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मंगलवार, 15 मार्च 2011

सखी कह तो कैसे मैं होली मनाऊँ ?

मन मयूर अभी तक
नाचा ही नहीं
कोई चाहत कोठे
चढ़ी ही नहीं
कोई रंग मन को
भाया ही नहीं
उमंग दिल में कोई
उठी ही नहीं
सागर ने कोई
तटबंध तोडा ही नहीं
ना जाने कैसे
इतना निर्जीव
 स्पन्दन्हीन
हो गया है ये मन
सखी , देख तो
होली का कोई रंग
अब तक चढ़ा ही नहीं

कभी देखा है तूने
ठंडी लाश पर
रंग चढ़ते हुए
किसी बुझे चराग को
फिर से जलते हुए
कभी किसी दरख्त पर
टूटा पत्ता दोबारा
लगते हुए देखा है ?
नहीं ना ..............
फिर कह तो
कैसे होली मनाऊँ

कौन से रंग से
मन आँगन भिगाऊँ
कौन सा अबीर
गुलाल लगाऊं
जो मृत अरमानो को
एक बार फिर
संजीवनी मिल जाये
होली का कोई
रंग इन पर भी
चढ़ जाये 
क्या मरा हुआ
कभी कोई
ज़िन्दा हुआ है
बोल ना सखी
कैसे होली मनाऊँ

किसके नेह के
मेह जल से
मेरा मन भीगेगा
कौन से टेसू के फूल
अर्पण करूँ कि
मन आँगन हुलसाने लगे
क्या देखा है तूने कभी
डाली से टूटे
मुरझाये , कुचले , मसले
गुलाब को फिर से
खिलते हुए
बता फिर कैसे 
मेरा मन दोबारा
धरती का सीना
चीरकर लहलहाए
क्या बंजर भूमि भी
कभी उपजी है ?
बोल ना सखी
कैसे किसके संग
किसके लिए
होली मनाऊँ

जहाँ प्रीत का
कोई अंकुर
कभी फूटा ही नहीं
फिर कैसे मन को
बहलाऊँ
कौन सा प्रलोभन दूं
कैसे आस का
एक बीज उगाऊं
सखी कह तो
कैसे मैं
होली मनाऊँ ?

41 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह क्या बात है!
होली पर बहुत गहल सोचवाली रचना लगाई है आपने!
शब्दचित्र बहुत अच्छे हैं!

Shikha Kaushik ने कहा…

man ko chhoo gayee aapki bhavabhivyakti ....bahut gahan udgaron se yukt rachna ..badhai.

POOJA... ने कहा…

इन्हीं रंगों को अपनाइए...
इन्हीं से मोह जगाइए...
प्रेम सारा यहीं है...
प्रेम से होली मनाइए...
बहुत प्यारी, कई भावों को समेटे हुई सुन्दर रचना...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कौन से रंग से
मन आँगन भिगाऊँ
कौन सा अबीर
गुलाल लगाऊं
जो मृत अरमानो को
एक बार फिर
संजीवनी मिल जाये
होली का कोई
रंग इन पर भी
चढ़ जाये
क्या मरा हुआ
कभी कोई
ज़िन्दा हुआ है
बोल ना सखी
कैसे होली मनाऊँ

kya kahun !

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बहुत मार्मिक कविता ! अब तो सब अपने भीतर टटोलेंगे कि होली मनाऊं कि नहीं !

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर और मनमोहक रचना लिखा है आपने! होली के अवसर पर उम्दा प्रस्तुती!

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

बहुत ही सुंदर कविता...होली कैसे मनाये हम...रंगों का त्योहार तो फीका है बेरंग दुनिया में....।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया.

सादर

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

शकुन्तला प्रेस कार्यालय के बाहर लगा एक फ्लेक्स बोर्ड देखे.......http://shakuntalapress.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html क्यों मैं "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा! देखे.......... http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html

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बेनामी ने कहा…

वंदना जी,

सुन्दर अभिव्यक्ति है......

Kailash Sharma ने कहा…

कभी देखा है तूने
ठंडी लाश पर
रंग चढ़ते हुए
किसी बुझे चराग को
फिर से जलते हुए
कभी किसी दरख्त पर
टूटा पत्ता दोबारा
लगते हुए देखा है ? ...

बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना..एक एक पंक्ति अंतस को छू जाती है.

वृजेश सिंह ने कहा…

आपने अच्छी बात कही कि सखी कैसे होली मनाएं जब कोई रंग उनके मन को भाया ही नहीं. पेड़ से टूटे पत्तों को जुड़ते तो नहीं देखा है. लेकिन हाँ नए पत्तों को लगते जरुर देखा है. जो प्रकृति का जीवन सन्देश दे रहे होते हैं कि जीवन में काफी कुछ टूटता और छुट्टा है. लेकिन कुछ जुड़ता भी है इस टूटने और छूटने के दरमयान जो हमें खींचता है जीवन के रंगों की होली की तरफ. आपको होली की हार्दिक बधाई.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

आज तो आपने अपनी रचना बड़े ही निराशा जनक अंदाज में प्रस्तुत की है !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बिना प्रीति के कैसी होली,
रंगना चाहूँ सूरत भोली।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

होली से पहले एक दूसरी कविता आनी चाहिए...जिसमें सखी अपनी दुःखी सहेली को बताये कि यूँ निराश नहीं होते..जब जागो तभी सबेरा।

Atul Shrivastava ने कहा…

होली के पहले इतनी मार्मिक रचना।
मानो दिल में होली जल रही है......

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना
होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अरे ! यह क्या हुआ ? इतनी निराशाजनक बात ? भला क्यों ?
मन मयूर में
नया पंख आने दे
चाहत की पतंग को
आकाश तक चढ जाने दे
खुद ही तटबंद सारे
टूट जायेंगे
एक बार तो
प्रीत का रंग लग जाने दे |

:):):)

रचना में मनोभावों को सटीक शब्द दिए हैं :)

डॉ टी एस दराल ने कहा…

होली तो अभी दूर है । तब तक मन बदल जायेगा ।

एक विशेष भाव में रचना बहुत सुन्दर बन पड़ी है ।

केवल राम ने कहा…

जहाँ प्रीत का
कोई अंकुर
कभी फूटा ही नहीं
फिर कैसे मन को
बहलाऊँ

आपने इतनी सुन्दरता से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया है ...जीवन का रंग हमें जीवन जीने की प्रेरणा देता है ..और होली का रंग हमारे जीवन को उन रंगों से रंगने का साधन बनता है ...आपका आभार

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति !! धन्यवाद

Rakesh Kumar ने कहा…

ये होली का कौनसा रंग है ,जो दर्द का पीर दिल में जगा रहा है.अरमानों की होली जला रहा है,होली में प्रीत का अंकुर तो फूटना ही चाहिए ,वर्ना तो
"जहाँ प्रीत का
कोई अंकुर
कभी फूटा ही नहीं
फिर कैसे मन को
बहलाऊँ
कौन सा प्रलोभन दूं
कैसे आस का
एक बीज उगाऊं
सखी कह तो
कैसे मैं
होली मनाऊँ ?"
वंदना जी! दर्दे दिल इतना ना उछालो,ये कही टूट जायेगा,ये कही फूट जायेगा.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अंतर्मन के मार्मिक भाव लिए होली रचना ..... गहन अभिव्यक्ति

Neeraj ने कहा…

नकारात्मक

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मन के अंतर्भाव उतारे हैं आपने ... पर ऐसा क्यों है ... होली के साथ साथ जीवन के रंगोंको मौका देना चाहिए खिलने का ...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

"'क्या देखा है तूने कभी
डाली से टूटे
मुरझाये,कुचले ,मसले
गुलाब को फिर से
खिलते हुए
बता फिर कैसे
मेरा मन दोबारा
धरती का सीना
चीरकर लहलहाए
क्या बंजर भूमि भी
कभी उपजी है ?"

बहुत ही गहरी संवेदना ....मर्म को छूती हुई ....भावपूर्ण रचना

Kunwar Kusumesh ने कहा…

"जहाँ प्रीत का
कोई अंकुर
कभी फूटा ही नहीं
फिर कैसे मन को
बहलाऊँ
कौन सा प्रलोभन दूं
कैसे आस का
एक बीज उगाऊं
सखी कह तो
कैसे मैं
होली मनाऊँ ?

गुज़रे खराब लम्हों को आज भुलाना है.
होली तो मानना है,होली तो मानना है.

वाणी गीत ने कहा…

हाहाकार मचा है इतना तो वसंत की गीत कोई गाये कैसे , मगर इसे मनाना ही होगा ...
पतझड़ के बाद वसंत का आना तय जो है ,
भावनाओं को अच्छे शब्द प्रदान किये !

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें .

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

सुन्दर रचना ... उम्दा... पर ये दर्द भूलना होगा... :)) होली मनाना होगा...

मनीष सेठ ने कहा…

bahut sunder rachna.

गौरव शर्मा "भारतीय" ने कहा…

वाह हमेशा की तरह बेहतरीन भावाभिव्यक्ति ...

संध्या शर्मा ने कहा…

बहुत ही गहरी संवेदना ....दिल को छूती हुई ....भावपूर्ण रचना...
होली की अग्रिम शुभकामनायें......

Unknown ने कहा…

mamsparshee rachna....par holi par udaasi...kanaha prem ka beej bo kar umang ke sath holi manaiye...

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

होली का कोई
रंग इन पर भी
चढ़ जाये
क्या मरा हुआ
कभी कोई
ज़िन्दा हुआ है
बोल ना सखी
कैसे होली मनाऊँ

jaise bhi manao...:)
lekin preet bahut khubsurti se byan kiya hai..:D

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

यह क्या ? इतनी उदासी ? सारे रंग ही फीके लगने लगे. सखी को भी कहना चाहिए कि रंग तो नयी संभावनाओं के प्रतीक भी होते हैं और अक्सर रंगने के बाद ही कोंपलें फूटती है. खूब जम कर रंग खेलिए फिर देखिये कितना मनमोहक चित्र उभरता है. रंगभरी शुभकामनाएं.

amit kumar srivastava ने कहा…

holi ki hardik shubhkamnaae.

राजेश उत्‍साही ने कहा…

होली तो कब की हो ली,
तेरे मन की चिरैया काहे न बोली।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

वंदना जी OBO परिवार में शामिल होती तो ये उदासी दूर हो जाती ...
हमने तो वहीँ होली खेल ली .....

mridula pradhan ने कहा…

dard bhari......behad gahre bhawonwali.

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

होली की शुभकामनायें...... हैप्पी होली