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गुरुवार, 27 जनवरी 2011

कभी सोचना इस पर कैसे मै जीती हूँ …………

किसी के धरातल पर उतरना
उसके भावों को महसूसना
फिर उन्हे खुद मे समाहित करना
और फिर वापस मुडकर
अपने धरातल पर आना
क्या समझते हो
आसान होता है क्या?
और देखो मै
रोज तुम्हारे धरातल पर
उतरती हूँ
तुम्हे जीती हूँ
तुम्हारी आकांक्षाओं को
सहेजती हूँ
और फिर खुद मे
समाहित करती हूँ
और फिर खुद से लडती हूँ
तब कहीं जाकर
अपने धरातल पर
वापसी कर पाती हूँ

कभी तुम एक बार
मेरे धरातल पर आकर तो देखो
मुझे कुछ पल जीकर तो देखो
मुझमे बहते तूफ़ान से लडकर तो देखो
मेरी भावनाओं मे सिमट कर तो देखो
मेरे मन के आँगन की मिट्टी को छूकर तो देखो
देखना फिर तुम तुम न रहोगे
वापसी की हर राह बंद हो जायेगी
जिधर भी देखोगे सिर्फ़
तुम्हारा ही वजूद होगा
तुम्हारी ही कहानी होगी
तुम्हारा ही ख्याल होगा
तुम्हारा ही दर्द होगा
बताओ फिर कैसे तुम
खुद से बच पाओगे
और मेरे धरातल से
अपने धरातल तक का
सफ़र तय कर पाओगे

ये मन के धरातल
बहुत कमजोर होते हैं
यहाँ साथी कोई नही होता
और जंग बहुत होती है
कभी खुद से तो कभी
भावनाओ से तो कभी
अतृप्त इच्छाओ से
और फिर दूजे के लिये
अपना वजूद मिटाना होता है
तब कही जाकर
अपने धरातल पर
आना होता है
और मुझे पता है
तुम ऐसा कभी नही कर पाओगे
जानती हूँ तुम पुरुष हो ना
तुम्हारी चाहतें
तुम्हारी क्षमतायें
तुम्हारी सीमायें
तुम्हे ऐसा करने से रोकेंगी
तभी मुझे दोनो रूप
जीने पडते हैं
और तुम्हारे धरातल के साथ
अपने धरातल तक का सफ़र
रोज तय करती हूँ
कभी सोचना इस पर
कैसे मै जीती हूँ …………

45 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

is gudh chintan ka main samman karti hun... kisi ke dharatal pe utarker sochna her kisi ke vash ki baat nahin ...bahut hi khoobsurat rachna

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...भावपूर्ण रचना है...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन जबरन बुद्धि का हरण कर लेता है, क्या कीजियेगा?

बेनामी ने कहा…

वंदना जी,

तालियाँ.......बहुत ही गहरी बात कही है आपने......सुन्दरतम अभिव्यक्ति है...सच है किसी के अहसासों को महसूस करना और उसकी तरह से जीना बहुत कठिन है ......बहुत सुन्दर|

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut gahre bhavon ko abhivyakt karti kavita .aabhar .

Deepak Saini ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...भावपूर्ण रचना है...

Sushil Bakliwal ने कहा…

बहुत उत्तम अभिव्यक्ति...
लगता है जैसे समस्त स्त्रियों की मनोस्थिति की झलक आपकी इस रचना में दिख रही हो ।

सदा ने कहा…

ये मन के धरातल बहुत कमजोर होते हैं ..बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ...।

mridula pradhan ने कहा…

kya shabd hain aur kya bhaw hain ,bemisaal.

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय वंदना जी
नमस्कार !
बहुत खूब कहा है आपने
गहन भावयुक्त एक प्रशंसनीय कविता।

गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!

Happy Republic Day.........Jai HIND

संजय भास्‍कर ने कहा…

कभी तुम एक बार
मेरे धरातल पर आकर तो देखो
मुझे कुछ पल जीकर तो देखो
मुझमे बहते तूफ़ान से लडकर तो देखो
मेरी भावनाओं मे सिमट कर तो देखो
मेरे मन के आँगन की मिट्टी को छूकर तो देखो

..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

एक और बेहतरीन कविता.. प्रेम की गहन अभिव्यक्ति है इस कविता में.. मन को उद्वेलित कर गई कविता.. मन के धरातल पर उतार ह्रदय में समा गई कविता की सभी पंक्तियाँ

सुज्ञ ने कहा…

क्या ही गहन चिन्तन है,सार्थक अभिव्यक्ति।
अहसासो का शानदार चित्रण!!

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति.

Alokita Gupta ने कहा…

bhawpurn prastuti

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

वाह ! वंदना जी,
इस कविता का तो जवाब नहीं !
विचारों के इतनी गहन अनुभूतियों को सटीक शब्द देना सबके बस की बात नहीं है !
कविता के भाव बड़े ही प्रभाव पूर्ण ढंग से संप्रेषित हो रहे हैं !
आभार!

shikha varshney ने कहा…

बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

kshama ने कहा…

Wah! Vandana! Phir ekbaar kamal kar diya!

बेनामी ने कहा…

nice poem
really like it
chk out my blog also
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

nari man ki abhivyakti karti sunder kavita
sahityasurbhi.blogspot.com

केवल राम ने कहा…

तुम्हारी आकांक्षाओं को
सहेजती हूँ
और फिर खुद मे
समाहित करती हूँ


मन को वश मवन करना कठिन है ....और यह जिन्दगी को हिचकोले देता रहता है ...अति सुंदर लेकिन सोचने पर मजबूर करती कविता ....शुक्रिया

निर्मला कपिला ने कहा…

वन्दना ,बहुत मुश्किल है धरातल का ये सफर। सुन्दर रचना के लिये बधाई और बहुत दिनो बाद आने के लिये क्षमा भी। शुभकामनायें।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

nice

Dr Xitija Singh ने कहा…

कभी तो कोई पुरुष उतरे किसी स्त्री के मन के धरातल पे ... और जी के दिखे उसे ... बहुत सुंदर .... कमाल का चित्रण वंदना जी ...

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुंदर भावपूर्ण रचना, धन्यवाद

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

गज़ब की पोस्ट ....बहुत सुन्दर

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण और विचारणीय प्रस्तुति..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मन और मस्तिष्क का अक्सर मेल नहीं होता.... सुंदर ..भावपूर्ण

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

seedhe man ke dharatal par utarti rachna hai vandna ji.... man ko samjahne ke bahut badhiya prayas laga yah

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

वाह,धरातल के इस दिव्य रूप ने मनेभावों को बेहद प्रभावित किया। अनुभूतियों के निखार से कविता सहजतापूर्वक अपनी बात कह जाती है। एक सुंदर रचना।

मेरे भाव ने कहा…

किसी के धरातल पर उतरना
उसके भावों को महसूसना
फिर उन्हे खुद मे समाहित करना
और फिर वापस मुडकर
अपने धरातल पर आना
क्या समझते हो
आसान होता है क्या?.....

गहन चिंतन. किसी दूसरे के धरातल पर उतरकर वापस अपने धरातल पर आना और अपने वजूद को कायम रखना आसान नहीं

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

वंदना जी,
बहुत सुन्दर रचना
लेकिन तारीफ के लिए शब्द नही है!

रंजना ने कहा…

बस...
वाह !!!
वाह !!!
वाह !!!

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

शब्दों और भावों का सुंदर संयोजन....
बहुत सुंदर रचना..बधाई

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

शब्दों और भावों का सुंदर संयोजन....
बहुत सुंदर रचना..बधाई

ZEAL ने कहा…

उम्दा रचना !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

रोज तुम्हारे धरातल पर
उतरती हूँ
तुम्हे जीती हूँ
तुम्हारी आकांक्षाओं को
सहेजती हूँ
और फिर खुद मे
समाहित करती हूँ
और फिर खुद से लडती हूँ
तब कहीं जाकर
अपने धरातल पर
वापसी कर पाती हूँ

सच है यह एक स्त्री ही कर सकती है ...धरातल को भी एकाकार करना आसाँ नहीं है ..खूबसूरत बिम्ब से सजी अच्छी रचना

amit kumar srivastava ने कहा…

yeh shakti aur kshamta ishvar ne keval naari ko hi di hai ki, voh sabhi ke dharatal par utar kar unki bhavnai samajh kar uske anusaar kaarya karti hai....nice post.

amit kumar srivastava ने कहा…

yeh shakti aur kshamta ishvar ne keval naari ko hi di hai ki, voh sabhi ke dharatal par utar kar unki bhavnai samajh kar uske anusaar kaarya karti hai....nice post.

प्रेम सरोवर ने कहा…

मानवीय धरातल पर आपकी अभिव्यक्ति मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गयी। किसी के मन में स्थायी रूप से बस जाने के बाद भी प्रेम के अनन्य पल मन में रच बस जाते हैं क्योंकि मन तो एक ही होता है,दस बीस तो होता नही है। आपके उदगार प्रशंसनीय हैं।धन्यवाद।

Anupriya ने कहा…

i m totally speechless...u r just waooooooooooooooooooooooooooooooo.
love u.
: )

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

संध्या शर्मा ने कहा…

रोज तुम्हारे धरातल पर
उतरती हूँ
तुम्हे जीती हूँ
तुम्हारी आकांक्षाओं को
सहेजती हूँ
और फिर खुद मे
समाहित करती हूँ
और फिर खुद से लडती हूँ
तब कहीं जाकर
अपने धरातल पर
वापसी कर पाती हूँ..
एक स्त्री के अंतर्मन के उठते सवालों और भावो का सटीक चित्रण है, आपकी रचना में..शब्दों और भावों का सुंदर संयोजन...

vijay kumar sappatti ने कहा…

vandana , this is one of your best ... bahut khushi hui tumhari is rachna ko padhkar , bahut hi saarthak poem hai .. aaj ki naari par sahi likha hai .. badhayi

विभूति" ने कहा…

bhut khubsurati se bhaavo ko sabdo me piroya hai apne... very nice...