दिल की मुश्किलें
बढ़ जाती हैं
जब तुम सामने होती हो
ना तुम्हें छू सकता हूँ
ना पा सकता हूँ
तुम्हारे वजूद को
आकार देना चाहता हूँ
जिसे मैंने कभी
देखा भी नहीं
मगर फिर भी
हर पल नज़रों में
समायी रहती हो
तुम्हारे अनन्त
विस्तृत आकाश को
मैं अपने ह्रदयाकाश में
समेटना चाहता हूँ
हर सम्भावना को
स्वयं में समाहित
करना चाहता हूँ
ताकि तुम
तुम्हारा वजूद
हर पल
मेरे अस्तित्व में
एक अदृश्य रेखा सा
मौजूद रहे
37 टिप्पणियां:
वह अदृश्य सी उपस्थिति तो बन ही जाती है, पता भी नहीं चलता है।
पहले उष्ण कटीबंधीय, अब अदृश्य रेखा, यानिकी की अब भूगोलीय कविताई सर्जन ;)
जारी रखिये ...
Kahanse,kaise ye sab soch leti ho? Behad sundar!
तुम्हारे अनन्त
विस्तृत आकाश को
मैं अपने ह्रदयाकाश में
समेटना चाहता हूँ
हर सम्भावना को
स्वयं में समाहित
करना चाहता हूँ
bade hi komal ehsaas hain , ek adhikaar ek apnatw
taki tum...tumhaara wajood...hamesha ke liye mujhme rahe...kya kamaal ka thought hai...lovely nazm :)
तुम्हारे वजूद को
आकार देना चाहता हूँ
जिसे मैंने कभी
देखा भी नहीं...
बिना देखे आकार तो कोई प्रेम में डूबा इंसान ही दे सकता है..
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति...
वो लम्हें जो याद न हों........
दिल की मुश्किलें
बढ़ जाती हैं
जब तुम सामने होती हो
ना तुम्हें छू सकता हूँ
ना पा सकता हूँ
तुम्हारे वजूद को
आकार देना चाहता हूँ
भावपूर्ण व गहरी रचना है। बधाई स्वीकारे वंदना जी।
तुम्हारा वजूद
हर पल
मेरे अस्तित्व में
एक अदृश्य रेखा सा
मौजूद रहे
हृदयस्पर्शी ......सुंदर अदृश्य अहसास....
अदृश्य रेखा भी द्रश्य हो गयी ? एहसास हों तो सब दिखता है ...अच्छी प्रस्तुति
... bahut khoob ... behatreen rachanaa !!!
प्रेम की गहन अभिव्यक्ति.. बहुत सुन्दर..
ताकि तुम्हारा वजूद मेरे अस्तित्व मे एक अदृश्य रेखा सा मौजूद रहे
वाह बहुत सुन्दर भाव। बधाई।
bahut sunder.
यह अदृश्य सी उपस्थिति तो ब्लाग जगत में भी बन जाती है। अच्छी कविता के लिए बधाई।
.
@-ताकि तुम्हारा वजूद मेरे अस्तित्व मे एक अदृश्य रेखा सा मौजूद रहे....
बेहद नवीन और अनोखे अंदाज़ में अभिव्यक्ति।
.
apne se aap batiyati .bhavbhari kavita .sundar prastuti .
वंदना जी,
वाह....वाह......बहुत खूब....ज़बरदस्त|
सुन्दर कोमल भावाभिव्यक्ति...
अद्रश्य रेखा भी दिखने लगती है कभी कभी
सुन्दर रचना
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति.आपकी पोस्ट ने मुझे मेरी पुरानी पोस्ट याद दिला दी
"तरंगें"
"पीछे घूम कर देखती हूँ.
कभी हम पास थे.
इतने, इतने, इतने,
कि सब कुछ साझा था हमारे बीच.
यहाँ तक की हमारी सांसे भी.
दूरी सा कोई शब्द न था, हमारे शब्द कोष में.
अब तुम इतने दूर हो.
कुछ अपरिहार्य कारणों से,
ऐसा तुम कहते हो.
इतने, इतने, इतने,
कि पास जैसा कोई शब्द न रहा,
अब हमारे शब्दकोष में.
कुछ अदृश्य तरंगें भेज रही हूँ तुम्हें.
महसूस कर जरा बताना,
मेरी सांसों कि गति.
पढ़ा है कहीं,
दो सच्चे प्रेम करने वालों के बीच,
होती हैं कुछ अदृश्य,
विद्दुत चुम्बकीय तरंगें,
जो बिना कुछ सुने,
मन का हाल जान लेती हैं."
वाह .. बहुत बढिया !!
Too much of depth.....i liked it vry much...
पांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं
प्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
या हादी
(ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)
या रहीम
(ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)
आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक
{आप की अमानत आपकी सेवा में}
इस पुस्तक को पढ़ कर
पांच लाख से भी जियादा लोग
फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom
wah wah vandna ji....mann ke bhav bahut sundar ukere hain shabdon me...
आपकी इस सुन्दर रचना की चर्चा
बुधवार के चर्चामंच पर भी लगाई है!
आप की कविता पढ कर दिल झुम उठा जी, धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये
Aapse apekshaayen badh rahee hain..
"तुम्हारे वजूद को आकार देना चाहती हूँ जिसे मैंने देखा भी नहीं "
"हर संभावना को स्वयं में समाहित करना चाहता हूँ "
वंदना जी,
कविता की ये पंक्तियाँ बहुत कुछ कह सकने में समर्थ हैं !
साभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
"तुम्हारे वजूद को आकार देना चाहती हूँ जिसे मैंने देखा भी नहीं "
"हर संभावना को स्वयं में समाहित करना चाहता हूँ "
वंदना जी,
कविता की ये पंक्तियाँ बहुत कुछ कह सकने में समर्थ हैं !
साभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सुंदर अदृश्य अहसास..अच्छी प्रस्तुति.सुन्दर भाव ..
बहुत सुन्दर भाव "तुम्हारे वजूद को आकार देना चाहता हूँ " बधाई
आशा
वह अदृश्य उपस्थिति कब और कहाँ साकार हो जाय, कोई नहीं जानता..सुन्दर प्रस्तुति..बधाई.
हृदयस्पर्शी .....अहसास., होले से अदृश्य स्पर्श....
क्या कहा जाए...मन को छूने वाली भावपूर्ण रचना
अदृश्य रेखा की उपस्थिति...
वाह!सुन्दर!
बहुत अच्छी कविता।
सशक्त अभिव्यक्ति
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