मै मौन का वो शब्द हूं
जो तुम्हारे लिये लिखा गया
जिसे पढने की समझ
सिर्फ़ तुम जानते हो
जिसकी भाषा का हर शब्द
तुम्हारी अंतरआत्मा की
अभिव्यक्ति है
मगर कहती मै हूँ
गुनते तुम हो
एक भाषा जो शब्दो की
मोहताज़ नही होती
सिर्फ़ भावनाओ मे
बिखरी होती है
सिर्फ़ पढने के लिये
तुम्हारी निगाह की
जरूरत होती है
जहाँ की भाषा को
तुम शब्द देते हो
और मौन मुखर हो
जाता है और मैं
व्यक्त
42 टिप्पणियां:
कविता के रूप में अंतर्मन के भावों को बखूबी उभारा है.
सादर
नमस्कार जी
बहोत सुंदर
maun prakhar hota hai , us prakharta ko wahi aatmsaat karta hai , jo maun kahta bhi hai
मौन का लिखा पढ़ पाना अन्तरमन की योग्यता है।
maun ko shabdo me kaise vyakt kar diya:)
bhut khub...........sayad yahi karan hai aapke 305 follower hain....!
regards!
ek bhasha jo shabdon ki mohtaaj nahin hoti.....bohot bohot badhiya
khoobsurat nazm
मै मौन का वो शब्द हूं
जो तुम्हारे लिये लिखा गया
--
रचना का प्रारम्भ आपने बहुत ही रोचक ढंग से किया है!
--
नये विचारों से ओत-प्रोत रचना पढ़कर सुखद लगा!
निगाहों की भाषा में मौन सब कुछ बोल जाता है ।
बहुत सुन्दर रचना वंदना जी ।
वंदना.....आज काफी वक़्त लगा...ये सोचने में कि क्या कहूँ........या क्या क्या ना कहूँ.....
आप कविता लिखतीं हैं.....ये कम है....आप वो आईना हैं...जिसमें मैं अपने आप को देखता हूँ....
और कुछ नहीं कह सकता............बस एहसास.....और क्या कहूँ.....
"अब बारी तुम्हारी......" पर आप कि प्रतिक्रिया का इंतज़ार है........
... gahan bhaavpoorn rachanaa !!!
मौन यानी मुखरित ख़ामोशी ..... जिसे एक प्रेम भरी आत्मा ही पढ़ सकती है....! बहुत सुंदर अभीव्यक्ति...! :)
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
वाह .. मौन के बोलते स्वर ... कितना कुछ कह जाते हैं बिन बोले ही ... गहरी बात है इस रचना में .
Hamara antarman bhee ek paheli sa hota hai!
Bahut,bahut sundar rachana!
yah maun yah shabd ... nirarthak nahin , bahut kuch suna gaye
.
Voice of silence !
Beautiful creation Vandana ji.
Thanks.
.
बात तो सही है। जौहरी ही जानता है हीरे की परख। मौन की भाषा मन रखने वाले ही जानते हैं। आपका मौन सचमुच पढ़ने योग्य है।
बहुत सुंदर कविता जी धन्यवाद
खामोशी की भी एक भाषा तो होती ही है. अभिव्यक्ति का एक नया अंदाज़ .
wah jee wah...kamal kaha hai aapne to...dil khush ho gaya...bahot khubsurat panktiya hai jee.
"और मौन मुखर हो जाता है और मैं व्यक्त !"
वंदना जी,
सही है,भावनाओं का सम्प्रेषण कभी शब्दों का मोहताज नहीं रहा है !
आपकी कविता में शब्दों का चयन बहुत ही प्रभाव पूर्ण है और भाव पक्ष प्रबल है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वाह! सुन्दर...
मौन का मुखर हो जाना!
भाषा को
तुम शब्द देते हो
और मौन मुखर हो
जाता है और मैं
व्यक्त
एक शब्द मे कहूं तो ....
अद्भुत !
कविता अंत में जिस ऊंचाई तक ले गई उसकी अनुभूति असाधारण थी, धन्यवाद।
अन्तरमन की सुन्दर भाषा । मेरे मन में तेरी भाषा । सुन्दर सी अभिलाषा … शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
जहाँ की भाषा को
तुम शब्द देते हो
और मौन मुखर हो
जाता है और मैं व्यक्त
जब भावों को शब्द मिल जाते है तो सही मायने में कविता बन जाती है...... यही न........
बेहतरी कविता.
वंदना जी,
इस भाषा को हम body language कहें तो कैसा रहेगा ?
एक भाषा जो शब्दों की
मोहताज नहीं होती
सिर्फ भावनाओं में
बिखरी होती है
एक मनोवैज्ञानिक सत्य को उद्घाटित करती सुंदर रचना।
वंदना जी आपकी कविताएँ वाकई अंत में एक और नयी कविता के जन्म की सूचना दे जाती हैं|
अंतर्मन के भावों को बखूबी उभारा है.
सुन्दर रचना
जहाँ की भाषा को
तुम शब्द देते हो
और मौन मुखर हो
जाता है और मैं
व्यक्त
बहुत सुन्दर ...स्वयं की अभिव्यति ...सुन्दर रचना
maun ki bhasha swayam mukhar ho rahi hai..
komal bhavon ki sundar rachna..
वंदना जी पिछले कुछ महीनो से मैं मैं आपको लगातार पढ़ रहा हूँ और देख रहा हूँ कि आपकी कविता का क्षितिज दिनों दिन व्यापक हो रहा है.. विम्ब संरचना में भी गहराई आयी है.. मौन को इतना मुखरित कर दिया है आपने इस कविता में कि मौन ने आकार ले लिया है.. उद्वेलित करती कविता..
bahot achchi lagi.
bhtrein rchnaa . akhtar khan akela kota rajsthan
आदरणीय वन्दनाजी
अति सुन्दर
मेरी पोस्ट "जानिए पासपोर्ट बनवाने के लिए हर जरूरी बात" देखियेगा और अपने अनुपम विचारों से हमारा मार्गदर्शन करें.
आप भी सादर आमंत्रित हैं,
http://sawaisinghrajprohit.blogspot.com पर आकर
हमारा हौसला बढाऐ और हमें भी धन्य करें .......आपका अपना सवाई
जहाँ की भाषा को
तुम शब्द देते हो
और मौन मुखर हो
जाता है और मैं
व्यक्त
बहुत सुंदर....
वंदना.....लिख कर मिटाया मत करिए.....कागज़ से कुछ शब्द मिटा देने से......सीने मे दबे भाव नहीं मिटा करते, खून मे बहती हुई.....भावनाओं कि नदी नहीं मिटती.....मुझ को आप के शब्दों मे देखने का एक अवसर आप ने छीन लिया मुझसे.....बहने दीजिये......नदी पर बाँध ना बनाइये.
मौन मुखर हो
जाता है और मैं
व्यक्त!
वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर! बेहतरीन!
सुन्दर रचना!
वंदना जी,
वाह....वाह....बहुत सुन्दर रचना|
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