किसी के धरातल पर उतरना
उसके भावों को महसूसना
फिर उन्हे खुद मे समाहित करना
और फिर वापस मुडकर
अपने धरातल पर आना
क्या समझते हो
आसान होता है क्या?
और देखो मै
रोज तुम्हारे धरातल पर
उतरती हूँ
तुम्हे जीती हूँ
तुम्हारी आकांक्षाओं को
सहेजती हूँ
और फिर खुद मे
समाहित करती हूँ
और फिर खुद से लडती हूँ
तब कहीं जाकर
अपने धरातल पर
वापसी कर पाती हूँ
कभी तुम एक बार
मेरे धरातल पर आकर तो देखो
मुझे कुछ पल जीकर तो देखो
मुझमे बहते तूफ़ान से लडकर तो देखो
मेरी भावनाओं मे सिमट कर तो देखो
मेरे मन के आँगन की मिट्टी को छूकर तो देखो
देखना फिर तुम तुम न रहोगे
वापसी की हर राह बंद हो जायेगी
जिधर भी देखोगे सिर्फ़
तुम्हारा ही वजूद होगा
तुम्हारी ही कहानी होगी
तुम्हारा ही ख्याल होगा
तुम्हारा ही दर्द होगा
बताओ फिर कैसे तुम
खुद से बच पाओगे
और मेरे धरातल से
अपने धरातल तक का
सफ़र तय कर पाओगे
ये मन के धरातल
बहुत कमजोर होते हैं
यहाँ साथी कोई नही होता
और जंग बहुत होती है
कभी खुद से तो कभी
भावनाओ से तो कभी
अतृप्त इच्छाओ से
और फिर दूजे के लिये
अपना वजूद मिटाना होता है
तब कही जाकर
अपने धरातल पर
आना होता है
और मुझे पता है
तुम ऐसा कभी नही कर पाओगे
जानती हूँ तुम पुरुष हो ना
तुम्हारी चाहतें
तुम्हारी क्षमतायें
तुम्हारी सीमायें
तुम्हे ऐसा करने से रोकेंगी
तभी मुझे दोनो रूप
जीने पडते हैं
और तुम्हारे धरातल के साथ
अपने धरातल तक का सफ़र
रोज तय करती हूँ
कभी सोचना इस पर
कैसे मै जीती हूँ …………
उसके भावों को महसूसना
फिर उन्हे खुद मे समाहित करना
और फिर वापस मुडकर
अपने धरातल पर आना
क्या समझते हो
आसान होता है क्या?
और देखो मै
रोज तुम्हारे धरातल पर
उतरती हूँ
तुम्हे जीती हूँ
तुम्हारी आकांक्षाओं को
सहेजती हूँ
और फिर खुद मे
समाहित करती हूँ
और फिर खुद से लडती हूँ
तब कहीं जाकर
अपने धरातल पर
वापसी कर पाती हूँ
कभी तुम एक बार
मेरे धरातल पर आकर तो देखो
मुझे कुछ पल जीकर तो देखो
मुझमे बहते तूफ़ान से लडकर तो देखो
मेरी भावनाओं मे सिमट कर तो देखो
मेरे मन के आँगन की मिट्टी को छूकर तो देखो
देखना फिर तुम तुम न रहोगे
वापसी की हर राह बंद हो जायेगी
जिधर भी देखोगे सिर्फ़
तुम्हारा ही वजूद होगा
तुम्हारी ही कहानी होगी
तुम्हारा ही ख्याल होगा
तुम्हारा ही दर्द होगा
बताओ फिर कैसे तुम
खुद से बच पाओगे
और मेरे धरातल से
अपने धरातल तक का
सफ़र तय कर पाओगे
ये मन के धरातल
बहुत कमजोर होते हैं
यहाँ साथी कोई नही होता
और जंग बहुत होती है
कभी खुद से तो कभी
भावनाओ से तो कभी
अतृप्त इच्छाओ से
और फिर दूजे के लिये
अपना वजूद मिटाना होता है
तब कही जाकर
अपने धरातल पर
आना होता है
और मुझे पता है
तुम ऐसा कभी नही कर पाओगे
जानती हूँ तुम पुरुष हो ना
तुम्हारी चाहतें
तुम्हारी क्षमतायें
तुम्हारी सीमायें
तुम्हे ऐसा करने से रोकेंगी
तभी मुझे दोनो रूप
जीने पडते हैं
और तुम्हारे धरातल के साथ
अपने धरातल तक का सफ़र
रोज तय करती हूँ
कभी सोचना इस पर
कैसे मै जीती हूँ …………
45 टिप्पणियां:
is gudh chintan ka main samman karti hun... kisi ke dharatal pe utarker sochna her kisi ke vash ki baat nahin ...bahut hi khoobsurat rachna
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...भावपूर्ण रचना है...
मन जबरन बुद्धि का हरण कर लेता है, क्या कीजियेगा?
वंदना जी,
तालियाँ.......बहुत ही गहरी बात कही है आपने......सुन्दरतम अभिव्यक्ति है...सच है किसी के अहसासों को महसूस करना और उसकी तरह से जीना बहुत कठिन है ......बहुत सुन्दर|
bahut gahre bhavon ko abhivyakt karti kavita .aabhar .
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...भावपूर्ण रचना है...
बहुत उत्तम अभिव्यक्ति...
लगता है जैसे समस्त स्त्रियों की मनोस्थिति की झलक आपकी इस रचना में दिख रही हो ।
ये मन के धरातल बहुत कमजोर होते हैं ..बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ...।
kya shabd hain aur kya bhaw hain ,bemisaal.
आदरणीय वंदना जी
नमस्कार !
बहुत खूब कहा है आपने
गहन भावयुक्त एक प्रशंसनीय कविता।
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
Happy Republic Day.........Jai HIND
कभी तुम एक बार
मेरे धरातल पर आकर तो देखो
मुझे कुछ पल जीकर तो देखो
मुझमे बहते तूफ़ान से लडकर तो देखो
मेरी भावनाओं मे सिमट कर तो देखो
मेरे मन के आँगन की मिट्टी को छूकर तो देखो
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!
एक और बेहतरीन कविता.. प्रेम की गहन अभिव्यक्ति है इस कविता में.. मन को उद्वेलित कर गई कविता.. मन के धरातल पर उतार ह्रदय में समा गई कविता की सभी पंक्तियाँ
क्या ही गहन चिन्तन है,सार्थक अभिव्यक्ति।
अहसासो का शानदार चित्रण!!
सुन्दर अभिव्यक्ति.
bhawpurn prastuti
वाह ! वंदना जी,
इस कविता का तो जवाब नहीं !
विचारों के इतनी गहन अनुभूतियों को सटीक शब्द देना सबके बस की बात नहीं है !
कविता के भाव बड़े ही प्रभाव पूर्ण ढंग से संप्रेषित हो रहे हैं !
आभार!
बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
Wah! Vandana! Phir ekbaar kamal kar diya!
nice poem
really like it
chk out my blog also
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
nari man ki abhivyakti karti sunder kavita
sahityasurbhi.blogspot.com
तुम्हारी आकांक्षाओं को
सहेजती हूँ
और फिर खुद मे
समाहित करती हूँ
मन को वश मवन करना कठिन है ....और यह जिन्दगी को हिचकोले देता रहता है ...अति सुंदर लेकिन सोचने पर मजबूर करती कविता ....शुक्रिया
वन्दना ,बहुत मुश्किल है धरातल का ये सफर। सुन्दर रचना के लिये बधाई और बहुत दिनो बाद आने के लिये क्षमा भी। शुभकामनायें।
nice
कभी तो कोई पुरुष उतरे किसी स्त्री के मन के धरातल पे ... और जी के दिखे उसे ... बहुत सुंदर .... कमाल का चित्रण वंदना जी ...
अति सुंदर भावपूर्ण रचना, धन्यवाद
गज़ब की पोस्ट ....बहुत सुन्दर
बहुत ही भावपूर्ण और विचारणीय प्रस्तुति..
मन और मस्तिष्क का अक्सर मेल नहीं होता.... सुंदर ..भावपूर्ण
seedhe man ke dharatal par utarti rachna hai vandna ji.... man ko samjahne ke bahut badhiya prayas laga yah
वाह,धरातल के इस दिव्य रूप ने मनेभावों को बेहद प्रभावित किया। अनुभूतियों के निखार से कविता सहजतापूर्वक अपनी बात कह जाती है। एक सुंदर रचना।
किसी के धरातल पर उतरना
उसके भावों को महसूसना
फिर उन्हे खुद मे समाहित करना
और फिर वापस मुडकर
अपने धरातल पर आना
क्या समझते हो
आसान होता है क्या?.....
गहन चिंतन. किसी दूसरे के धरातल पर उतरकर वापस अपने धरातल पर आना और अपने वजूद को कायम रखना आसान नहीं
वंदना जी,
बहुत सुन्दर रचना
लेकिन तारीफ के लिए शब्द नही है!
बस...
वाह !!!
वाह !!!
वाह !!!
शब्दों और भावों का सुंदर संयोजन....
बहुत सुंदर रचना..बधाई
शब्दों और भावों का सुंदर संयोजन....
बहुत सुंदर रचना..बधाई
उम्दा रचना !
रोज तुम्हारे धरातल पर
उतरती हूँ
तुम्हे जीती हूँ
तुम्हारी आकांक्षाओं को
सहेजती हूँ
और फिर खुद मे
समाहित करती हूँ
और फिर खुद से लडती हूँ
तब कहीं जाकर
अपने धरातल पर
वापसी कर पाती हूँ
सच है यह एक स्त्री ही कर सकती है ...धरातल को भी एकाकार करना आसाँ नहीं है ..खूबसूरत बिम्ब से सजी अच्छी रचना
yeh shakti aur kshamta ishvar ne keval naari ko hi di hai ki, voh sabhi ke dharatal par utar kar unki bhavnai samajh kar uske anusaar kaarya karti hai....nice post.
yeh shakti aur kshamta ishvar ne keval naari ko hi di hai ki, voh sabhi ke dharatal par utar kar unki bhavnai samajh kar uske anusaar kaarya karti hai....nice post.
मानवीय धरातल पर आपकी अभिव्यक्ति मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गयी। किसी के मन में स्थायी रूप से बस जाने के बाद भी प्रेम के अनन्य पल मन में रच बस जाते हैं क्योंकि मन तो एक ही होता है,दस बीस तो होता नही है। आपके उदगार प्रशंसनीय हैं।धन्यवाद।
i m totally speechless...u r just waooooooooooooooooooooooooooooooo.
love u.
: )
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
रोज तुम्हारे धरातल पर
उतरती हूँ
तुम्हे जीती हूँ
तुम्हारी आकांक्षाओं को
सहेजती हूँ
और फिर खुद मे
समाहित करती हूँ
और फिर खुद से लडती हूँ
तब कहीं जाकर
अपने धरातल पर
वापसी कर पाती हूँ..
एक स्त्री के अंतर्मन के उठते सवालों और भावो का सटीक चित्रण है, आपकी रचना में..शब्दों और भावों का सुंदर संयोजन...
vandana , this is one of your best ... bahut khushi hui tumhari is rachna ko padhkar , bahut hi saarthak poem hai .. aaj ki naari par sahi likha hai .. badhayi
bhut khubsurati se bhaavo ko sabdo me piroya hai apne... very nice...
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