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मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

अदृश्य रेखा

दिल की मुश्किलें 
बढ़ जाती हैं
जब तुम सामने होती हो
ना तुम्हें छू सकता हूँ
ना पा सकता हूँ
तुम्हारे वजूद को 
आकार देना चाहता हूँ
जिसे मैंने कभी 
देखा भी नहीं
मगर फिर भी 
हर पल नज़रों में 
समायी रहती हो
तुम्हारे अनन्त 
विस्तृत आकाश को
मैं अपने ह्रदयाकाश में
समेटना चाहता हूँ
हर सम्भावना को
स्वयं में समाहित 
करना चाहता हूँ
ताकि तुम 
तुम्हारा वजूद
हर पल
मेरे अस्तित्व में
एक अदृश्य रेखा सा
मौजूद रहे

37 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वह अदृश्य सी उपस्थिति तो बन ही जाती है, पता भी नहीं चलता है।

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

पहले उष्ण कटीबंधीय, अब अदृश्य रेखा, यानिकी की अब भूगोलीय कविताई सर्जन ;)
जारी रखिये ...

kshama ने कहा…

Kahanse,kaise ye sab soch leti ho? Behad sundar!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तुम्हारे अनन्त
विस्तृत आकाश को
मैं अपने ह्रदयाकाश में
समेटना चाहता हूँ
हर सम्भावना को
स्वयं में समाहित
करना चाहता हूँ
bade hi komal ehsaas hain , ek adhikaar ek apnatw

बेनामी ने कहा…

taki tum...tumhaara wajood...hamesha ke liye mujhme rahe...kya kamaal ka thought hai...lovely nazm :)

Shekhar Suman ने कहा…

तुम्हारे वजूद को
आकार देना चाहता हूँ
जिसे मैंने कभी
देखा भी नहीं...
बिना देखे आकार तो कोई प्रेम में डूबा इंसान ही दे सकता है..
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति...
वो लम्हें जो याद न हों........

संजय भास्‍कर ने कहा…

दिल की मुश्किलें
बढ़ जाती हैं
जब तुम सामने होती हो
ना तुम्हें छू सकता हूँ
ना पा सकता हूँ
तुम्हारे वजूद को
आकार देना चाहता हूँ
भावपूर्ण व गहरी रचना है। बधाई स्वीकारे वंदना जी।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

तुम्हारा वजूद
हर पल
मेरे अस्तित्व में
एक अदृश्य रेखा सा
मौजूद रहे
हृदयस्पर्शी ......सुंदर अदृश्य अहसास....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अदृश्य रेखा भी द्रश्य हो गयी ? एहसास हों तो सब दिखता है ...अच्छी प्रस्तुति

कडुवासच ने कहा…

... bahut khoob ... behatreen rachanaa !!!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

प्रेम की गहन अभिव्यक्ति.. बहुत सुन्दर..

निर्मला कपिला ने कहा…

ताकि तुम्हारा वजूद मेरे अस्तित्व मे एक अदृश्य रेखा सा मौजूद रहे
वाह बहुत सुन्दर भाव। बधाई।

mridula pradhan ने कहा…

bahut sunder.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

यह अदृश्‍य सी उपस्थिति तो ब्‍लाग जगत में भी बन जाती है। अच्‍छी कविता के लिए बधाई।

ZEAL ने कहा…

.

@-ताकि तुम्हारा वजूद मेरे अस्तित्व मे एक अदृश्य रेखा सा मौजूद रहे....

बेहद नवीन और अनोखे अंदाज़ में अभिव्यक्ति।

.

Shikha Kaushik ने कहा…

apne se aap batiyati .bhavbhari kavita .sundar prastuti .

बेनामी ने कहा…

वंदना जी,

वाह....वाह......बहुत खूब....ज़बरदस्त|

रंजना ने कहा…

सुन्दर कोमल भावाभिव्यक्ति...

shikha varshney ने कहा…

अद्रश्य रेखा भी दिखने लगती है कभी कभी
सुन्दर रचना

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति.आपकी पोस्ट ने मुझे मेरी पुरानी पोस्ट याद दिला दी

"तरंगें"

"पीछे घूम कर देखती हूँ.
कभी हम पास थे.
इतने, इतने, इतने,
कि सब कुछ साझा था हमारे बीच.
यहाँ तक की हमारी सांसे भी.
दूरी सा कोई शब्द न था, हमारे शब्द कोष में.
अब तुम इतने दूर हो.
कुछ अपरिहार्य कारणों से,
ऐसा तुम कहते हो.
इतने, इतने, इतने,
कि पास जैसा कोई शब्द न रहा,
अब हमारे शब्दकोष में.
कुछ अदृश्य तरंगें भेज रही हूँ तुम्हें.
महसूस कर जरा बताना,
मेरी सांसों कि गति.
पढ़ा है कहीं,
दो सच्चे प्रेम करने वालों के बीच,
होती हैं कुछ अदृश्य,
विद्दुत चुम्बकीय तरंगें,
जो बिना कुछ सुने,
मन का हाल जान लेती हैं."

संगीता पुरी ने कहा…

वाह .. बहुत बढिया !!

Unknown ने कहा…

Too much of depth.....i liked it vry much...

Thakur M.Islam Vinay ने कहा…

पांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं
प्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
या हादी
(ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)

या रहीम
(ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)

आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक
{आप की अमानत आपकी सेवा में}
इस पुस्तक को पढ़ कर
पांच लाख से भी जियादा लोग
फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

wah wah vandna ji....mann ke bhav bahut sundar ukere hain shabdon me...

बेनामी ने कहा…

आपकी इस सुन्दर रचना की चर्चा
बुधवार के चर्चामंच पर भी लगाई है!

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप की कविता पढ कर दिल झुम उठा जी, धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Aapse apekshaayen badh rahee hain..

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

"तुम्हारे वजूद को आकार देना चाहती हूँ जिसे मैंने देखा भी नहीं "
"हर संभावना को स्वयं में समाहित करना चाहता हूँ "
वंदना जी,
कविता की ये पंक्तियाँ बहुत कुछ कह सकने में समर्थ हैं !
साभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

"तुम्हारे वजूद को आकार देना चाहती हूँ जिसे मैंने देखा भी नहीं "
"हर संभावना को स्वयं में समाहित करना चाहता हूँ "
वंदना जी,
कविता की ये पंक्तियाँ बहुत कुछ कह सकने में समर्थ हैं !
साभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

समय चक्र ने कहा…

सुंदर अदृश्य अहसास..अच्छी प्रस्तुति.सुन्दर भाव ..

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव "तुम्हारे वजूद को आकार देना चाहता हूँ " बधाई
आशा

Akanksha Yadav ने कहा…

वह अदृश्य उपस्थिति कब और कहाँ साकार हो जाय, कोई नहीं जानता..सुन्दर प्रस्तुति..बधाई.

सुज्ञ ने कहा…

हृदयस्पर्शी .....अहसास., होले से अदृश्य स्पर्श....

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

क्या कहा जाए...मन को छूने वाली भावपूर्ण रचना

अनुपमा पाठक ने कहा…

अदृश्य रेखा की उपस्थिति...

वाह!सुन्दर!

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत अच्छी कविता।

adil farsi ने कहा…

सशक्त अभिव्यक्ति