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मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

इंतजार के युग

पता नहीं
हम गुजर 
रहे थे
या 
वक्त हमें
गुजार रहा था 
बस जी 
रहे थे
यादों की 
रोशनाई से 
वक्त के 
लिहाफ पर 
दास्ताँ 
लिख के
कुछ तेरी 
कुछ मेरी
और कुछ
वक्त की
सलाखों 
के पीछे
छुपे सच की
कुछ तेरे
बिखरे 
अरमानो की 
तो कुछ 
मेरे दिल के
छालों पर 
गिरते तेरे
अश्कों की
कभी 
अश्कों 
में छुपे 
दर्द की 
कलम  से
कोई तहरीर 
उतर आती थी
और हम
सहम जाते थे
तो कभी
तेरे जलते 
दिल की 
आग से 
एक कोयला
जो रूह को
छू जाता था
हर छाले पर 
एक फफोला 
और पड़
जाता था
मगर वक्त 
अपनी रफ़्तार 
से गुजर 
रहा था
या कहो
वक्त की
अँधेरी खोह 
में से
दो मासूम 
दिल 
गुजर रहे थे
और वक्त 
के साथ
तड़प रहे थे
शायद 
कभी वक्त को
रहम आ जाये
और मिलन 
हमारा 
हो जाये 
इसी एक 
आस पर
इंतजार के 
युग 
गुजर रहे थे 


43 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

कभी वक्‍त को रहम आ जाये ....बहुत खूबसूरत पंक्तियां ....।

Deepak Saini ने कहा…

वक्त को कभी तो रहम आयेगा ही

Kailash Sharma ने कहा…

पता नहीं
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था..

बहुत मार्मिक लिखती हैं आप..गहन भावनाओं से परिपूर्ण...कई दिन तक मस्तिष्क में घुमड़ती रहती हैं आपकी पंक्तियाँ..बहुत सुन्दर..आभार

ज़मीर ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है आपने.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत भावपूर्ण व गहरी रचना है। बधाई स्वीकारे वंदना जी।

ये प्रतिक्षा ही तो हमें जिलाये रखते हैं।

Devatosh ने कहा…

एक रंग ये भी रहा इंतज़ार का,

जिस सिम्त नज़र उठ गयी, बस देखते रहे......


वंदना...जी... आप की रचनाओं मे , मैं अपने आप को पाता हूँ...बहुत करीब से गुजरतीं है मेरे....चंद शब्दों मे अपने आप को कह देना.....खासियत है... आप की.....वंदन.

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना अभिव्यक्ति .... आभार

arvind ने कहा…

पता नहीं
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था
...bhaavpurn, maarmik,sundar rachna.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

इसी एक
आस पर
इंतजार के
युग
गुजर रहे थे
...

बस यूँ ही न जाने कितने युग गुज़र जाएँ ...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

'asha hi jeevan hai'
dardbhari bhavuk abhivyakti..

Sushil Bakliwal ने कहा…

आपकी कविताओं पर टिप्पणी के लिये मेरे शब्द मूक हो जाते हैं ।
सदा के समान गूढ अर्थों से सजी बेजोड...

sonal ने कहा…

sundar rachnaa

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अत्यंत भावपूर्ण रचना.

रामराम.

Vivek Ranjan Shrivastava ने कहा…

हम सब मजबूर हैं वक्त के प्रवाह में बहने को

प्रेम सरोवर ने कहा…

वक्त का मिजाज कब बदल जाएगा-कहा नही जा सकता। जब वक्त बदलेगा तब सब कुछ बदल जाएगा। आपके उदगार दिल को आंदोलित कर गए।
सार्थक पोस्ट।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

प्रेम के उद्दत भाव को कितनी सहजता और सरलता से व्यक्त कर देती हैं आप.. अदभुद.. मन भाव से भर उठता है..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

समय सबको खा जाता है अन्ततः।

abhi ने कहा…

वक्त को कब रहम आया है जो अब आएगा :(

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

पता नहीं
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था..


बहुत सुन्दर पंक्तियां ....

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

इंतजार का युग कभी खत्म नहीं होता...............जिन्दगी खत्म हो जाती है.........

केवल राम ने कहा…

बस जी
रहे थे
यादों की
रोशनाई से
वक्त के
लिहाफ पर
xxxxxxxxxxxxx
यही यादें तो जिन्दगी को आशान्वित करती हैं ....शुक्रिया

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

vandna ji ...kmaal ka likhti hain aap

शिवम् मिश्रा ने कहा…


बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

शिवा ने कहा…

अच्छी रचना , बधाई

शिवा ने कहा…

अच्छी रचना , बधाई

बेनामी ने कहा…

bohot sundar....
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था..

toooo good !

बेनामी ने कहा…

kal bhi padhi thi ye, shayad comment bhi kiya tha, nazar nahin aaya to phir kar diya ;)

lori ने कहा…

वाकई वन्दना जी!!!
खूबसूरत!!!
"ज़मी से आंच ज़मी तोड़ कर ही निकलती है!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

इस कविता को इतना धीरे-धीरे पढ़ा....लगा गोया इक युग लगा.....आखिरी पंक्तियों तक आते-आते पता चला....अरे हाँ....युग तो सचमुच एक बीत ही चुका था....!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत बार जीवन में ऐसा होता भाई किसी एक बात के लिए इंसान बस प्रतीक्षा करता रहता है ... उम्र गुज़र जाती है पर इंतज़ार ख़त्म नहीं होता ....
बहुत ही भाव पूर्ण रचना है ...

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

वंदना जी,
वैसे तो पूरी कविता भावनावों को उद्वेलित करती है मगर इन पंक्तियों में नयेपन के साथ बहुत गहराई है!
पता नहीं
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था..

बहुत बहुत साधुवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

Rahul Singh ने कहा…

इंतजार के युग और मिलन का पल.

बेनामी ने कहा…

वंदना जी,

बहुत खूब....सुन्दर अभिव्यक्ति......एक बात लिहाफ पर दास्ताँ....कुछ अलग सा नहीं है?

कडुवासच ने कहा…

... bhaavpoorn rachanaa ... bahut sundar !!!

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

इंतजार में ही सुख है।

अनुपमा पाठक ने कहा…

aas par intezaar ke yug ka gujarna...
sundar rachna!

POOJA... ने कहा…

इतना दर्द समेटते समेटते तो वक़्त यूँही गुज़र जाएगा...
बहुत खूब...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

सुंदर शब्द व्यंजना से भावों को उकेरा है. इंतज़ार भी कितना और कोई अंत नहीं फिर भी मृगतृष्णा की तरह किये ही जाते हैं. अंतहीन इंतज़ार काश जल्दी खतम हो.

ZEAL ने कहा…

वक़्त बेरहम भी होता है, और वक़्त ही जख्मों को भरता भी है। वक़्त पर किसी का कोई जोर नहीं।

वाणी गीत ने कहा…

इस अंतहीन प्रतीक्षा में मंजिल से बेहतर लगने लगते हैं रास्ते ...!

rafat ने कहा…

मोहतरमा पता नहीं
हम गुजर
रहे थे
या
वक्त हमें
गुजार रहा था..से शुरू होकर शायद हर पाठक के दिल के छालों को छु गई होगी यह रचना और नम आँखों तक पहुंची होगी .शुक्रिया

vijay kumar sappatti ने कहा…

main kuch kah nahi paaunga ji

kaise likh leti ho ye sab ..

नीलांश ने कहा…

uttkrisht lekhani...