सोचा था वर्णित हो जाऊँगी
मौन मुखरित हो जायेगा
वेदना पुलकित हो जायेगी
सुना था………………
एक अरसे के बाद
मौसम फिर पलटता है
ज्वार फिर उठते हैं
ज़िन्दगी फिर मचलती है
मगर ऐसा नही होता
जिस तरह ………
सफ़र मे साथ छूटने के बाद
दोबारा मुसाफ़िर नही मिला करते
उसी तरह ………
सूखी हुई डालियाँ दोबारा अभिसिंचित नही होतीं
शायद तभी
बंद कालकोठरियाँ के नसीब मे
रौशनी के कतरे नहीं लिखे होते हैं……………
मौन मुखरित हो जायेगा
वेदना पुलकित हो जायेगी
सुना था………………
एक अरसे के बाद
मौसम फिर पलटता है
ज्वार फिर उठते हैं
ज़िन्दगी फिर मचलती है
मगर ऐसा नही होता
जिस तरह ………
सफ़र मे साथ छूटने के बाद
दोबारा मुसाफ़िर नही मिला करते
उसी तरह ………
सूखी हुई डालियाँ दोबारा अभिसिंचित नही होतीं
शायद तभी
बंद कालकोठरियाँ के नसीब मे
रौशनी के कतरे नहीं लिखे होते हैं……………
15 टिप्पणियां:
जिंदगी के सफ़र में गुजरा हुआ मुकाम फिर नहीं मिलता है..बहुत सुन्दर..
महेन्द्र जी का कमेंट गलती से डिलीट हो गया पब्लिश करते वक्त तो जो मेल पर आया उसे लगा रही हूँ
mahendra verma ने आपकी पोस्ट " सोचा था वर्णित हो जाऊँगी " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
बंद काल कोठरियों के नसीब में
रोशनी के कतरे नहीं लिखे होते है।
क्या बात है..।
एक अत्युत्तम कविता।
बेहद सुंदर ।
गुज़रे मकाम फिर नही आते पर नये मकाम तो मिलते हैं ।
सफ़र मे साथ छूटने के बाद
दोबारा मुसाफ़िर नही मिला करते
उसी तरह ………
सूखी हुई डालियाँ दोबारा अभिसिंचित नही होतीं
शायद तभी
बंद कालकोठरियाँ के नसीब मे
रौशनी के कतरे नहीं लिखे होते हैं……………
बहुत सुंदर ।
होता है...होता है...ऐसा भी होता है!
काल कोठरियों के नसीब में सूरज कहाँ होता है..!
सोचा था वर्णित हो जाऊँगी " बेहतरीन और बहुत कुछ लिख दिया आपने....
Vaise to beeta vaqt Bhi nahi milta ...
Dil ke bhaav ko prastutkiya hai ...
bhawbhini......behad khoobsurat.
इतनी मायूसी क्यों भला ..डाली सुखी नहीं है पल्लवित होगी :)
वन्दना जी नमस्कार, नव वर्ष की हार्दिक बधाई। बंद काल कोठरियों के नसीब में रोशनी के कतरे नही होते---बहुत खूब्।
आपके पोस्ट पर आकर का विचरण करना बड़ा ही आनंददायक लगता है । कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
बंद काल कोठरियों के नसीब में
रोशनी के कतरे नहीं लिखे होते है।.....बहुत खूब कहा वंदना जी..बहुत सुन्दर...
बंद काल कोठरियों के नसीब में
रोशनी के कतरे नहीं लिखे होते है।
बहुत सुन्दर
बंद कालकोठरियाँ के नसीब मे
रौशनी के कतरे नहीं लिखे होते हैं,
वन्दना जी,..बेहद सुंदर पन्तियाँ लिखी है,भाव पूर्ण बहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन रचना
welcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
बंद काल कोठरियों के नसीब में
रोशनी के कतरे नहीं लिखे होते है।..
वाह !!!!!
बहुत ख़ूब !!!
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