तुम मुझे बातो के बताशे खिलाते हो
अभी आऊँगा थोडी देर मे
तुम से ढेर सी बातें करूंगा
कह जाते हो और मै
आस की ऊँगली थामे
खडी रहती हूँ चौखट पर
एकटक दरवाज़े पर
निगाह टिकाये
जेठ की तपती दोपहर मे
जानते हो इतनी देर मे
एक इंतज़ार की चादर बुन लेती हूँ
कभी देखा है
इंतज़ार के धागो को चीरकर
देखना कभी
हर धागे मे
तुम और तुम्हारा इंतज़ार
ही नज़र आयेगा
जानती हूँ तुम नही आओगे
पता होता है मगर फिर भी
आस का दीपक
जलाये रखती हूँ
कभी करना तुम भी कोशिश
कभी करना तुम भी इंतज़ार
देखना पोर पोर मे
सुईयाँ गुबी मिलेंगी
क्योंकि
इंतज़ार की सिलाई नही होती
सिर्फ़ गुदाई होती है………
54 टिप्पणियां:
इंतज़ार जो करता है दिल से - वही चुभन को जानता है
इंतज़ार!...कितना खुद एक मीठा एहसास होता है!..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
चौखट पर एकटक दरवाज़े पर निगाह टिकाये जेठ की तपती दोपहर मे जानते हो इतनी देर मे एक इंतज़ार की चादर बुन लेती हूँ
बहुत सुन्दर शब्दों में आपने अपने मन के भाव को बाँधा है....आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....!
samajh nahin pa rahi hoon.....kin shabdon men tareef karoo.....is intzar ka.....
वाह वंदना जी..
सच है इंतज़ार का दर्द वाकई सुइयां चुभोता है..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
Sach! Intezaar aisahee hota hai! Jo karwata hai uska bhala hao!
इन्तहा हो गई इंतजार की,इंतजार की घड़ियाँ की चुभन क्या होती है,.....इसकी बहुत सुंदर प्रस्तुति की आपने ,बेहतरीन रचना
welcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
वाह ... अनोखे बिम्ब से सजी रचना ... इन्तेज़ार की सिलाइयां नहीं होती ...
kafi..sundar mann ko chhu gaya...
बहुत बहुत बधाई |
बढ़िया प्रस्तुति ||
इंतज़ार की सिलाई नहीं होती.........वंदना जी आपकी पोस्ट के टॉपिक बहुत अच्छे होते हैं :-)
प्रतीक्षा बड़ी कठिन होती है।
आन्तरिक भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति
ओह्ह ...चुभन गहरी है.
बहुत ही बेहतरीन....
आस का दीपक बुझने न पाए ..उफ़ ..इंतज़ार..
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - " The Politician Who Made No Money - लाल बहादुर शास्त्री " - ब्लॉग बुलेटिन
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - " The Politician Who Made No Money - लाल बहादुर शास्त्री " - ब्लॉग बुलेटिन
इंतज़ार की चुभन को महसूस कराती सशक्त रचना
कभी करना तुम भी कोशिश
कभी करना तुम भी इंतज़ार
देखना पोर पोर मे सुईयाँ गुबी मिलेंगी
इंतज़ार बड़ा मुश्किल होता है... जो करे वही जाने... गहन अनुभूति... आभार
क्या बात कही है वंदना जी, इंतज़ार में सिलाई नही केवल गुदाई होती है । सुंदर प्रस्तुति ।
इंतज़ार के दर्द को बहुत खूबसूरती रचना में पिरोया है आपने.....
लेकिन फिर भी इंतज़ार और अभी....
क्यूँ कि उँगलियों में अभी भी जगह बाकी है...!
लेकिन फिर भी इंतज़ार और अभी....
क्यूँ कि उँगलियों में अभी भी जगह बाकी है...!
बहुत ही सहज सुंदर और मन को छू जाने वाली रचना। बहुत बहुत बधाई
वाह सुंदर
कभी करना तुम भी इंतज़ार ,
देखना पोर-पोर से ,
सुईयां गुथीं मिलेगी ,
तब शायद , इंतज़ार के ,
दर्द का एहसास हो..... !!
अति सुन्दर रचना.... !!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
"इंतज़ार की सिलाई नही होती"
शिर्षक ही सबकुछ बयां कर जाता है।
गज़ब है।
लिंक गलत देने की वजह से पुन: सूचना
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
इंतजार ...और इस चुभन का वर्णन अनुपम प्रस्तुति ।
intjaar men jo pal bitte hai unko jine men bhi ek alag maza hota hai.
man ek hi pal men kai sadiyon ki vyakulta lekar jeene lagta hai.
bahut sundar prastuti.
abhaar.
एक टीस भरी ...सुंदर रचना ...
भावुक रचना ..अच्छी है
Very Nice post
Sachchaaee ke rubru karaatee kavita.
बहुत ही बेहतरीन सुन्दर अभिव्यक्ति!
इंतज़ार एक चुभन पैदा करता मीठा मीठा अहसास ..
बेहद ही सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति ...
सादर !!!
दस हजारी होने पे बहुत-बहुत बधाई ...वंदना जी
इंतज़ार का दर्द...उफ़ कितना मुश्किल होता है...एक एक शब्द में दर्द बिखेरती बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार
अच्छी भाव विह्वल करती रचना ,सच मुच वह प्रतीक्षा कष्ट प्रद होती है जो पूरी नहीं होती -प्रतीक्षा में युग बीत गए ,सन्देश न कोई मिल पाया ,सच बतलाऊँ तुम्हें प्राण ,इस जीने से मरना भाया .
बेहतरीन कविता
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति! इंतज़ार का दर्द भी एक मीठा एहसास होता है..
इंतज़ार की अच्छी अभिव्यक्ति ....
शुभकामनायें !
aakhiri panktiyon ka kya kehna
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
इन्तेज़ार की सिलाई नहीं होती....
सीधे दिल को छू जाने वाली रचना है. बधाई.
कल 17/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
खूबसूरत। इंतजार की पीड़ा में भी सुख है।
मुझे बातों के बताशे खिलते हो
या
इंतज़ार की एक चादर बुन लेती हूँ
अति सुन्दर पक्तियां ,
वाह बहुत उम्दा . आपकी रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद शुभकामनायें
Sundar rachna ....
मेरे भी ब्लॉग में पधारें और मेरी रचना देखें |
मेरी कविता:वो एक ख्वाब था
आत्म प्रकाश =इंतज़ार की सिलाई नहीं होती ,सिर्फ बुनाई होती है |
जानती हूँ तुम नहीं आओगे ,पता होता है मगर फिर भी
आस का दीपक जलाए रहती हूँ | वाह-वाह क्या बात है |
वंदना जी आप में प्रस्तुतीकरण की कला है |
wonderful!
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