कुछ आहटों के गुलाब
सजाये दिल के
गुलदस्ते में
अब एक एक करके
हर गुलाब
निकालती हूँ
जैसे यादें निकलती हों
दरीचों से
फिर सूखने के लिए
आहों की धूप में
रख देती हूँ
हर काले पड़ते
गुलाब पर
तेरे साये की
सांझ उकेरती हूँ
कहीं कोई गुलाब
फिर से ना खिल जाये
इसलिए हर गुलाब पर
अश्कों का तेज़ाब
उंडेलती हूँ
और इंतज़ार की
शाख पर
आहटों के गुलाबों
की रूह दफ़न
करती हूँ
44 टिप्पणियां:
कहीं कोई गुलाब फिर से खिल ना जाए....
अत्यंत संदर भाव!
आपका साधुवाद.
आपके अपने ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है
"तेरे इस बेजान बाबू...."
http://arvindjangid.blogspot.com/
वंदना जी बहुत ही खुबसूरत रचना,,,,
कहीं कोई गुलाब
फिर से ना खिल जाये
इसलिए हर गुलाब पर
अश्कों का तेज़ाब
उंडेलती हूँ
ओह्ह...ऐसा अत्याचार...
याद आने दीजिये वो आहटें...
पहचान कौन चित्र पहेली ...
कुछ आहटों के गुलाब
सजाये दिल के
गुलदस्ते में
अब एक एक करके
हर गुलाब
निकालती हूँ
जैसे यादें निकलती हों
... in yaadon ko nikalte hi din guzarta hai
"कुछ आहटों के गुलाब
सजाये दिल के .
बहुत ही भावपूर्ण" अभिव्यक्ति ...रहना ... आभार
कहीं कोई गुलाब
फिर से ना खिल जाये
इसलिए हर गुलाब पर
अश्कों का तेज़ाब
ओह मर्मान्तक ॥
कितना दर्द समेटा पल में
क्यूँ तेज़ाब घुला है जल में
वाह!गज़ब की अभिव्यक्ति!
दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
सादर
मार्मिक चित्रण ....भावपूर्ण रचना ..
या खुदा ! अब गुलाब की बारी !
... bahut khoob ... prasanshaneey !!!
वंदना जी.... वंदन.
अश्कों का तेज़ाब.....अद्भुत.
दिल के गुलदस्ते में यादों के गुलाब....जरा शब्द ढूंढ लेने दीजिये.....
भावपूर्ण रचना
कहीं कोई गुलाब
फिर से ना खिल जाये
इसलिए हर गुलाब पर
अश्कों का तेज़ाब
उंडेलती हूँ
इन गुलाबों को खिलने दीजिये।
मार्मिक चित्रण .
bahut hi adbhut kavita vandnaji badhai
अफ .. कितना दर्द भरा है ... सूखते हुवे गुलाब पर अश्कों का तेज़ाब डालना .... पर यादें ख़त्म नही होती फिर भी ...
मनोभावों को अभिव्यक्त करती एक सुंदर रचना.
very nice
u have depicted well the pains within. Pl visit my blog whicn U have not done since long and if u could pl follow.
बहुत ही खुबसूरत रचना वंदना जी ...
कुछ आहटों के गुलाब
सजाये दिल के
गुलदस्ते में
अब एक एक करके
हर गुलाब
निकालती हूँ
जैसे यादें निकलती हों
ओहो क्या बात है...अति सुन्दर
बहुत दर्द छुपा है इन गुलाबों में ।
सुन्दर अभिव्यक्ति ।
वंदना जी.....
हर गुलाब
निकालती हूँ
जैसे यादें निकलती हों
दरीचों से
.......
क्या कहें आपके इस गुलाब के बारे में, मन मोह लिया इसने ...बहुत खूब ...शुक्रिया
bahut hi bhavbhari rachna .sundar bhavabhivyakti .
गहरी अभिव्यक्ति.................
वाह बहुत सुंदर अव्हिव्यक्ति.
रामराम.
बहुत ही खूबसूरती से लिखे हैं मन के भाव
माशा अल्लाह! Ma'm,i want that you please read my blog once a time and comment.then,i'll write my next post.
At http://shabdshringaar.blogspot.com
आहटों के इतने सुन्दर गुलाब...
उन पर तेजाबी आंसुओं की बारिश तो ना कीजिये ...
उन्हें तो यूँ भी कुछ पल मे बिखर जाना था !
सुंदर .... मन के खिलते गुलाबों का क्या कहना ....?
itna dard....uff
khoobsurat nazm
कहीं कोई गुलाब फिर से खिल ना जाए....
बहुत ही सुन्दर भावमय करती प्रस्तुति ।
बहुत ही खुबसूरत
दिल को छू लेने वाली रचना
आप और हम चाहे कितना भी तेजाब डालें!
गुलाबों की हँसने की नियति को कौन बदल सका है!
--
सुन्दर कविता!
आप और हम चाहे कितना भी तेजाब डालें!
गुलाबों की हँसने की नियति को कौन बदल सका है!
--
सुन्दर कविता!
मन के भावों को आपने बहुत ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! बेहतरीन प्रस्तुती!
वंदना जी,
बहुत खुबसूरत......गुलाब के इर्द-गिर्द रची ये रचना......गुलाब की तरह महकती सी लगी....बस अश्कों का तेजाब मत फेकियें....गुलाब बहुत नाज़ुक हैं झुलस जाएगा......
behad achchi lagi.
अश्कों का तेजाब---- बहुत खूब। अच्छी रचना के लिये बधाई।
आहटों पर कवियों और ग़ज़लकारों ने ना जने कितनी रचनाएं रची होंगी.. कुछ हमने भी पढ़ी.. लेकिन आहट की तुलना कभी गुलाब से ना देखी.. ना पढ़ी.. ना सोची.. बहुत नया विम्ब है.. कल की अमृता प्रीतम को पढने सा लग रहा है.. एक नए तरह की कविता के लिए बधाई.. शुभकामना..
बेहतरीन
hriday ki komal bhavnavon ki bahut hi marmik abhivyakti hai aapki rachna..
man bhar aaya...
yahi to kavita hai!
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना मंगलवार 07-12 -2010
को छपी है ....
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
आपकी सुंदर रचना ने अचानक वसीम बरेलवी साब का शेर याद दिलाया
किसी गुलाब की खुशबु से हम भी महकेंगे
इसी आस में यहाँ तो मोसम ऐ बहार गया .शुक्रिया
एक टिप्पणी भेजें