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रविवार, 5 दिसंबर 2010

आहटों के गुलाब

कुछ आहटों के गुलाब
सजाये दिल के
गुलदस्ते में
अब एक एक करके
हर गुलाब
निकालती हूँ
जैसे यादें निकलती हों
दरीचों से
फिर सूखने के लिए
आहों की धूप में
रख देती हूँ
हर काले पड़ते
गुलाब पर
तेरे साये की
सांझ उकेरती हूँ
कहीं कोई गुलाब
फिर से ना खिल जाये
इसलिए हर गुलाब पर
अश्कों का तेज़ाब
उंडेलती हूँ
और इंतज़ार की
शाख पर
आहटों के गुलाबों
की रूह दफ़न
करती हूँ

44 टिप्‍पणियां:

Arvind Jangid ने कहा…

कहीं कोई गुलाब फिर से खिल ना जाए....

अत्यंत संदर भाव!
आपका साधुवाद.

आपके अपने ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है

"तेरे इस बेजान बाबू...."
http://arvindjangid.blogspot.com/

बेनामी ने कहा…

वंदना जी बहुत ही खुबसूरत रचना,,,,
कहीं कोई गुलाब
फिर से ना खिल जाये
इसलिए हर गुलाब पर
अश्कों का तेज़ाब
उंडेलती हूँ
ओह्ह...ऐसा अत्याचार...
याद आने दीजिये वो आहटें...


पहचान कौन चित्र पहेली ...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कुछ आहटों के गुलाब
सजाये दिल के
गुलदस्ते में
अब एक एक करके
हर गुलाब
निकालती हूँ
जैसे यादें निकलती हों
... in yaadon ko nikalte hi din guzarta hai

समय चक्र ने कहा…

"कुछ आहटों के गुलाब
सजाये दिल के .
बहुत ही भावपूर्ण" अभिव्यक्ति ...रहना ... आभार

M VERMA ने कहा…

कहीं कोई गुलाब
फिर से ना खिल जाये
इसलिए हर गुलाब पर
अश्कों का तेज़ाब
ओह मर्मान्तक ॥
कितना दर्द समेटा पल में
क्यूँ तेज़ाब घुला है जल में

ktheLeo (कुश शर्मा) ने कहा…

वाह!गज़ब की अभिव्यक्ति!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

सादर

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मार्मिक चित्रण ....भावपूर्ण रचना ..

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

या खुदा ! अब गुलाब की बारी !

कडुवासच ने कहा…

... bahut khoob ... prasanshaneey !!!

Devatosh ने कहा…

वंदना जी.... वंदन.



अश्कों का तेज़ाब.....अद्भुत.

दिल के गुलदस्ते में यादों के गुलाब....जरा शब्द ढूंढ लेने दीजिये.....

Deepak Saini ने कहा…

भावपूर्ण रचना
कहीं कोई गुलाब
फिर से ना खिल जाये
इसलिए हर गुलाब पर
अश्कों का तेज़ाब
उंडेलती हूँ

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

इन गुलाबों को खिलने दीजिये।

shikha varshney ने कहा…

मार्मिक चित्रण .

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

bahut hi adbhut kavita vandnaji badhai

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अफ .. कितना दर्द भरा है ... सूखते हुवे गुलाब पर अश्कों का तेज़ाब डालना .... पर यादें ख़त्म नही होती फिर भी ...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

मनोभावों को अभिव्यक्त करती एक सुंदर रचना.

राहुल यादव ने कहा…

very nice

JAGDISH BALI ने कहा…

u have depicted well the pains within. Pl visit my blog whicn U have not done since long and if u could pl follow.

Coral ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत रचना वंदना जी ...

rashmi ravija ने कहा…

कुछ आहटों के गुलाब
सजाये दिल के
गुलदस्ते में
अब एक एक करके
हर गुलाब
निकालती हूँ
जैसे यादें निकलती हों
ओहो क्या बात है...अति सुन्दर

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बहुत दर्द छुपा है इन गुलाबों में ।
सुन्दर अभिव्यक्ति ।

केवल राम ने कहा…

वंदना जी.....
हर गुलाब
निकालती हूँ
जैसे यादें निकलती हों
दरीचों से
.......
क्या कहें आपके इस गुलाब के बारे में, मन मोह लिया इसने ...बहुत खूब ...शुक्रिया

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut hi bhavbhari rachna .sundar bhavabhivyakti .

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

गहरी अभिव्यक्ति.................

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वाह बहुत सुंदर अव्हिव्यक्ति.

रामराम.

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत ही खूबसूरती से लिखे हैं मन के भाव

Kunal Verma ने कहा…

माशा अल्लाह! Ma'm,i want that you please read my blog once a time and comment.then,i'll write my next post.
At http://shabdshringaar.blogspot.com

वाणी गीत ने कहा…

आहटों के इतने सुन्दर गुलाब...
उन पर तेजाबी आंसुओं की बारिश तो ना कीजिये ...
उन्हें तो यूँ भी कुछ पल मे बिखर जाना था !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुंदर .... मन के खिलते गुलाबों का क्या कहना ....?

बेनामी ने कहा…

itna dard....uff

khoobsurat nazm

सदा ने कहा…

कहीं कोई गुलाब फिर से खिल ना जाए....

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करती प्रस्‍तुति ।

Dr. Ravindra S. Mann ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत

दिल को छू लेने वाली रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आप और हम चाहे कितना भी तेजाब डालें!
गुलाबों की हँसने की नियति को कौन बदल सका है!
--
सुन्दर कविता!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आप और हम चाहे कितना भी तेजाब डालें!
गुलाबों की हँसने की नियति को कौन बदल सका है!
--
सुन्दर कविता!

Urmi ने कहा…

मन के भावों को आपने बहुत ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! बेहतरीन प्रस्तुती!

बेनामी ने कहा…

वंदना जी,

बहुत खुबसूरत......गुलाब के इर्द-गिर्द रची ये रचना......गुलाब की तरह महकती सी लगी....बस अश्कों का तेजाब मत फेकियें....गुलाब बहुत नाज़ुक हैं झुलस जाएगा......

mridula pradhan ने कहा…

behad achchi lagi.

निर्मला कपिला ने कहा…

अश्कों का तेजाब---- बहुत खूब। अच्छी रचना के लिये बधाई।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

आहटों पर कवियों और ग़ज़लकारों ने ना जने कितनी रचनाएं रची होंगी.. कुछ हमने भी पढ़ी.. लेकिन आहट की तुलना कभी गुलाब से ना देखी.. ना पढ़ी.. ना सोची.. बहुत नया विम्ब है.. कल की अमृता प्रीतम को पढने सा लग रहा है.. एक नए तरह की कविता के लिए बधाई.. शुभकामना..

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

hriday ki komal bhavnavon ki bahut hi marmik abhivyakti hai aapki rachna..
man bhar aaya...
yahi to kavita hai!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना मंगलवार 07-12 -2010
को छपी है ....
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

rafat ने कहा…

आपकी सुंदर रचना ने अचानक वसीम बरेलवी साब का शेर याद दिलाया
किसी गुलाब की खुशबु से हम भी महकेंगे
इसी आस में यहाँ तो मोसम ऐ बहार गया .शुक्रिया