हर विधा में पारंगत थी
आसमानों को छूती थी
हर क्षेत्र की ज्ञाता थी
सबके मन को भाती थी
नित नए सोपान गढ़ती थी
दिलों पर राज़ करती थी
किसी से कुछ न कहती थी
बस कर्तव्यपालन करती रहती थी
तो हर शख्स की आँख का तारा थी
आखिर धुरी जो थी घर की
मगर इक दिन ऐसा भी आया
जब खुद को उसने
कटघरे में खड़ा पाया
सोच में पड़ गयी थी
जीवन के हर क्षेत्र में
महारत हासिल करते हुए
हर कर्तव्य खूब निभाया
कभी न अनर्गल प्रलाप किया
आत्मावलोकन करती रही
खुद को हर पल छलती रही
और दुनिया की कसौटी पर
खरी उतरती रही
हर मोर्चे पर डटी रही
सबसे सम्मानित भी होती रही
फिर चूक कहाँ पर कैसे हुयी
शायद उसका
पुरुषवादी व्यक्तित्व
न स्वीकार हुआ
फिर भी उसने कभी न उफ़ किया
इन दोहरी मानसिकता के
गुलामों को हमेशा
कमी उसमे ही दिखती रही
आखिर ज़िन्दगी भर उसने
हर दायित्व खूब निभाया
हर कर्त्तव्य को अंजाम दिया
और अब तो उम्र के
उस मुकाम पर आ गयी
जहाँ कर्तव्यों की
इतिश्री हो गयी
फिर कैसे उसे
अयोग्य घोषित कर दिया गया?
इस प्रश्न में उलझ गयी
शायद!
अब वो खुद के लिए
जीने लगी थी इसलिए?
37 टिप्पणियां:
अपने अधिकार ना मांगे तो सच्ची नारी
अपने कष्ट ना बताये वो अच्छी नारी
रोबोट की तरह निभाती रहे सारे दायित्व
वो ही आदर्श नारी .....
अपनी पहचान अगर बनाने लगे तो ....?
सच में वंदनाजी .....कहाँ मिलती है उसे कर्तव्यों को निभाने के लिए कृतज्ञता ...... बहुत अच्छा लिखा आपने...
अब वो खुद के लिए
जीने लगी थी इसलिए...
ऐसा कब होगा आखिर...
वैसे महिला दिवस की शुभकामनाएँ...
यही दोहरी मानसिकता है ...नारी को आगे बढने की बात सब करते हैं लेकिन जब मौके आते हैं तो कर्तव्य की बेडियाँ डाल दी जाती हैं ...नारी चाहे जितने भी मुकाम हासिल कर ले फिर भी उसे अयोग्य ही ठहरा दिया जाता है ...सटीक अभिव्यक्ति
क्योंकि सभी की जिदंगी में एक वक्त ऐसा आता है जब वह अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। मन की वेदना को बेहतर तरीके से पेश किया है आपने।
अब वो खुद के लिये
जीने लगी थी इसीलिए ...
बहुत ही सुन्दर भावों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
महिलाओं को त्याग की मूर्ति कहा जाता है लेकिन यही त्याग की मूर्ति जब अपने अधिकारों की बात करने लगे तो....
बेहतरीन रचना।
ek bahut hi mahatwpoorn pahlu ko khoobsurti ke saath chooa hai aapne.....bahot achcha....
सुन्दर रचना!
मगर यह भी सत्य है कि उगते सूर्य को सब प्रणाम करते हैं!
यही दुनिया की रीत है!
Aaj Wo Apne Liye Ji Rahi Hai Isliye ..Samj Me Kalanki ?????
Aakhir Kyon ????
Umda Post
स्त्री विमर्श को नई दिशा देती आपकी कविता बेहतरीन है...
कविता दोहरी मानसिकता की शिकार स्त्रियों की स्थिति को अच्छी तरह निरुपित कर रही है...!
kai sawal khade karti praabhavshaalee rachna.
अब वो खुद के लिए जीने लगी थी ....
बहुत खूब ... सच है औरत जब अपने आपके लिए जेती है तो ये पुरुष समाज सह नहीं पाटा ... तोहमत ही लगाता है ...
बहुत पते की बात कही है आपने ...
वंदना जी,
बहुत सुन्दर......एक स्त्री के मनोभावों का सुन्दर समावेश किया है आपने इस पोस्ट में.....
बस एक ही शब्द मुह से निकलता है, स्वार्थी दुनिया !
बहुत खूब वंदना जी ... नारी के सामान अधिकारों की बात तो सब करते हैं ... पर जब सच में उसे ये अधिकार देने की बात आती है तो उसे कई तरह की 'उपाधियाँ' दी जाती हैं ...
bahut badhiya post.....aadarsh naaree sirf daayityon kaa vahan hi kyon kare use adhikaar bhi paane kaa hak hai...vaajib baat kah di aapne.
बहुत अच्छा लिखा आपने...
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के साथ इन्सान के दोहरी मानसिकता का अच्छा चित्रण किया है आपने...
सार्थक एवं प्रभावी लेखन के लिए शुभकामनायें...
बहुत ही सुन्दर भावों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति|
धन्यवाद|
बहुत ही सशक्त लिखा है आपने.
रामराम.
फिर कैसे उसेअयोग्य घोषित कर दिया गया?इस प्रश्न में उलझ गयी शायद!अब वो खुद के लिए जीने लगी थी इसलिए?
बहुत कटु सत्य..बहुत सार्थक और सशक्त प्रस्तुति. आभार
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बहुत सुंदर ओर बेहतरीन रचना, धन्यवाद
acchi rachna hai...
ummeden rakhte sab hain
par ummedon ko bhi samajhana chahiyye..
sirf soch se nahi
saath to sabka dena chahiye jo iska adhikaari hai...
rab raakha...
क्या कहें...
यही मानसिकता है
भावनाओं को सम्मान मिले।
At times people get biased in judging a woman . Very impressive creation .
बहुत ही सुन्दर भावों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति|
महिला दिवस की शुभकामनाएँ|
शायद ! अब वो खुद के लिए जीने लगी थी इसलिए...नारी के मनोभाव को अभिव्यक्ति देती एक सुन्दर रचना।
वंदना जी आप की इस सशक्त कविता पर आदरणीया संगीता जी की बेबाक राय से असहमत होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है|
HAPPY WOMEN'S DAY.
sach aur satik likha aapne . naari dohri mansikta ki shikar hamesha se rahi hai aur use milne vale challanges bhi bahut kade/ kathin hote rahe hain. naari ne samay samay par apne saamartya aur shakti ka loha manvaya hai ! aapki kavita ek katu-satya ka varnan karti hai. shubhkamnayen !
arey bhai isme itna sochne ki kya baat hai...jahan nari ne khud ke liye sochna shuru kiya vahin se ayogy saabit kar di gayi....yahi to purush pradhaan samaaj kahlata hai.
दोहरी मानसिकता पर तीखा प्रहार -
सुंदर रचना .
नारी जीवन की विडंबनाओं का सस्जक्त चित्रण किया है ! अत्यंत प्रभावशाली रचना ! बधाई स्वीकार करें !
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