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रविवार, 23 जनवरी 2011

मगर झीलें कब बोली हैं ?

एक ठहरी हुई
निश्छल शांत झील
अपनी गति से
प्रवाहमान
जिसमे हर कोई
अपना अक्स
देख सकता है
आते हैं रोज
कुछ लोग
अपनी रूह से
रु-ब-रु होने
अपने ही प्रतिबिम्ब
में छुपे अपने
मूल रूप को
देखकर उद्वेलित
हो जाते
होशो हवास
बेकाबू हो जाते
और फिर
एक कंकड़
मार कर
झील के ठहरे
पानी में
अपने अक्स
की गंदगी
छुपाने की
कोशिश में
झील का भी
सौंदर्य बिगाड़ देते
मगर झीलें
कब बोली हैं ?


हर वेदना
हर कुरूपता
हर ठोकर
की साक्षी बनी हैं
तभी तो
गहनता की
मिसाल बनी हैं
समेट लिया
स्वयं में
हर हलचल को
हर भंवर को
हर उठते
तूफ़ान को
और फिर
एक बार
अपने खामोश
सफ़र पर
चल पड़ती हैं
वेदना की
जलती चट्टानों पर
झीलों की खामोश
आहें जब
सिसकती हैं
तूफ़ान भी
थम जाते हैं
जब ख़ामोशी
उनमे पलती है
मगर
झीलें कब
बोली हैं ?


झीलें तो सिर्फ
अपने वजूद में ही
सिसकी हैं
अपने वजूद में ही
ठहरी हैं
ख़ामोशी की कब्र
में ही दफ़न हुई हैं
मगर झीलें
कभी नहीं
बोली हैं ..............

53 टिप्‍पणियां:

mridula pradhan ने कहा…

atyant hi rochak andaz hai likhne ka.wah.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

आते हैं रोज
कुछ लोग
अपनी रूह से
रु-ब-रु होने
अपने ही प्रतिबिम्ब
में छुपे अपने
मूल रूप को
देखकर उद्वेलित
हो जाते
होशो हवास
बेकाबू हो जाते
और फिर
एक कंकड़
मार कर
झील के ठहरे
पानी में
अपने अक्स
की गंदगी
छुपाने की
कोशिश में
झील का भी
सौंदर्य बिगाड़ देते
मगर झीलें
कब बोली है?


बहुत बढिया अभिव्यक्ति !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

और फिर
एक कंकड़
मार कर
झील के ठहरे
पानी में
अपने अक्स
की गंदगी
छुपाने की
कोशिश में
झील का भी
सौंदर्य बिगाड़ देते हैं ...

बहुत गहन बात ....झील का बिम्ब अच्छा लगा ...मैं झील को नारी के रूप में देख रही हूँ ....अच्छी अभिव्यक्ति

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चेहरा हम, झील शान्त होने के बाद देख लेते हैं। सुन्दर कविता।

Satish Chandra Satyarthi ने कहा…

"अपने अक्स
की गंदगी
छुपाने की
कोशिश में
झील का भी
सौंदर्य बिगाड़ देते हैं"
गज़ब की कल्पना.. बेहतरीन कविता...

Kailash Sharma ने कहा…

और फिर
एक कंकड़
मार कर
झील के ठहरे
पानी में
अपने अक्स
की गंदगी
छुपाने की
कोशिश में
झील का भी
सौंदर्य बिगाड़ देते
मगर झीलें
कब बोली है?

बहुत भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

वेदना की
जलती चट्टानों पर
झीलों की खामोश
आहें जब
सिसकती हैं
तूफ़ान भी
थम जाते हैं
जब ख़ामोशी
उनमे पलती है
मगर
झीलें कब
बोली हैं ?
........... bolti hain , kabhi ruko ... siskiyaan akele mein baaten karengi ...
bahut nam rachna

बेनामी ने कहा…

झीलें तो सिर्फ
अपने वजूद में ही
सिसकी हैं
अपने वजूद में ही
ठहरी हैं
ख़ामोशी की कब्र
में ही दफ़न हुई हैं
मगर झीलें
कभी नहीं
बोली हैं .............
--
बहुत सुन्दर रचना!
झील ठहर सकती है
मगर सरिताएँ और नहर तो
चलती ही रहेंगी
अपनी अनन्त यात्रा पर!

समय चक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना ... आभार

Rahul Singh ने कहा…

झील सी और झील की सतह पर बनते-बिगड़ते अक्‍स.

मनोज कुमार ने कहा…

भाषा की सर्जनात्मकता के लिए विभिन्न बिम्बों का उत्तम प्रयोग!

Alokita Gupta ने कहा…

bahut hi sargarbhit rachna

Anupriya ने कहा…

bandana jee, bahut sundar rachna...aapjaanti hain,aapki jyadatar rachnaye kisi alag duniya men le kar jaati hain...

mere blog par lagataar aa kar mera hausla badhane ka bahot bahot dhanyawaad...

Anupriya ने कहा…

ek aur link bhej rahi hun...hasya men kuch pryaas kiya hai...agar waqt mile padh kar bataiyega jarur ki aage pryaas karun yaa nahi...
aapki rai maine rakhti hai...
intjaar rahega.

Anupriya ने कहा…

http://anupriya-anusays.blogspot.com

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

"..झीलें तो सिर्फ
अपने वजूद में ही
सिसकी हैं
अपने वजूद में ही
ठहरी हैं..."

दिल को छू गयीं ये पंक्तियाँ.

सादर

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत ही सुन्दर ....
वंदना जी कहाँ से लाती हैं ये अहसास का दरिया .....

nilesh mathur ने कहा…

वाह! बेहतरीन अभिव्यक्ति, बहुत ही सुन्दर शब्द और भाव!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

झील का बिम्ब लेकर जीवन की कविता अच्छी लगी.. आपका व्यापक आयाम प्रभावित करता है..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सच में झीलें कहाँ अपनी वेदना कहती हैं....

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुंदर अभिव्यक्ति

palash ने कहा…

झील की खामोशी को बहुत खूबसूर शब्द दिये है आपने

राजीव तनेजा ने कहा…

अति सुन्दर...

वाणी गीत ने कहा…

अपनी प्रतिबिम्ब से घबरा कर झील में पत्थर उछल कर उसका सौंदर्य बिगड़ने में लग जाते हैं ...
भावों के बहाव में बहा ले जा रही है कविता ...

रश्मि जी से सहमत हूँ ...बोलती हैं झीलें भी ...उनकी खामोशियों में भी कितनी आवाज़ होती है ..

Anupam Karn ने कहा…

शांत, ठहरे हुए पानी की की वेदना!
साफ दिख जाती है जब हम अपना प्रतिबिम्ब उसमे नही देख पाते|
बिन बोले ही अहसास करा जाती है सब!

Unknown ने कहा…

झीलें कब बोलती हैं ? सतह पर बहुत कुछ घटता रहता है !बहुत गहराई है

रचना दीक्षित ने कहा…

कहने को झील है पर समेटे है कितने समुन्दर. लाजवाब...

बेनामी ने कहा…

वंदना जी,
बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति है .....झील की गहराई और शांति निहित है इस पोस्ट में.....मुझे पहली पंक्तियाँ सबसे अच्छी लगी....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है .. झीलें बोलती नहीं .. पर समझती हैं कौन उनका सोंदर्य बिगाड़ना चाहता है ...
बहुत ही गहरी बात लिए होती है आपकी रचना ...

सदा ने कहा…

बहुत खूब कहा है आपने ...उम्‍दा रचना के लिये आभार ।

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

प्रकृति शांत होती है तो पुरुष चलता है किन्तु जब पुरुष शांत होता तो प्रकृति अपना कार्य दक्षता से करती है और कोई प्रतिरोध नहीं करती.पृथ्वी भी अनंत है निरंतर भार वहन करती है इसी तरह नारी भी प्रकृति रूप , पृथ्वी रूप गहन है उसी झील कि तरह . सजीव मानवीयकरण .

shikha varshney ने कहा…

bahut sundar ahsaspurn abhivyakti.

PAWAN VIJAY ने कहा…

"अपने अक्स
की गंदगी
छुपाने की
कोशिश में
झील का भी
सौंदर्य बिगाड़ देते हैं"
सत्य है

अपर्णा ने कहा…

magar jheelen kab boli hain ...
shaandar abhivyakti...

मेरे भाव ने कहा…

झील हमेशा अपनी गहराई के लिए ही जानी जाती रही है . इस गहराई में बहुत कुछ समेटे हुए . शुभकामना

ZEAL ने कहा…

बेहतरीन परिकल्पना...

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

वाकई गहनता की मिसाल हैं झीलें....मगर झोलें कब बोली हैं

बहुत ही मनभावन रचना.....

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

'मगर झीलें
कभी नहीं बोली हैं ..'
मौन रहना झील की नियति ही है ...
बहुत ही गहरे भावों (झील की गहराई जैसे ) की सुन्दर अभिव्यक्ति
है आप की रचना |
दिल की गहराई तक चोट करती है ,वह भी मीठे अंदाज़ में |

Unknown ने कहा…

जनाब जाकिर अली साहब की पोस्ट "ज्‍योतिषियों के नीचे से खिसकी जमीन : ढ़ाई हजा़र साल से बेवकूफ बन रही जनता?" पर निम्न टिप्पणी की थी जिसे उन्होने हटा दिया है. हालांकि टिप्पणी रखने ना रखने का अधिकार ब्लाग स्वामी का है. परंतु मेरी टिप्पणी में सिर्फ़ उनके द्वारा फ़ैलाई जा रही भ्रामक और एक तरफ़ा मनघडंत बातों का सीधा जवाब दिया गया था. जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाये क्योंकि उनके पास कोई जवाब नही है. अत: मजबूर होकर मुझे उक्त पोस्ट पर की गई टिप्पणी को आप समस्त सुधि और न्यायिक ब्लागर्स के ब्लाग पर अंकित करने को मजबूर किया है. जिससे आप सभी इस बात से वाकिफ़ हों कि जनाब जाकिर साहब जानबूझकर ज्योतिष शाश्त्र को बदनाम करने पर तुले हैं. आपसे विनम्र निवेदन है कि आप लोग इन्हें बताये कि अनर्गल प्रलाप ना करें और अगर उनका पक्ष सही है तो उस पर बहस करें ना कि इस तरह टिप्पणी हटाये.

@ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा "और जहां तक ज्‍योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ,"

जनाब, आप निहायत ही बचकानी बात करते हैं. हम आपको विद्वान समझता रहा हूं पर आप कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. आप जैसे लोगों ने ही ज्योतिष को बदनाम करके सस्ती लोकप्रियता बटोरने का काम किया है. आप समझते हैं कि सिर्फ़ किसी की लिखी बात पढकर ही आप विद्वान ज्योतिष को समझ जाते हैं?

जनाब, ज्योतिष इतनी सस्ती या गई गुजरी विधा नही है कि आप जैसे लोगों को एक बार पढकर ही समझ आजाये. यह वेद की आत्मा है. मेहरवानी करके सस्ती लोकप्रियता के लिये ऐसी पोस्टे लगा कर जगह जगह लिंक छोडते मत फ़िरा किजिये.

आप जिस दिन ज्योतिष का क ख ग भी समझ जायेंगे ना, तब प्रणाम करते फ़िरेंगे ज्योतिष को.

आप अपने आपको विज्ञानी होने का भरम मत पालिये, विज्ञान भी इतना सस्ता नही है कि आप जैसे दस पांच सिरफ़िरे इकठ्ठे होकर साईंस बिलाग के नाम से बिलाग बनाकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने लग जायें?

वैज्ञानिक बनने मे सारा जीवन शोध करने मे निकल जाता है. आप लोग कहीं से अखबारों का लिखा छापकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने का भरम पाले हुये हो. जरा कोई बात लिखने से पहले तौल लिया किजिये और अपने अब तक के किये पर शर्म पालिये.

हम समझता हूं कि आप भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे.

सदभावना पूर्वक
-राधे राधे सटक बिहारी

girish pankaj ने कहा…

hamesha ki tarah sundar man se nikali sundar-abhivyakti.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

झीलें तो सिर्फ
अपने वजूद पर
सिसकी हैं

हर गहनता के भीतर एक वेदना अवश्य होती है।

गहन भावयुक्त एक प्रशंसनीय कविता।

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सुन्दर और सशक्त रचना.

Dr Xitija Singh ने कहा…

अपने अक्स
की गंदगी
छुपाने की
कोशिश में
झील का भी
सौंदर्य बिगाड़ देते हैं...

ये झील हर स्त्री का मन है वंदना जी ..... ऐसे शब्द केवल और केवल एक स्त्री के हृदय से निकल सकते थे .... उम्दा !! ... शुभकामनाएँ

Akanksha Yadav ने कहा…

बहुत उम्दा सोच लिए कविता ..साधुवाद.

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छा लिखती हैं आप .... बहुत सुन्दर रचना ....आपको बधाई.

Arvind Mishra ने कहा…

बढियां कविता मगर वंदना जी वे झीलें भी हैं जो नरभक्षी भी हो गयी हैं :)

Patali-The-Village ने कहा…

अति सुंदर अभिव्यक्ति|धन्यवाद |

kshama ने कहा…

Hameshakee tarah sundar rachana!
Gantantr Diwas kee hardik badhayee!

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

गणतंत्र दिवस की बधाई एवं शुभकामनायें.

ManPreet Kaur ने कहा…

Happy Republic Day..गणतंत्र िदवस की हार्दिक बधाई..

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Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

vijay kumar sappatti ने कहा…

aajkal madama ji , bahut philosphical hoti jaa rahi hai aapki rachnaaye ....

great work... flowe bahut acha hai .. badhayi