आज तेरी
याद का बादल
ख्यालों से
टकरा गया
एक बिजली सी
गिर गयी
आशियाँ जल गया
कभी हम मिले थे
यूँ ही चलते चलते
किसी अन्जान शहर में
किसी अन्जान मोड़ पर
और एक रिश्ता बना
कुछ तेरा था उसमे
कुछ मेरा था शायद
बह रहे थे समय
के दरिया में दोनों
कभी उफ़ान खाता
सागर था तो
कभी खामोश
रह्गुजारें थीं
मगर तब भी
तुम भी थे
और मैं भी थी
ये अहसास क्या
कम थे
मगर आज
ना तुम हो
ना मैं हूँ
ना हमारे
अहसास हैं
वक्त की गर्द में
दबे शायद
कुछ जज़्बात हैं
जिन्हें तेरी
पूजा की थाली में
उंडेल रही हूँ
जिसे तू खुदा
कहता था
उसी में आज
सहेज रही हूँ
वो तेरा जाना
और मेरा
तड़प जाना
मगर रोक
ना पाना
आज भी
तड़पाता है
तेरे होने का
अहसास कराता है
मुझे मुझसे
चुराता है
मगर यादें परवान
नहीं चढतीं
शायद इसीलिए
अब सदायें
आसमां के पार
नहीं जातीं
और तुझ तक
पहुँच नही पातीं
47 टिप्पणियां:
दिल को छू लेने वाली बहुत गहरे अर्थ प्रकट करती पंक्तियाँ.
सादर
मगर यादें परवान
नहीं चढतीं
शायद इसीलिए
अब सदायें
आसमां के पार
नहीं जातीं
और तुझ तक
पहुँच नही पातीं
सच में कभी कभी मन सदायें नहीं जा पातीं वहां तक........ खूबसूरत भावों की सुंदर प्रस्तुति.....
vandna ji
namaskar
...kmaal ka likhti hain aap
मगर आज
ना तुम हो
ना मैं हूँ
ना हमारे
अहसास हैं
वक्त की गर्द में
दबे शायद
कुछ जज़्बात हैं
कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....
बहुत भावपूर्ण रचना है। बधाई।
न बिजली गिराइये
न आशियाँ जलाइए ..
सदाओं का क्या है
बस दिल में
ताजमहल बनाइये :):):)
खूबसूरत प्रस्तुति
vandana ji.bbahut hi ghan prastuti ke saath sach ko abhivykt karti hai aapki post.मगर यादें परवान
नहीं चढतीं
शायद इसीलिए
अब सदायें
आसमां के पार
नहीं जातीं
और तुझ तक
पहुँच नही पातीं
manko sochane par majboor kar gai ye panktiyan
poonam
वो तेरा जाना
और मेरा
तड़प जाना
मगर रोक
ना पाना
आज भी
तड़पाता है
तेरे होने का
अहसास कराता है
--
वियोग शृंगार की बढ़िया रचना के लिए बधाई!
Aah Vandana! Dard se sarobaar rachana hai...dil me ek tees ubhar gayee.
वाह....वंदना जी....बहुत खूब....काफी रोमांटिक रचना लिखी है इस बार .....सुन्दर
बहुत खूब , अब सदायें नहीं जातीं हैं आसमान के पार , शायद इसलिए क्योंकि इन्सान ने बच्चे की सी फितरत खो दी है ...
... bahut khoob ... shaandaar-jaandaar rachanaa !!!
वाह वियोग और श्रृंगार ..वाह..
bhut hi sundar rachna.....see my blogg "*काव्य-कल्पना*" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ mera margdarshan kare....aapko aabhar
कित्ती प्यारी रचना है...बधाई.
______________
'पाखी की दुनिया' में छोटी बहना के साथ मस्ती और मेरी नई ड्रेस
अब सदायें
आसमां के पार
नहीं जातीं
...dil ko chhu lenevaali rachna.
बहुत नाज़ुक अहसासों के साथ लिखी रचना ।
पर यह धारदार तड़प तो बनी रहे।
बहुत गहन अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
रामराम.
सुंदर कृति है
bahut hi bhavapoorn rachana....
very nice
मगर यादें परवान
नहीं चढतीं
शायद इसीलिए
अब सदायें
आसमां के पार
नहीं जातीं
और तुझ तक
पहुँच नही पातीं..
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति..आँखें नम कर गयी..आभार
एहसास को बहुत खूबसूरती से चित्रित किया है
मगर यादें परवान
नहीं चढतीं
शायद इसीलिए
अब सदायें
आसमां के पार
नहीं जातीं
और तुझ तक
पहुँच नही पातीं
बेहद भावपूर्ण रचना है...
वंदना जी....
काश ऐसा ताल-मेल सुकू-ते-सदा में हो,
उसको पुकारूं मैं, तो उसी को सुनने दे.
प्यार की तड़प, आसमाँ के पार भी जाती है.....
शायद मैं भी यही प्रयोग कर रहा हूँ.....बधाई.
मैं कवि नहीं हूँ......इसलिए शायद ठीक से व्यक्त नहीं कर पाऊं. क्षमा प्रार्थी.
गहन अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं दिल को छू लेने वाली ,बधाई
हर दिन
हर पोस्ट के साथ
गहराती जाती है
प्रेम की आपकी व्याख्या..
सुन्दर कविता...
बहुत गहरे ओर सुंदर भाव लिज़े हे आप की ज़ह रचना, धन्यवाद
दिल को छूती हुई कविता
ऐसे ही कभी कभी कोई मिल जाता है और रिश्ता बन जाता है।
अब सदायें
आसमां के पार
नहीं जातीं
और तुझ तक
पहुँच नही पातीं
बहुत सुन्दर........
बहुत सुन्दर भावों को शब्दों में समेट कर रोचक शैली में प्रस्तुत करने का आपका ये अंदाज बहुत अच्छा लगा, शब्दों व नई कविता के प्रति आपका प्रेम सच्चा लगा.
बहुत सुन्दर भावों को
शब्दों में
समेट कर रोचक
शैली में प्रस्तुत
करने का आपका
ये अंदाज बहुत अच्छा लगा,
शब्दों व नई कविता के प्रति
आपका प्रेम सच्चा लगा.
एक लोकप्रिय-अतिलोकप्रिय-महालोकप्रिय या वरिष्ठ-कनिष्ट-गरिष्ठ ब्लॉगर
सदायें आसमान से पार नहीं जाती ...
इसलिए तुझ तक पहुँच नहीं पाती ...
मुश्किल दौर है ये ...
अच्छी कविता !
आज तेरी याद का बादल .....बहुत सुन्दर
"aaj teri badal"
bahut bhaavpoorna abhivyakti!
यादें परवान नहीं चढ़ती
शायद इसलिए
अब सदाये
आसमां के पार नहीं जाती..
बेहतरीन !!
एक दिन मेरे आंसू मुझसे पूछ बैठे,
मुझे रोज़ रोज़ क्यों बुलाते हो।
मैने कहा हम याद तो उन्हें करते हैं,
तुम क्यों चले आते हो।
आदरणीया वंदना जी :बहुत ही सुंदर रचना है आपकी।
सुंदर प्रस्तुति... ,आभार !!!
वंदना जी, एक और उम्दा प्रस्तुति के लिए बधाई।
वो तेरा जाना
और मेरा
तड़प जाना
मगर रोक
ना पाना
आज भी
तड़पाता है
तेरे होने का
अहसास कराता है
क्या बात है...बड़ा ख़ूबसूरत लिखा है.
वक्त के साथ हालात बदलते हैं इंसान बदलता है ...
सुन्दर रचना !
बहुत सुन्दर। भाव पूर्ण रचना के लिए आभार,
अनजान शहर के अनजान मोड़ पर मिलने और वक्त के ज़ज्बात को पूजा की थाली में उडेलने का भाव मन को छू गया . बहुत अच्छी कविता . बधाई और आभार .
मोहतरमा आपकी दिल छु लेने वाली रचना से फ़राज़ साब की शेर याद आया -अब ना वोह में हूँ ना तू है ना माजी है फ़राज़ /जेसे दो साये तम्मना के सराबों में मिलें .शुक्रिया
वंदना ..
ज्यादा कुछ नहीं कहना है , इस कविता के बारे में .. मेरे collections के लिये इस भेज दो .
vijay
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