पता नहीं
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था
बस जी
रहे थे
यादों की
रोशनाई से
वक्त के
लिहाफ पर
दास्ताँ
लिख के
कुछ तेरी
कुछ मेरी
और कुछ
वक्त की
सलाखों
के पीछे
छुपे सच की
कुछ तेरे
बिखरे
अरमानो की
तो कुछ
मेरे दिल के
छालों पर
गिरते तेरे
अश्कों की
कभी
अश्कों
में छुपे
दर्द की
कलम से
कोई तहरीर
उतर आती थी
और हम
सहम जाते थे
तो कभी
तेरे जलते
दिल की
आग से
एक कोयला
जो रूह को
छू जाता था
हर छाले पर
एक फफोला
और पड़
जाता था
मगर वक्त
अपनी रफ़्तार
से गुजर
रहा था
या कहो
वक्त की
अँधेरी खोह
में से
दो मासूम
दिल
गुजर रहे थे
और वक्त
के साथ
तड़प रहे थे
शायद
कभी वक्त को
रहम आ जाये
और मिलन
हमारा
हो जाये
इसी एक
आस पर
इंतजार के
युग
गुजर रहे थे
43 टिप्पणियां:
कभी वक्त को रहम आ जाये ....बहुत खूबसूरत पंक्तियां ....।
वक्त को कभी तो रहम आयेगा ही
पता नहीं
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था..
बहुत मार्मिक लिखती हैं आप..गहन भावनाओं से परिपूर्ण...कई दिन तक मस्तिष्क में घुमड़ती रहती हैं आपकी पंक्तियाँ..बहुत सुन्दर..आभार
बहुत सुन्दर लिखा है आपने.
बहुत भावपूर्ण व गहरी रचना है। बधाई स्वीकारे वंदना जी।
ये प्रतिक्षा ही तो हमें जिलाये रखते हैं।
एक रंग ये भी रहा इंतज़ार का,
जिस सिम्त नज़र उठ गयी, बस देखते रहे......
वंदना...जी... आप की रचनाओं मे , मैं अपने आप को पाता हूँ...बहुत करीब से गुजरतीं है मेरे....चंद शब्दों मे अपने आप को कह देना.....खासियत है... आप की.....वंदन.
बहुत सुन्दर रचना अभिव्यक्ति .... आभार
पता नहीं
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था
...bhaavpurn, maarmik,sundar rachna.
इसी एक
आस पर
इंतजार के
युग
गुजर रहे थे
...
बस यूँ ही न जाने कितने युग गुज़र जाएँ ...
'asha hi jeevan hai'
dardbhari bhavuk abhivyakti..
आपकी कविताओं पर टिप्पणी के लिये मेरे शब्द मूक हो जाते हैं ।
सदा के समान गूढ अर्थों से सजी बेजोड...
sundar rachnaa
अत्यंत भावपूर्ण रचना.
रामराम.
हम सब मजबूर हैं वक्त के प्रवाह में बहने को
वक्त का मिजाज कब बदल जाएगा-कहा नही जा सकता। जब वक्त बदलेगा तब सब कुछ बदल जाएगा। आपके उदगार दिल को आंदोलित कर गए।
सार्थक पोस्ट।
प्रेम के उद्दत भाव को कितनी सहजता और सरलता से व्यक्त कर देती हैं आप.. अदभुद.. मन भाव से भर उठता है..
समय सबको खा जाता है अन्ततः।
वक्त को कब रहम आया है जो अब आएगा :(
पता नहीं
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था..
बहुत सुन्दर पंक्तियां ....
इंतजार का युग कभी खत्म नहीं होता...............जिन्दगी खत्म हो जाती है.........
बस जी
रहे थे
यादों की
रोशनाई से
वक्त के
लिहाफ पर
xxxxxxxxxxxxx
यही यादें तो जिन्दगी को आशान्वित करती हैं ....शुक्रिया
vandna ji ...kmaal ka likhti hain aap
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
अच्छी रचना , बधाई
अच्छी रचना , बधाई
bohot sundar....
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था..
toooo good !
kal bhi padhi thi ye, shayad comment bhi kiya tha, nazar nahin aaya to phir kar diya ;)
वाकई वन्दना जी!!!
खूबसूरत!!!
"ज़मी से आंच ज़मी तोड़ कर ही निकलती है!
इस कविता को इतना धीरे-धीरे पढ़ा....लगा गोया इक युग लगा.....आखिरी पंक्तियों तक आते-आते पता चला....अरे हाँ....युग तो सचमुच एक बीत ही चुका था....!!
बहुत बार जीवन में ऐसा होता भाई किसी एक बात के लिए इंसान बस प्रतीक्षा करता रहता है ... उम्र गुज़र जाती है पर इंतज़ार ख़त्म नहीं होता ....
बहुत ही भाव पूर्ण रचना है ...
वंदना जी,
वैसे तो पूरी कविता भावनावों को उद्वेलित करती है मगर इन पंक्तियों में नयेपन के साथ बहुत गहराई है!
पता नहीं
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था..
बहुत बहुत साधुवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
इंतजार के युग और मिलन का पल.
वंदना जी,
बहुत खूब....सुन्दर अभिव्यक्ति......एक बात लिहाफ पर दास्ताँ....कुछ अलग सा नहीं है?
... bhaavpoorn rachanaa ... bahut sundar !!!
इंतजार में ही सुख है।
aas par intezaar ke yug ka gujarna...
sundar rachna!
इतना दर्द समेटते समेटते तो वक़्त यूँही गुज़र जाएगा...
बहुत खूब...
सुंदर शब्द व्यंजना से भावों को उकेरा है. इंतज़ार भी कितना और कोई अंत नहीं फिर भी मृगतृष्णा की तरह किये ही जाते हैं. अंतहीन इंतज़ार काश जल्दी खतम हो.
वक़्त बेरहम भी होता है, और वक़्त ही जख्मों को भरता भी है। वक़्त पर किसी का कोई जोर नहीं।
इस अंतहीन प्रतीक्षा में मंजिल से बेहतर लगने लगते हैं रास्ते ...!
मोहतरमा पता नहीं
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था..से शुरू होकर शायद हर पाठक के दिल के छालों को छु गई होगी यह रचना और नम आँखों तक पहुंची होगी .शुक्रिया
main kuch kah nahi paaunga ji
kaise likh leti ho ye sab ..
uttkrisht lekhani...
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