उम्र के इक पड़ाव पर
सब कुछ अच्छा लगता है
साथी का हर अंदाज़
निराला लगता है
हर खामी भी
इक अदा सी लगती है
उम्र के अगले पड़ाव पर
सब कुछ बदलने लगता है
साथी का सादा वक्तव्य भी
शूल सा चुभने लगता है
शब्दों के रस की जगह
अब ज़हर सा घुलने लगता है
उम्र के आखिरी पड़ाव पर
कुछ भी न अच्छा लगता है
साथी की तो बात ही क्या
अपना साथ भी न अच्छा लगता है
कभी दिल बच्चा बनने लगता है
कभी उम्र का बोझ बढ़ने लगता है
उम्र के इस पड़ाव पर
कोई न चाहत होती है
सिर्फ़ खामोशी होती है
और इंतज़ार ..........................
एक खामोश पल का .........................
16 टिप्पणियां:
समय-समय के साथ सभी कुछ प्यारा लगता है।
अपने उन का साथ, जगत से न्यारा लगता है।।
उम्र जिन्दगी के पड़ाव से आहत होती है।
ढल जाने पर खामोशी की चाहत होती है।।
अपने ्मनोभावों को सुन्दर शब्द दिए है।बधाई।
abhi toaapne itni umra dekhi bhi nahin , itna anubhav, bahut khoob.achcha laga padhkar.
zindgee se etnee berukhi?pdav umar ka koee bhi ho...mousam koee bhi ho aap chahkate rahiye.....bohat hi tang hai es zindgee se magar kreeb ka rishta hai kya kiya jaye...
यही ज़िन्दगी है ..हर पडाव का अपना रंग ..और अंत में या तो खामोशी या इन्तजार ..अच्छी लगी आपकी यह कविता
दिल के भावों और हलचल को बहुत अच्छे अंदाज में बयाँ किया है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
उम्र के अगले पड़ाव पर
सब कुछ बदलने लगता है
साथी का सादा वक्तव्य भी
शूल सा चुभने लगता है
शब्दों के रस की जगह
अब ज़हर सा घुलने लगता है
वाह जी वाह बेहतरीन रचना
कभी दिल बच्चा बनने लगता है
कभी उम्र का बोझ बढने लगता है
सच बहुत ही पसंद आई यह रचना आपकी
बहुत सुंदर रचना है...
jaisi soch vaisa jeevan ras.jaisi nazaren vaise nazaare.pyar do pyar lo iske sivay aur rakha kya.do meethe bol kisi ke bhi man ko jhankrat kar sakte hain. lihko khoob likho likho.badhai.
उम्र के हर पड़ाव हंस जीना ही जिन्दगी है
achchhi lagati hai aapki .........
swabhaawgat wichaar hai ............dont worry be happy.......
ise kahte hain,sashakt,gahan anubhaw.....har padaaw ka sahi aaklan,bahut hi badhiyaa...
"उम्र के पड़ाव पर " रचना पढ़ी. बिलकुल हकीकत से सामना हुआ, पता नहीं जीवन में ऐसी स्थितियाँ क्यों आती हैं. हम में ऐसा क्या हो जाता है जो पहले सबसे अच्छा लगता था उम्र के साथ साथ स्नेह में कमी का अनुभव होने लगता है. मुझे लगता है ये स्थितियाँ आपसी भावनाओं को समझने की कमी के कारण निर्मित होती हैं.
साथी का अर्थ ही होता है कि वो साथ दे. हमें एक दूसरे की भावनाओं को समझना ही होगा और अपने अहम् और अपनी हठ धर्मिता का भी त्याग करना होगा , अन्यथा हमने जिसके साथ खुशियों को हर पल शेयर किया, बाद में उस से ही दूरी !!!, नहीं ये ठीक नहीं है,
- विजय
उम्र के हर पड़ाव को बयान कर दिया। बहुत खूब। इसे पढकर अपनी एक तुकबंदी याद आ गई "बुढापा"
बहुत ही अच्छी रचना!क्या कहना!
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