीतेन्द्र कुमार सोनी "प्रयास" की कविता "नाथी -सरिता" औरत की उस स्थितिको इंगित करती है जब वो लड़के को जन्म नहीं दे पाती और उस स्थिति में चाहे वो शहर की हो या गाँव की औरत दोनों में से किसी की भी स्थिति में कोई फर्क नहीं होता . गाँव की औरत तब तक बच्चा जनती है जब तक लड़का ना हो जाये और शहर की गर्भपात  का दंश झेलती है मगर पढाई लिखाई या जगह बदलने  से मानसिकता में बद्लाव नहीं  दिखता ..........

दूसरी तरफ "दोष "कविता में जीतेन्द्र जी ने उन पौराणिक नारियों को दोष दिया है  जिन्होंने चुपचाप अत्याचार सहे जिसका दंश आज की नारी के भाग्य की लकीर बन गया है क्योंकि पौराणिक नारियां ही तो नारी सतीत्व का प्रतीक रही हैं तो उनके आचरण पर चलना उनकी नियति बन गयी हैऔर यही उनका दोष आज की नारी  के भाग्य का सबसे बड़ा दोष .




कुमार अजय की कविता "सोचना तो होगा ....." एक व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण को उजागर करती है और पुरुष पर आक्षेप लगाती  है साथ ही रस्मो रिवाजों और सुहाग प्रतीकों में बंधी नारी के जीवन की विवशता को दर्शाती  है . पुरुष हर बार अपना वर्चस्व  कायम रखने के लिए कोई  ना कोई रास्ता निकाल ही लेता है  
तो दूसरी तरह "कोई स्त्री ही होगी वह ..." कविता में पुरुष को बताते हैं जीवन के हर मोड़  पर चाहे घर हो स्कूल हो या ज़िन्दगी का सफ़र सब जगह तुम्हें प्यार करती और तुम्हें ज़िन्दगी की खुशियों से सराबोर करने में एक स्त्री का ही हाथ होगा और वो भी यकीन के साथ .......




लीना मल्होत्रा की "आफ्राm तुम्हें शर्म नहीं आती तुम अकेली रहती हो " अकेले रहने वाली स्त्रियों के साहस को सलाम करती है . जी सकती है अकेले वो एक अपनी दुनिया में जहाँ हर प्रश्न दुम दबाकर भागता नज़र आता है .



मनोज    कुमार झा "विज्ञापन-सुंदरियों से " कविता में एक प्रश्न खड़ा कर रहे हैं उन स्त्रियों से जिन्होंने नारी मुक्ति को सिर्फ अंग प्रदर्शन या आगे  बढ़ने की होड़ में स्त्री देह को उत्पाद की तरह प्रयोग करना शुरू कर दिया बिना जाने कि आज भी उनका प्रयोग ही किया जा रहा है ......इस प्रयोगात्मक दृष्टिकोण से  बचने और एक आदर्श स्थापित  करने को प्रेरित करती कविता वास्तव में सार्थक है ......


माया मृग जी ने "खुश रहो स्त्री " कविता में एक व्यंग्यात्मक शैली में चंद लफ़्ज़ों में स्त्री को स्थापित कर दिया.... बता दिया समाज या पुरुष समाज उससे क्या चाहता है और उसी को कैसे पूजित किया जाता है देवी बताकर ........यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते .......

मुकुल सरल की कविता "एक बुरी औरत की कहानी " यथार्थपरक कविता है. आजकी उस आधुनिक कही जाने वाली नारी का चित्रण है जो हर सच के लिए ज़माने से लड़ जाती है, अपने अधिकारों का हनन नहीं होने देती, बड़ी बेबाकी से सच को कहने की हिम्मत रखती है और पुरुषात्मक समाज की छाती पर पांव रखकर आगे बढ़ने की हिम्मत रखती है . शायद इसीलिए वो एक बुरी औरत है जिससे हर मर्द अपने घर परिवार को बचाना चाहता है कहीं ये चिंगारी उनके घर के शोलों को भी ना भड़का दे .





निधि टंडन की "नारी की स्वतंत्रता" कविता के दोहरे रूप को दर्शाती एक सशक्त अभिव्यक्ति है. एक ऐसी नारी जो बाहर जाकर नारी स्वतंत्रता का ढोल पीटती है इस उम्मीद से कि एक दिन सब कुछ बदल जाएगा  मगर घर में वो ही तिरस्कृत , उपेक्षित जीवन जीती है . सिर्फ एक आस में शायद उसके द्वारा उठाये क़दमों से किसी के जीवनका तो सच बदले , कोई तो पूर्ण स्वतंत्र हो. वैचारिक स्वत्नत्रता ही नहीं संपूर्ण स्वतंत्रता भी मायने रखती है





ॐ पुरोहित कागद की कविता "पुरुष का जन्म " एक कटाक्ष है और नारी मन की वेदना जहाँ वो अपने अस्तित्व की तलाश के साथ एक अदद पहचान और अपने घर के लिए तरस रही है . सब कार्य पुरुष सत्ता को इंगित करने क्यों होते हैं जबकि जननी स्त्री ही है हर कार्य की पूर्णाहुति स्त्री से होती है फिर भी क्यों वो उपेक्षित रहती है ?



पल्लवी त्रिवेदी की "बताना चाहती हूँ ज़माने को " उस नारी की पुकार है जो अपने ढंग से जीना चाहती है . उसी उन्मुक्तता के साथ जैसे कोई पुरुष जीता है क्योंकि ख्वाहिशों का कोई जेंडर नहीं होता.

तो दूसरी तरफ "उसकी रूह कुछ कह रही थी पहली बार " में पल्लवी जी ने स्त्री को जागृत किया  है और कहती  हैं कि सुन अपनी आत्मा की आवाज़ और अपने लिए रास्ते खुद चुनना  ताकि सुलग सुलग कर जीने की विवशता से आज़ाद हो  सके .







प्रेरणा शर्मा की "मैं हूँ स्त्री " देह के बंधनों से मुक्त होती स्त्री की एक सशक्त आवाज़ है जो लैंगिक भेदभाव को पूरी तरह नकार कर स्वयं को स्थापित कर रही है.





प्रवेश सोनी की "घरौंदा " स्त्रियों के मन का दर्पण है जिसमे वो बताती हैं उम्र के एक मोड़ पर जीवन कितना सहज होता है दूसरे मोड़ पर जब वो पूरा आकाश मुट्ठी में भरना चाहती है  तो उम्र का संकोच कहो या  स्त्री सुलभ लज्जा उसे उड़ान भरने  से रोकने लगती है और मन की बिछावन पर परतें जमने लगती हैं उम्र की , उन्माद की , सिसकन की .


रंजना जायसवाल की कविता "माँ का प्रश्न " वास्तव में सोचने को मजबूर करता है एक उम्र आने पर बेटे को माँ का सब कुछ बुरा लगने लगता है यहाँ तक कि इससे उसे लगता है कि उसकी इज्जत कम होती  है मगर भूल जाता है कि उसमे ना जाने कितने ऐब भरे पड़े हैं  तो क्या उसके ऐबों की वजह से उस माँ  की  इज्जत नहीं जाती प्रश्न करती कविता एक सशक्त हस्ताक्षर है .

तो दूसरी कविता "इन्सान" वास्तव में मरती इंसानियत पर कटाक्ष है एक अबोध बच्ची के माध्यम से हैवानियत की सच्चाई को जिस तरह उकेरा है वो अपने आप में बेजोड़ है . सरल शब्दों में गहरा मार करती कविता एक अदद इन्सनियात से भरा  इन्सान ढूँढ रही है .






रितुपर्णा मुद्राराक्षस की "कुछ कहना चाहेंगे आप " कविता पुरुष की आदिम सोच को दर्शाती है जो स्त्री से चाहे जो भी सबंध रखे यहाँ तक कि कितना ही अच्छा दोस्त बनने का अभिनय करे आखिर में रहता  वह वो ही आदिम सोच से युक्त पुरुष है जो स्त्री को सिर्फ शरीर ही समझता है जबकि स्त्री के लिये हर सम्बन्ध की एक मर्यादा होती है मगर पुरुष क्यों देह से इतर किसी सम्बन्ध को नहीं देख पाता  ये प्रश्न अनुत्तरित ही रहता है .





राजीव कुमार 'राजन' की "मैं मनुष्य हूँ" कविता में स्त्री स्वयं को मुक्त कर रही है .हर सकारात्मक या नकारात्मक बँधन से जो पुरुष ने उसे दिए हैं . नहीं बनना उसे देवी, त्याग की मूर्ति , छिनाल या कुल्टा  वो बस एक मनुष्य  के रूप में अपनी सम्पूर्णता के साथ जीना चाहती है  इसलिए स्वयं को मुक्त कर रही है हर विशेषण से .






राजेंद्र शर्मा जी ने अपनी कविता "स्त्री" में औरत के उस रूप को दर्शाया है जो चाहे पत्नी हो  , माँ हो , बहन  या बेटी हर रूप में वो सबकी सलामती की दुआएँ मांगती ही दिखती है . एक डर के साये में जीती औरत का सुन्दर चित्रण करने के साथ एक प्रश्न पुरुष समाज पर भी उछाल दिया है कि स्त्री के भाग्य में ही ये सब क्यों बदा होता है जो शायद एक अनुत्तरित प्रश्न है .





सीमांत सोहल जी की "परदेसी -पुत्र" माँ बेटे के रिश्ते की उस गर्माहट की तरफ ध्यान दिलाती है जो बेटे की तरफ से तो लुप्त होती जा  रहीहै  मगर माँ तो हमेशा हर हाल में माँ ही होती है . माँ की जरूरत पर बेटा सौ बहाने बना सकता है मगर माँ तो माँ होती है उसे तो उसकी ममता ही याद रहती है और हज़ार मुश्किलों का सामना करने पर भी बेटे की जरूरत पर उसके साथ होती हैबस इतना ही तो अंतर होता है उस रिश्ते में , उसकी गर्माहट में .






श्याम कोरी उदय जी ने "सिर्फ औरत नहीं हूँ मैं " में एक ऐसा सवाल उठाया है जो विचारणीय है . औरत को पुरुष ना जाने क्या क्या बनाता है कभी खुशबू तो कभी रात , कभी दिन कभी चाँदनी बहुत से नामों और उपनामों से नवाजता है यहाँ तक कि अपना सारा जहाँ भी कह देता है बस नहीं मानता तो उसके संपूर्ण अस्तित्व को अर्थात सिर्फ औरत के रूप को स्वीकार नहीं पाता  . एक सोचने को विवश करती कविता.





सुमन जैन की कविता "बेटियां बहुत जल्दी बड़ी हो जाती हैं " एक सत्य को परिभाषित करती है जिस सत्य को हम नकारना चाहते हैं स्वीकारना नहीं चाहते , जिस पर हम झुंझलाते रहते हैं सुनने पर , दूसरा इन्सान कहे तो बुरा लगता है सुनने पर मगर जब अपने साथ वो ही लम्हा घटित होता है तो जुबान पर लफ्ज़ बनकर वो बात आ ही जाती है और बेसाख्ता मुँह से निकल ही जाता है ........बेटियां बहुत जल्दी बड़ी हो जाती हैं.






शबनम राठी "बीवी " कविता में हर नारी के उस दर्द को बयां कर रही हैं जो उसके अन्तस्थ में पलता है  हर नारी चाहती है कि उसका पति उसे भी इन्सान समझे, घर का जरूरी समान नहीं या जरूरत की वस्तु नही जिसे जब चाहे प्रयोग किया बल्कि एक पूर्ण इन्सान के रूप में स्वीकारे मगर उसके पास वो नज़र या वक्त ही नहीं  होता या वो  सोच ही नहीं  होती , वो भावनाएं ही नहीं होतीं या वो सोचना ही नहीं चाहता स्वीकारना ही नही चाहता उसके वजूद को एक इन्सान के रूप में ........






उपासना सियाग ने "सरहद पर जब भी " कविता में युद्ध की विभीषिका में एक औरत के संवेदनशील भावों  को दर्शाया है . एक औरत चाहे इस पार  की हो या उस पार  की , कोई भी हो माँ , बहन , बेटी या पत्नी  वो सिर्फ़ सरहद पर गए के लिए उसकी सलामती के लिए दुआ ही कर सकती है क्योंकि भावनाओं में अंतर नहीं होता तो फिर औरत में कैसे होगा ये होती है स्त्री होने की सबसे बड़ी पहचान 






वीना कर्मचंदानी  "गुलाबी" कविता में उन स्त्रियों की मनः स्थिति में झाँका है जो घर -घर जाकर झाड़ू बर्तन आदि करती हैं और किसी को पढ़ते देख उनका चेहरा कैसा दमक जाता है कि साँवली रंगत भी गुलाबी दिखने लगती है  . शिक्षा का तेज़ उसकी चाहत का दर्प मुख पर उजागर होना और उसके महत्त्व को समझना उन लोगों के लिए बड़ी बात है जिन्हें ये सुविधाएं आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं .





वन्दना शर्मा ने "बस कैलेंडर भरता है हामी" कविता में औरत के दयनीय हीन दशा का मार्मिक चित्रण किया है . कितने तरह के वीभत्स अत्याचार सहती है औरतें मगर पाषाण  युग हो या २१ वीं सदी औरत सिर्फ भोग्या ही रही तो कभी अहिल्या ही रही , शापित सी , अपमानित होती, कतरे, कुचले लहूलुहान पंखों के साथ सिसकती ही रही. युग बदलने से उसकी दशा में कोई परिवर्तन नहीं वो कल भी वस्तु थी और आज भी .






वसुन्धरा  पाण्डेय की "बोनसाई " कविता नारी के  विचारों को व्यक्त करती है . कैसे पुरुष उसे अपने अंगूठे के नीचे दबाकर रखना चाहता  है क्योंकि जानता है एक बार यदि उड़ान भरनी शुरू की तो आसमाँ भी छोटा पड़ जायेगा फिर उसका वर्चास्व कैसे कायम रहेगा ।
 





ये अपने आप मे एक ऐसी उपलब्धि है जो किसी ने सोची भी नही होगी कि फ़ेसबुक की रचनाओं के जरिये भी साहित्य सृजन हो सकता है और उसका ये एक ऐसा उदाहरण बन गया है कि आगे आने वाले दिनो मे इससे काफ़ी लोग प्रेरित होकर साहित्य मे ना केवल योगदान देंगे बल्कि अपनी भी एक मुकम्मल पहचान बनायेंगे और इसका श्रेय माया जी आपकी टीम को जाता है ……
ये केवल मेरे निजी विचार हैं इन्हें किसी समीक्षक की दृष्टि से ना देखा जाए. 



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बोधि प्रकाशन
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शनिवार, 28 जनवरी 2012

सरस्वती माँ को सादर वन्दन अभिनन्दन




सरस्वती माँ को सादर वन्दन अभिनन्दन 
करो माँ हर ह्र्दय मे प्रेम का मधुर स्पन्दन

तम का नाश कर दो अज्ञानता का ह्रास कर दो
ज्ञान उजियारे से माँ जीवन उल्लसित कर दो 

तन मन प्रफुल्लित हो सदा नित करें तुम्हें वंदन
गीत शांति सौहार्द के गायें सदा हो जाए पूर्ण समर्पण 

तुम्हारी प्रथम आराधना से हो वासंतिक अभिनन्दन 

जीवन के हर पग पर मिल जाए एक नया खिला उपवन 

सरस्वती माँ को सादर वन्दन अभिनन्दन 
करो माँ हर ह्र्दय मे प्रेम का मधुर स्पन्दन

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

फिर कैसे अश्रुपूरित नेत्रों से स्वयं का दोहन करूँ?

नहीं हूँ मैं देशभक्त
क्या करूँ देशभक्त बनकर
जब रोज नए घोटाले करने हैं
जब रोज जनता को 
लूटना खसोटना है
जब रोज भ्रष्टाचार के 
नए नए मार्ग खोजने हैं
जब रोज सच का गला घोंटना है
जब रोज गणतंत्र के नाम पर
सब्जबाग दिखाना है
चेहरे पर एक नया चेहरा लगाना है
झूठ के आईने में 
सच को दिखाना है
हर पल एक झूठ के साथ जीना है
तो क्या करूँ मैं देशभक्त बनकर
और क्या करूँ मैं 
सबको गणतंत्र की शुभकामना देकर
जब ना बदल पाया कुछ भी
गुलाम तो कल भी थे आज भी
गैरों की गुलामी से तो बच निकले
अपनों की गुलामी से बचकर किधर जाएँ
जब खुद अपना ये हाल हमने बनाया है
तो क्या होगा एक दिन 
गणतंत्र के नाम पर 
खुद को भुलावा देकर
क्या होगा एक दिन 
आदर्शवादी बनने का ढोंग करके
क्या होगा एक दिन
गणतंत्र दिवस की शुभकामना देकर
जबकि उसके असली अर्थ को ना जाना हमने
खुद को निरीह बना डाला हमने
अधिकारों और कर्तव्यों को 
दोगली छवि वालों के हाथों की
कठपुतली बनाया हमने
जब तक ना बदल जाए ये सब
तब तक कैसा गणतंत्र और किसका गणतंत्र
फिर कैसे अश्रुपूरित नेत्रों से स्वयं का दोहन करूँ और खुद को देशभक्त कहूं ????

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

कुछ तो जुस्तजू अभी बाकी है………………


तुम लिखते नही
या मुझ तक पहुंचते नही
तुम्हारे वो खत
जिसकी भाषा ,लिपि और व्याकरण
सब मुझ पर आकर सिमट जाता है
शायद संदेशवाहक बदल गये हैं
या कबूतर अब तुम्हारी मुंडेर पर नही बैठते
या शायद तुमने दाना डालना बंद कर दिया है
तभी बहेलियों के जाल में फँस गए हैं 

कोई तो कारण है 
यूँ ही नहीं हवाएं पैगाम लेकर आई हैं 

कुछ तो जुस्तजू अभी बाकी है………………

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

स्त्री मुक्ति को नया अर्थ दिया


आज एक ख्याल ने जन्म लिया
स्त्री मुक्ति को नया अर्थ दिया
ना जाने ज़माना किन सोचो में भटक गया
और स्त्री देह तक ही सिमट गया
या फिर बराबरी के झांसे में फँस गया
मगर किसी ने ना असली अर्थ जाना
स्त्री मुक्ति के वास्तविक अर्थ को ना पहचाना
देह के स्तर पर तो कोई भेद नहीं
लैंगिग स्तर पर कैसे फर्क करें
जरूरतें दोनों की समान पायी गयीं
फिर कैसे उनमे भेद करें
दैहिक आवश्यकता ना पैमाना हुआ 
ये तो सिर्फ पुरुष पर थोपने का 
एक बहाना हुआ 
जहाँ दोनों की जरूरत समान हो
फिर  कैसे कह दें 
स्त्री मुक्ति का वो ही एक कारण  है
ये तो ना स्त्री मुक्ति का पर्याय हुआ
बराबरी करने वाली को स्त्री मुक्ति का दर्शन दिया
मगर ये भी ना सोच को सही दर्शाता है
"बराबरी करना" के भी अलग सन्दर्भ दीखते हैं
मगर मूलभूत अर्थ ना कोई समझता है
बदलो स्त्री मुक्ति के सन्दर्भों को
जानो उसमे छुपे उसके अर्थों को
तभी पूर्ण मुक्ति तुम पाओगी
सही अर्थ में तभी स्त्री तुम कहलाओगी 
सिर्फ स्वतंत्रता या स्वच्छंदता ही 
स्त्री मुक्ति का अवलंबन नहीं
ये तो मात्र स्त्री मुक्ति की एक इकाई है 
जिसके भी भिन्न अर्थ हमने लगाये हैं
उठो जागो और समझो 
ओ स्त्री ..........स्वाभिमानी बन कर जीना सीखो
अपनी सोच को अब तुम बदलो
स्वयं को इतना सक्षम कर लो
जो भी कहो वो इतना विश्वस्त हो
जिस पर ना कोई आक्षेप हो 
और हर दृष्टि में तुम्हारे लिए आदर हो 
तुम्हारी उत्कृष्ट सोच तुम्हारी पहचान का  परिचायक हो 
जिस दिन सोच में स्त्री में समानता आएगी
वो ही पूर्ण रूप में स्त्री मुक्ति कहलाएगी
जब स्वयं के निर्णय को सक्षम पायेगी
और बिना किसी दबाव के अपने निर्णय पर
अटल रह पायेगी
तभी उसकी मुक्ति वास्तव में मुक्ति कहलाएगी
बराबरी का अर्थ सिर्फ शारीरिक या आर्थिक ही नहीं होता
बराबरी का संपूर्ण अर्थ तो सोच से है निर्मित होता

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

मुझे उस एक रोज की तलाश है.............


काश ऐसा एक रोज़ हर किसी की ज़िन्दगी मे आये

और वो उसमे अपनी पूरी ज़िन्दगी जी जाये

कौन सा???

कुछ होने और ना होने के बीच की खाली जगह

कितना सुकून होता है ना उसमे …………

शायद वो ही अपने लिये जीना होता है।


मुझे उस एक रोज की तलाश है.............



जहाँ मै होकर भी ना होऊँ मगर खुद से मुलाकात हो जाये

इक अश्क ढलक जाये हौले से …………

बह जाये सागर तक्………

समाहित हो जाये…………

और मै जी जाऊँ उस ना होने मे…………उस खालीपन मे

आह! क्या अब तक मै ज़िन्दा हूँ?

रविवार, 15 जनवरी 2012

तुम्हारा हर दिन जन्मदिन सा गुजरता रहे






चिड़ियाएं तो चिड़ियाएं ही होती हैं
आँगन में फुदकती हैं
कभी मुंडेर पर 
तो कभी छज्जे पर
कभी पानी की बाल्टी पर
तो कभी आँगन में पड़े दानों पर
फुदकती हैं , चहचहाती हैं 
बेफिक्री से कैसे बतियाती हैं
ना डर ना खौफ ना कोई चाहत
बस एक पुरसुकून सी ज़िन्दगी 
उड़ने की चाह
परवाज़ भरने को आतुर
आँगन की शोभा बनी रहती हैं......जब तक रहती हैं 
जैसे ना जाने कितने कमल खिलखिला गए हों
जैसे सारा जहान उन्होंने अपनी
चहचहाट में ही संजो रखा हो 
हाँ .........तुम ऐसी ही तो 
मेरे आँगन की चिड़िया हो 
मेरी बिटिया .......
तुम्हारे  होने से मुझे 
घर - घर दिखता है
जिस दिन तुम नहीं होतीं
सारा दिन बोझिल सा गुजरता है
और तुम्हारे आते ही 
जैसे मन मधुबन खिल उठता है
सारे घर में बहार आ जाती है
सिर्फ तुम्हारे बोलने से
तुम्हारी बातों से
मेरे मन की कली- कली खिल जाती है 
और उस पल डर भी जाती हूँ
कुछ देर के लिए सहम भी जाती हूँ
ये सोच कर कि 
बस कुछ दिन और ........उसके बाद
फिर तुम दूसरे आँगन में रोंपी जाओगी 
वहाँ नए कँवल खिलाओगी
एक नया मधुबन बनाओगी
तब यहाँ मेरे आँगन की हर शय
तुम्हारा रास्ता निहारा करेगी
तुम्हारी चहचहाट को बहुत मिस करेगी
हाँ ..........जानती हूँ रीतियाँ तो निभानी होंगी
और तुम्हें भी एक नयी दुनिया बसानी होगी
मगर जब तक तुम हो मेरे पास
समेट लेना चाहती हूँ ......तुम्हारी हर बात को
हर चाह को , हर आहट को 
संजोना चाहती हूँ हर खुशबू को
आज तुमने २१ वसंत पूरे किये हैं 
चाहती हूँ तुम्हारा संपूर्ण जीवन 
वसंत सा खिलता रहे 
हर सुमन तुम्हारी बगिया की 
शोभा बनता रहे 
आसमाँ भी तुमसे रश्क करता रहे
यूँ हर पल तुम्हारा खुशियों से लरजता रहे
जो मुस्कान खिली है होठों पर
यूँ ही ता-उम्र कायम रहे 
मेरी बिटिया अब यही है कामना 
तुम्हारा हर दिन जन्मदिन सा गुजरता रहे 




दोस्तों 
आज मेरी बेटी का जन्मदिन है और उसे आप सबके आशीर्वाद और दुआओं की भी जरूरत है .......आखिर इतना तो उसका हक़ बनता ही है अपने सभी अंकल आंटी पर :)))

उसी वक्त पर पब्लिश रही हूँ जिस वक्त उसका जन्म हुआ था ...........बस कुछ भी कहने को बचा नहीं है सिर्फ भाव विभोर हूँ शायद एक माँ के लिए कुछ कहना आसान भी नहीं होता .........

बुधवार, 11 जनवरी 2012

इंतज़ार की सिलाई नही होती



तुम मुझे बातो के बताशे खिलाते हो 
अभी आऊँगा थोडी देर मे
तुम से ढेर सी बातें करूंगा
कह जाते हो और मै
आस की ऊँगली थामे
खडी रहती हूँ चौखट पर
एकटक दरवाज़े पर
निगाह टिकाये
जेठ की तपती दोपहर मे
जानते हो इतनी देर मे
एक इंतज़ार की चादर बुन लेती हूँ
कभी देखा है
इंतज़ार के धागो को चीरकर
देखना कभी
हर धागे मे
तुम और तुम्हारा इंतज़ार
ही नज़र आयेगा
जानती हूँ तुम नही आओगे
पता होता है मगर फिर भी
आस का दीपक
जलाये रखती हूँ
कभी करना तुम भी कोशिश
कभी करना तुम भी इंतज़ार
देखना पोर पोर मे
सुईयाँ गुबी मिलेंगी
क्योंकि
इंतज़ार  की सिलाई नही होती
सिर्फ़ गुदाई होती है………

शनिवार, 7 जनवरी 2012

सोचा था वर्णित हो जाऊँगी

सोचा था वर्णित हो जाऊँगी
मौन मुखरित हो जायेगा
वेदना पुलकित हो जायेगी
सुना था………………
एक अरसे के बाद 
मौसम फिर पलटता है
ज्वार फिर उठते हैं
ज़िन्दगी फिर मचलती है
मगर ऐसा नही होता
जिस तरह ………
सफ़र मे साथ छूटने के बाद
दोबारा मुसाफ़िर नही मिला करते
उसी तरह ………
सूखी हुई डालियाँ दोबारा अभिसिंचित नही होतीं
शायद तभी
 बंद कालकोठरियाँ के नसीब मे 
रौशनी के कतरे नहीं लिखे होते हैं……………

सोमवार, 2 जनवरी 2012

आपकी पसंद आपकी नज़र......गागर में सागर हैं साझे ब्लोग्स

लीजिये फिर आ गयी आपकी पसंद आपकी नज़र.........जी हाँ इस बार के जनवरी अंक में गर्भनाल पत्रिका में आपके साझा ब्लोग्स की चर्चा है जो इस प्रकार है .......


ये रहा गर्भनाल पत्रिका का लिंक ---------पेज २२ -२३ पर आप पढ़ सकते हैं ब्लॉग चर्चा 
http://www.garbhanal.com/Garbhanal%2062.pdf

 www.garbhanal.com 


जो भी लिंक खुले उसे ओपन करके पढ़ सकते हैं और यदि न खुले तो यहाँ मैंने लगा ही दी है पूरी चर्चा 
https://mail-attachment.googleusercontent.com/attachment?ui=2&ik=83ac09a125&view=att&th=134a21aacb6d9748&attid=0.1&disp=inline&safe=1&zw&saduie=AG9B_P-sqdOOtE1oq5h2pgM3cTYR&sadet=1325569955678&sads=E_jr8uaVNC7pnS84HRp-2IRkNdc&sadssc=1


या 


https://mail-attachment.googleusercontent.com/attachment?ui=2&ik=83ac09a125&view=att&th=1341778c99fea601&attid=0.1&disp=inline&realattid=f_gvw14tmo0&safe=1&zw&saduie=AG9B_P-sqdOOtE1oq5h2pgM3cTYR&sadet=1325500616235&sads=DZ_LoYkuoMFYqIX0_WIJEZ150tc&sadssc=1

पत्रिका में जगह की कमी की वजह से सभी साझे ब्लोग्स को जगह नहीं दी जा सकी उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ 


गागर में सागर हैं साझे ब्लोग्स 





आज हम कुछ साझा ब्लोग्स की चर्चा करेंगे जिन्होंने अपना एक खास मुकाम बनाया है क्यूँकि इनके माध्यम से काफी नए रचनाकारों को एक प्लेटफ़ॉर्म मिल गया जहाँ वो अपने विचारों को सबसे साझा कर सकते हैं और साथ ही बाकी ब्लोगर्स को भी काफी नए नए ब्लोगर्स की रचनायें एक ही जगह पढने को मिल जाती  हैं . आइये चलते हैं आज के पहले साझा ब्लॉग की तरफ ..........


http://www.sahityapremisangh.com/साहित्य प्रेमी संघ ब्लॉग के संचालक हैं सत्यम शिवम् . इतने कम समय में उन्होंने इस साझा मंच की एक विशेष पहचान  बनाई है उनके द्वारा लिखे आलेख और कवितायेँ विभिन्न अख़बारों में समय- समय पर प्रकाशित हो रहे हैं. नए रचनाकारों को ये मंच प्रदान करके सत्यम जी ने उन्हें तो एक पहचान ही दी है साथ ही आज उनके इस मंच से 52 रचनाकार जुड़ गए हैं और इतने कम समय में इतनी पहचान बनाना किसी उपलब्धि से कम नहीं.

http://www.rachanakar.org/ रचनाकार ......रवि रतलामी जी द्वारा संचालित एक ऐसी ई पत्रिका है जो यूनिकोड  पर आधारित पहली ई -पत्रिका है जिसके ५०००० से ज्यादा नियमित पाठक हैं और १००० से ज्यादा ग्राहक . अब तक हर विधा में ३२०० से ज्यादा रचनायें प्रकाशित हो चुकी हैं . रचनाकार में अपने सस्वर विडिओ भी भेजे जा सकते हैं जो उसी रूप में प्रकाशित भी होते हैं . हर विधा के माहिर यहाँ अपने विचार प्रस्तुत करते हैं फिर चाहे पुस्तकों की समीक्षा हो या साहित्यिक गतिविधियाँ , व्यंग्य , संस्मरण, नाटक, कविता, आलेख, कहानियां , लघुकथाएं , ग़ज़ल चुटकुले, बाल - कथाएँ,उपन्यास, निबंध सबको यहाँ स्थान मिला है और एक ही जगह सबको स्थान मिलने पर पाठक के लिए सबको पढना आसान हो जाता है और यही इसकी लोकप्रियता की कुंजी है. 




http://www.nukkadh.com/ नुक्कड़ ......अविनाश वाचस्पति जी द्वारा संचालित ब्लॉग है जिसमे हर तरह की गतिविधि का अवलोकन किया जा सकता है फिर चाहे वो साहित्यिक हो, राजनितिक को, सूचनार्थ हो , या ब्लोगिंग से सम्बंधित . जैसे गली के नुक्कड़ पर जाकर सारे जहान की जानकारियां मिल जाती हैं उसी तरह इस नुक्कड़ पर आकर कहाँ क्या हो रहा है , कहाँ कौन सा आयोजन हो रहा है, किसे पुरस्कार मिला इत्यादि सारी जानकारियां उपलब्ध रहती हैं . ब्लॉगजगत की हर छोटी- बड़ी गतिविधि की यहाँ जानकारी प्राप्त कर सकते हैं .


http://bhadas.blogspot.com/ भड़ास .........जैसा नाम वैसे गुण .........इसी को चरितार्थ करता है ये यशवंत सिंह जी द्वारा संचालित ब्लॉग .........जो आप कहीं नहीं कह पाते यहाँ आकर कह दीजिये.........इनका कहना है यदि आपके गले में कुछ अटक गया है तो उगल दीजिये मन हल्का हो जायेगा.........

भड़ास उन आम हिंदी मीडियाकर्मियों की आवाज है जो आनलाइन माध्यम से जुड़े हैं या आफलाइन, मसलन अखबार, टीवी और मैग्जीन आदि से संबद्ध हैं। ये उनकी भी आवाज है जो दिल में एक हिंदी मीडियाकर्मी बनने की हसरत रखे हैं लेकिन उन्हें अभी ठोकरें खानी पड़ रही हैं। ये उनकी भी आवाज है जो हिंदी वाले हैं, दिल वाले हैं लेकिन शहर के खेल-तमाशे में आकर खुद को तनहा पाते हैं। ऐसे सभी लोगों के दिल की धड़कन है भड़ास




http://allindiabloggersassociation.blogspot.com/ आल इंडिया ब्लोगर असोसिएशन  सलीम खान जी द्वारा संचालित इस ब्लॉग ने बहुत जल्द पाठकों में अपनी पैठ बनाई है . सर्व धर्म समभाव का दर्शन इनके ब्लॉग पर होता है और महिलाओं का विशेष आदर किया जाता है जिसका उदाहरण यही है कि इस ब्लॉग कि अध्यक्षा एक महिला ही हैं इसके अलावा इन्होने महान ममता मंडल बनाया है जहाँ महिलाओं को विशेषाधिकार प्राप्त हैं जिसके द्वारा ये सन्देश देना चाहते हैं कि सभी को महिलाओं को उचित मान सम्मान देना चाहिए जिसकी वो वास्तविक हक़दार हैं.


http://www.hindisahityamanch.com/ हिंदी साहित्य मंच हिंदी का एक विरवा लगाये जाने के उद्देश्य से , हिंदीभाषी राष्ट्र की कल्पना को साकार करने  के उद्देश्य से हिंदी साहित्य मंच का गठन  हुआ . हिंदी साहित्य मंच पर कौन सी ऐसी विधा है जिसका अलंकरण ना हुआ हो फिर चाहे गीत हों , अकविता हो ,साक्षात्कार हों या समीक्षा हो ,पुस्तक समीक्षा हो या संस्मरण हों, व्यंग्य हों या साहित्यिक हलचल, हर विधा पर यहाँ लिखा गया है जो इस बात को इंगित करता है कि हिंदी साहित्य मंच किस तरह जी जान से जुटा हुआ है हिंदी को उसका मुकाम दिलाने के लिए. और यही इसकी सफलता का द्योतक है .


आज वटवृक्ष ब्लॉगजगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं. इतने अल्प समय में ऐसी ख्याति और ऐसी उपलब्धि शायद ही किसी को मिली हो .वटवृक्ष का सञ्चालन रश्मि प्रभा जी और रविन्द्र प्रभात जी के सम्मिलित प्रयासों द्वारा किया जाता है. यहाँ तक कि वटवृक्ष ने इतना अल्प समय में एक त्रैमासिक पत्रिका भी निकाली है जिसका विमोचन हिंदी भवन में अभी ३० अप्रैल को हुआ जो इसकी सफलता को इंगित करता है. आज हर लेखक , कवि और साहित्यकार अपने को वटवृक्ष से जुड़ा महसूस करके गौरान्वित महसूस करता है. हर लेखक का यहाँ स्वागत है उसकी लिखी रचनाएँ सब पाठकों तक जल्द से जल्द पहुँचती हैं ना केवल पहुँचती हैं बल्कि नए- नए लोगों से जुड़ने का भी मौका मिलता है साथ ही नए लेखकों को पढने का भी........जब इतनी खूबियाँ एक ही जगह उपलब्ध हों तो कौन नहीं चाहेगा ऐसे मंच से जुड़ना. 


http://bhartiynari.blogspot.com/ भारतीय नारी ब्लॉग अभी इसी जुलाई माह में बना है और जैसा कि नाम से पता चलता है ये ब्लॉग भारतीय नारियों की समस्याओं, उनकी उलझनों, उनके अधिकारों इत्यादि पर विचार विमर्श करता है . आज स्त्री विमर्श एक सबसे अहम् हिस्सा है किसी भी लेखक के लिए और शिखा कौशिक  द्वारा संचालित ये ब्लॉग स्त्रियों की दयनीय दशा , उन्हें व्यवहार , उनकी कैसे मदद की  जाये, शिक्षा के महत्त्व और भ्रूण हत्या को कैसे रोका जाये जैसे मुद्दों पर विचार विमर्श करती है यहाँ स्त्री हो या पुरुष हर कोई अपने विचार प्रस्तुत कर सकता है मगर उसकी भाषा मर्यादित होनी चाहिए . आज भारतीय नारी ब्लॉग ने भी अपनी एक विशिष्ठ पहचान बनानी शुरू कर दी है.




http://blogworld-rajeev.blogspot.com/ ब्लॉग वर्ल्ड एक ऐसा अग्रीगेटर  है जहाँ आपको सभी लेखकों की पोस्ट आसानी से पढने को मिल जाएँगी . जो भी इस ब्लॉग से जुड़ना चाहता है सिर्फ कमेन्ट बॉक्स में अपने ब्लॉग का url दे दे उसे जोड़ दिया जाता है और फिर आसानी से सब पाठकों तक उस ब्लॉग की पहुँच हो जाती है इसके अलावा ब्लॉग वर्ल्ड एक पोस्ट के माध्यम से अपने से जुड़े लेखकों का भी परिचय प्रस्तुत करता रहता है जिससे उस लेखक के विचार और उसके ब्लॉग की पहुँच भी सब पाठकों तक आसानी से हो जाती है. 


http://blogsinmedia.com/ ब्लोग्स इन मीडिया जैसा कि नाम से विदित हो रहा है मीडिया में जिन भी ब्लोग्स का जिक्र होता है उस खबर को सबसे पहले पाठकों तक पहुँचाने का काम ब्लोग्स इन मीडिया कर रहा है . अपनी तरह का अनोखा ब्लॉग है पूरे देश में कौन से अख़बार में किस ब्लॉग की चर्चा की गयी उसे खोजना और यहाँ उसकी जानकारी देना ये कोई कम बात नहीं है और अपने इस कार्य में ये ब्लॉग सफल हो रहा है. 


http://aakharkalash.blogspot.com/  आखर कलश हिंदी साहित्य को दिशा देता एक सृजनात्मक ब्लॉग है जो नरेन्द्र व्यास जी द्वारा संचालित हैं उनके अलावा पंकज त्रिवेदी , सुनील गज्जानी जी भी इसके संपादक मंडल में शामिल हैं. हिंदी के नए- नए कवियों को आमंत्रित करना और उनकी बहुमूल्य कृतियों से पाठकों को लाभान्वित करना ही इनके ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य है जिसे ये सब मिलकर बखूबी  अंजाम दे रहे हैं . जो अपने बारे में ये कहते हैं ----
आखर कलश का प्रकाशन पूणरूप से अवैतनिक किया जाता है। आखर कलश का उद्धेश्य हिन्दी साहित्य की सेवार्थ वरिष्ठ रचनाकारों और उभरते रचनाकारों को एक ही मंच पर उपस्थित कर हिन्दी को और अधिक सशक्त बनाना है। और आखर कलश के इस पुनीत प्रयास में समस्त हिन्दी प्रेमियोंसाहित्यकारों का मार्गदर्शन और सहयोग अपेक्षित है।





http://www.janokti.com/ जनोक्ति . कॉम के बारे में जयराम विप्लव जी कहते हैं -------------

गस्त 09 में ‘जनोक्ति वेब मीडिया’ अस्तित्व में आया और वेब पर


 हिंदी के पाठकों को स्तरीय मानसिक खुराक परोसने के लक्ष्य को


 लेकर  ” जनोक्ति.कॉम” JANOKTI.COM का शुभारम्भ किया | 


महज एक साल से भी कम समय में  इस लक्ष्य के सैकड़ों भागीदार 


बन गए | 600 से अधिक पंजीकृत लेखक सहभागी | रोजाना हजारों 


पाठक और उनकी सैकड़ों टिप्पणियाँ हमारे मनोबल को बढाती हैं |


एक दुनिया देखी हमने, जहां अभिव्यक्ति विकृति की संस्कृति में ढल रही है .हिंदी समाज की विडंबना हीं कहिये , सामाजिक सरोकारों पर मूत्र त्याग कर व्यक्तिगत स्वार्थों में लिप्त हो लेखन कर्म को वेश्यावृत्ति से भी बदतर बना दिया गया है . ऐसे समय में अंतरजाल में शीघ्रता से फ़ैल रहे हिंदी पाठक में वैकल्पिक मीडिया या यूँ कहें न्यू मीडिया के प्रति उत्साह बढ़ रहा है | जब विचारों को किसी वाद या विचारधारा का प्रश्रय लेकर ही समाज में स्वीकृति मिलने का प्रचलन बन जाए तब व्यक्तित्व का निर्माण संभव नही. इतिहास साक्षी है कि कलम और क्रांति में चोली दामन का साथ है. अब कलम को बाज़ार का सारथि बना दिया गया. ऐसे में किसी क्रांति की भूमिका कौन लिखेगा? तथाकथित कलम के वाहक बाज़ार की महफिलों में राते रंगीन कर रहे है.बाज़ार के बिस्तर पर स्खलित ज्ञान कभी क्रांति का जनक नही हो सकता.तो अब जबकि  ’न्यू मीडिया यानि वेब मीडिया’  के रूप में सामानांतर विकल्प  उभरा है तो हमारी जिम्मेदारी है कि छोटी लकीरों के बरक्स कई बड़ी रेखाए खिची जाएं. बाज़ारमुक्त और वादमुक्त हो समाजहित से राष्ट्रहित की ओर प्रवाहमान लेखन समय की मांग है. “जनोक्ति” परिवार ओज और धार से बनी हर एक लेखनी को आमंत्रित करता है ............
जनोक्ति अपना परिचय आप बन गया है .


http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/ राजभाषा हिंदी मनोज जी द्वारा संचालित ऐसा ब्लॉग है जहाँ हिंदी के बड़े बड़े कवियों की कवितायेँ तो प्रदर्शित होती ही हैं बल्कि साथ में उदीयमान और स्थापित कवियों की कविताओं को भी वैसा ही सम्मान मिलता है.हर तरह की विधा का यहाँ रसास्वादन  किया जा सकता है . 



http://yaadonkaaaina.blogspot.com/     हिन्दुस्तान का दर्द एक ऐसा ब्लॉग है जो अपने बारे में कहता है .............

अगर आप करते है सार्थक लेखन और आप उठा सकते है किसी भी मुद्दे पर अपनी आवाज़ को,तो यह मंच है आपके लिए, आप अपनी रचनाओं कोmr.sanjaysagar@gmail.comपर मेल करें उन्हें यहाँ प्रकाशित किया जायेगा..
देश की राजनीति को लग चुका है अभिशाप ,गुरु कर रहे है शिष्यों के साथ पाप,अस्पतालों मे हो रही है बच्चों की हेराफेरी,पुलिस को जीने के लिए जरुरी है घूसखोरी,खेलो मे खिलाडियों को रास आ रही है मैच फिक्सिंग , धार्मिक पत्रों के कलाकारों मे बढ रही है किसिंग !जनता से ख़रीदे जा रहे है वोट , संसद मे भी वोट के बदले नोट !देश के इसी तरह के गर्मागर्म मुद्दों पर आधारित ''हिन्दुस्तान का दर्द'' आपको मौका देता है अपनी बात कहने का! तो खामोश मत रहिये अपनी बात कहिये.....अगर आप भी इस ब्लॉग पर लिखना चाहते है तो अपना ईमेल अकाउंट आपके फ़ोन नंबर और पते के साथ हमें-mr.sanjaysagar@gmail.comपर भेजें और अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें-९९०७०४८४३८
यथा नाम तथा गुण को प्रतिपादित करता है ये ब्लॉग 


प्यारी माँhttp://pyarimaan.blogspot.com/ जैसा कि नाम से विदित है ...........पूर्ण रूप से माँ को समर्पित ये ब्लॉग अनवर जमाल जी द्वारा संचालित है जिसमे हर वो इंसान जिसके मन में संवेदनाएं हैं , जिसकी आत्मा अभी मृतप्राय नहीं हुई है और जो देख सकता है , महसूस कर सकता है दूसरे का दर्द और एक माँ की ज़िन्दगी में क्या अहमियत होती है वो यहाँ अपने विचारों को चाहे आलेख चाहे कविता किसी भी विधा में रख सकता है और सबसे बड़ी खासियत ये है कि इस ब्लॉग से ज्यादातर नारी जाति ही जुडी है जो यहाँ समय - समय पर अपनी संवेदनाओं को उकेरती रहती है. 


http://www.apnimaati.co'अपनी माटी' वेबपत्रिका साहित्यिक गतिविधियों का एक जीता जागता उदाहरण है  'अपनी माटी' एक ऐसा वेब मंच हैं ,जहां गैर राजनैतिक और धर्म निरपेक्षता की विचारधारा को ध्यान में रखते हुए हम साझेदारी में रचनाओं का प्रकाशन करते हैं.एक पंक्ति में कहा जाए तो कला,साहित्य,रंगकर्म,सिनेमा,समाज,संगीत,पर्यावरण से जुड़े लेख,बातचीत,समाचार,फोटो,साहित्यिक रचनाएँ,रपट छपने और पढ़ने हेतु एक साझा मंच है .यहाँ उन सभी कार्यकर्ताओं और कलाधर्मियों का स्वागत रहता है जो अपने परिवेश के सार्थक विचारों,घटनाओं और चर्चाओं को यहाँ अपने लोगों तक पहुंचाने का मन रखते हैं.



इस प्रकार साझा ब्लोगों ने ब्लॉगजगत में अपनी एक पहचान कायम की है साथ ही सभी ब्लोगर्स को जुड़ने का मौका दिया है जो ये दर्शाता है कि हिंदी को प्रोत्साहित करने में हर इन्सान अपना सहयोग किसी भी रूप से दे सकता है .