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गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

कील.........ख्यालों की

एक ख्याल
दिल की कील
पर लटका पड़ा है
तो एक ख्याल
दिमाग की 
बालकोनी में
सूख रहा है
और कोई ख्याल
तो किसी ख्याल की
अलंगनी पर टंगा है
कौन से कोने से
शुरू करूँ
हर कोना
अपने ख्यालों
की तरह ही
रीता दिखाई
देता है
वहाँ जहाँ
ख्यालों ने
अपनी दुनिया
बसाई थी
हर मोड़ पर
सिर्फ एक
बेवफाई थी
कहीं ना किसी
ख्याल की
सुनवाई थी
सभी ख्यालों
ने शायद
मुझसी ही
किस्मत पाई थी
कुछ कीलें
कभी नहीं
निकलतीं
फाँस सी
ताउम्र
चुभती ही
रहती हैं

38 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

बाहरी कीलों को तो निकाला जा सकता है । लेकिन ह्रदय में चुभी हुई फांस को ताउम्र झेलना पड़ता है।

ASHOK BAJAJ ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति ,बधाई !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सभी ख्यालों में पड़ी यादों की कील।

M VERMA ने कहा…

एक ख्याल
दिल की कील
पर लटका पड़ा है
तो एक ख्याल
दिमाग की बालकोनी मेंसूख रहा है
सुन्दरता से दर्द को बिम्ब के माध्यम से व्यक्त किया है

Deepak Saini ने कहा…

सुन्दर कविता

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ये ख्यालों की कीलें ही हैं जो चुभती हैं तो शब्द बन उतर पड़ती हैं ..अच्छी प्रस्तुति

Devatosh ने कहा…

प्यार की फाँस किसी तरह निकलती ही नहीं,

ख़त जला डालिए, तहरीर तो जलती ही नहीं.....



वंदना जी..... एक ऐसी तलाश जारी है जो शायद है ही नहीं..... मेरी भी...

निर्मला कपिला ने कहा…

सही बात है वन्दना जी कुछ कीलें कभी नही निकलती दिल से। और इस चुभन को मरते दम तक सहन करना पडता है। अच्छी रचना के लिये बधाई।

मेरे भाव ने कहा…

कील को पहली बार विम्ब बनाकर लिखी गई है कविता.. सुन्दर भाव.. ह्रदय को छूती हुई..

बेनामी ने कहा…

वन्दना जी,

सुभाल्लाह......पिछले कुछ दिनों से आपकी लेखनी अपने चरम पर है.....कील....वाह बहुत ही खूबसूरत लगी ये पोस्ट....

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut achchhi abhivyakti .

वाणी गीत ने कहा…

कुछ कीलें कभी नहीं निकलती , निकली नहीं जा सकती ... ताउम्र टीस देती हैं ...
गहन भावों की अभिव्यक्ति !

डॉ. राजेश नीरव ने कहा…

हर मोड़ पर
सिर्फ एक
बेवफाई थी
कहीं ना किसी
ख्याल की
सुनवाई थी
सभी ख्यालों
ने शायद
मुझसी ही
किस्मत पाई थी
.....मार्मिक....सुन्दर...

shikha varshney ने कहा…

इन कीलों ने इतनी सुन्दर कविता तो लिखवा दी :).पर यकीन मानिये हर कील निकलती है बस हथोड़ा सही होना चाहिए.:)

Aashu ने कहा…

शायद मौसम ही ख्यालों का आ गया है. बढ़िया पोस्ट!
यूँही फुर्सत में: कुछ ख्याल!

कडुवासच ने कहा…

... bahut khoob ... behatreen rachanaa !!!

Sunil Kumar ने कहा…

सुन्दरता से दर्द को व्यक्त किया है
बेहतरीन प्रस्तुति ,बधाई

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut badhiyaa ... kuch kahne se upar

डॉ टी एस दराल ने कहा…

इक दर्द का अहसास देती रचना ।

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

bahut hi sahi prastuti . kabhi kabhi aisi faas jo dil me chubh jaaati hai vo laakh nikale nahi nikalti.
poonam

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

क्या इन कीलो पर वक्त अपना असर नहीं छोड़ता ?

सुंदर प्रस्तुति.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत गहन अभिव्यक्ति.

रामराम.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और मार्मिक पोस्ट!
सच तो यह है कि इसी तरह की कील हमें भी रोज-रोज चुभती है!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

कील एक मेरे हिरदय में भी समा गई है.. प्रेम की कील .. सुन्दर कविता.. सुन्दर विम्ब..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत खूब .... इन कीलों से मिलने वाली पीड़ा भी असहनीय होती है.... मन की पीड़ा.... बेहतरीन रचना

मनोज कुमार ने कहा…

बिम्ब और प्रतीक का उत्तम प्रयोग। अच्छी रचना।

प्रेम सरोवर ने कहा…

Is post ko kis ADJECTIVE se alankrit karun ,
kuchh samajh nahi aata hai.
Samichin ADJECTIVE ko khojane ke prayas mein ,
Ek svera phir aa jata hai.
Bahut khoob likha hai aapne. Sadar.

girish pankaj ने कहा…

naye prateekon ke sahare marm ko sparsha karane vali kavita k liye badhai.

Anupriya ने कहा…

wah...kya khub kaha aapne.

लाल कलम ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति ,बधाई

अनुपमा पाठक ने कहा…

ख्यालों की दुनिया खूब संजोयी है...!!!

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

कील भी निकल जाएगी पर निशान नहीं मिटेगा फिर भी हौसला रखना चाहिए और सकारात्मक सोच....बहुत सुंदर रचना

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

सभी ख़यालों ने शायद मुझसी ही किस्मत पाई थी।
ख़यालों के भिन्न बिम्ब ,कील बनकर मन को कुरेदती है । बधाई।

palash ने कहा…

सही कहा आपने , बाहरी कीलें तो सामान लगाने के काम आ जाती है और जब चाहो उनको निकाला भी जा सकता है , मगर मन में चुभी कील क आजीवन निकल पाना संभव नही हो पाता । और हमेशा उस पर दर्द रूपी सामान लटकता ही रहता है

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

dardbhari magar khoobsurat rachna! kabhi kilen to kabhi gulaab banke yaaden yun hi dard deti hain...

vijay kumar sappatti ने कहा…

वंदना ..क्या कहूँ .. पढकर गले में कुछ अटक सा गया शायद आंसू है ...जिंदगी भर कोई इन कीलो का बोझ कैसे सहे ...great work of words with deep pain and emotions...

just hats off....


vijay

rafat ने कहा…

बहुत आनंदित किया आपकी कविता ने . कील चुभी पीड़ा हुई और आनंद भी पीड़ा ने ही मुझे दिया. अच्छा अनुभव आपकी कविता को पढ़ा जाना

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 18/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !