इतनी बेचैनी
तो कभी ना हुयी
इतना तो आँख
कभी ना रोई
कुछ तो कारण होगा
शायद तुमने मुझे
याद किया होगा
है ना जानम!
आज क्या हुआ है
कौन से दर्द से तू
रु-ब-रु हुआ है
कौन सा कांटा
तुझे चुभा है
जो तेरे दर्द की
परछाईं मुझे दे गया है
कुछ तो कहो जानम !
क्या आज फिर
पुरवा याद का बहा है
या फिर तूने
मुझे ही भुला दिया है
तभी आज मेरा दिल
इतना हँसा है कि
आँख से आँसू झडा है
बोलो ना जानम!
ये तुम्हें क्या
आज हुआ है
क्या तुम्हारे
दिल के कोटरों में
आज भी मेरे
प्रेम का दीप जला है
या फिर उस दीप को
तुमने बुझा दिया है
इसीलिए आज
मेरा दिल इतना जला है
एक बार तो कहो ना जानम!
ये मुझे आज क्या हुआ है
कौन से पायदान पर
प्रेम अब पंहुचा है
जहाँ प्रीत रोती है
और आँख हँसती है
बेढब रास्तों पर
कभी उठती है
कभी गिरती है
पर ना तुझसे
और ना मुझसे
संभलती है
कहो ना जानम !
ये प्रीत की कौन सी
नयी रीत चली है
जहाँ दरिया तो बहता है
मगर जमीन सूखी है
किसी कोमल भाव की
अब भी भूखी है
एक बार तो कह दो ना जानम !
अब कैसे धीर बंधाऊँ?
नैनों को कैसे समझाऊँ ?
तुमको कैसे अब पाऊँ?
कौन सी नयी प्रीत की अलख जगाऊँ
कि मैं तुमसे मिल जाऊँ
कहो ना जानम
अब कैसे तुम्हें पाऊँ ?
51 टिप्पणियां:
वाह! बहुत खूब वंदना जी!
सादर
----
मिले सुर मेरा तुम्हारा - नया बनाम पुराना
प्रभावशाली शब्द बँधन!!
ये प्रीत की कौन सी
नयी रीत चली है
जहाँ दरिया तो बहता है
मगर जमीन सूखी है
किसी कोमल भाव की
अब भी भूखी है
बहुत खूबसूरत भाव ...व्यथित मन की वेदना ...सुन्दर अभिव्यक्ति
इतना तो आंख,
कभी न रोई ..
भावमय करते शब्द ...बेहतरीन अभिव्यिक्ति ।
आदरणीय वन्दना जी
नमस्कार !
सहज,स्वाभाविक मार्मिकता पूरी रचना में
...मन को छू गयी। बधाई।
ये तुम्हें क्या
आज हुआ है
क्या तुम्हारे
दिल के कोटरों में
आज भी मेरे
प्रेम का दीप जला है
या फिर उस दीप को
तुमने बुझा दिया है
क्या बात है..बहुत खूब....गहरी कशमकश . खूबसूरत अभिव्यक्ति. शुभकामना
बढ़िया ...बहुत खूब अभिव्यक्ति रही ...
शुभकामनायें !
सुन्दर कविता .. प्रेम के ना जाने कितने आयाम आपकी कविता में छुपे हैं..
यह तो सुन्दर कविता है...बधाई.
ये प्रीत की कौन सी
नयी रीत चली है
जहाँ दरिया तो बहता है
मगर जमीन सूखी है
किसी कोमल भाव की
अब भी भूखी है
एक बार तो कह दो ना जानम !
...
phir wahi bhaw, jahan kuch pal main ruk jati hun aur intzaar karti hun janam ke kahne ka
bhawuk kar gayee.
Bahut Khoob ,
वंदना जी,
अच्छी रचना....
व्यथित मन की वेदना दर्शाती सुन्दर प्रस्तुति.
mast hai jaanam. hahahahaha
acha laga padhna
वर्ष 2010 में 108 पोस्ट यानि लगभग प्रति 3 दिनों में एक पोस्ट, अच्छा एवरेज है। बधाई वन्दना जी।
man ki vyatha ko shabdon me koob ukera hai aapne.....sunder rachana...der se hi sahi bitiya ko janmdin ki badhai....
मुझे तो दार्शनिकता से ओत-प्रोत लगी आपकी यह रचना!
--
बस यही कह सकता हूँ कि परमात्मा सबसे प्रिय जानम है सबका!
behad sundar....lajavab
आपकी अभिव्यक्ति दिल को छू जाती है, लाजवाब रचना ।
वाह जी वाह बहुत खुब धन्यवाद
बहुत सुंदर ... प्रभावी भावाभिव्यक्ति
बहुत खूबसूरत भाव|सुन्दर अभिव्यक्ति|
शुभकामना|
आपका अंदाज आकर्षक है। अति सुन्दर।
ये प्रीत की कौन सी
नयी रीत चली है
जहाँ दरिया तो बहता है
मगर जमीन सूखी है
किसी कोमल भाव की
अब भी भूखी है...
जहाँ दरिया तो बहता है
मगर जमीन सूखी है
क्या खूबसूरत अंदाज़ में पेश किया है इस कशमकश को, वाह.
bahavo se bhari sundar abhivykti
छोटी छोटी बूँदों को प्यासा मन का सागर।
सभी पाठको को सूचित किया जाता है कि पहेली का आयोजन अब से मेरे नए ब्लॉग पर होगा ...
पुराना ब्लॉग किसी कारणवश खुल नहीं पा रहा है
नए ब्लॉग पर जाने के लिए यहा पर आए
धर्म-संस्कृति-ज्ञान पहेली मंच.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html
कमाल की पंक्तियाँ है, बहुत सुन्दर रचना !
@-शायद तुमने याद किया होगा....
बहुत अच्छे लगे ये भाव।
बहुत ही गहरे एहसास है ...... सुंदर प्रस्तुति.
बहुत सुन्दर !
प्रेम के विविध आयामों की स्वतः अभिव्यक्ति , वह भी इतने मनमोहक अंदाज़ में.....
बहुत खूब .. jindagi में alag alag rang hote हैं ... और aap बहुत प्रभावी treeke से un rangon को shabdon में utaar laati हैं ....
vndna ji kin shbdon me aabhar vykt kroon kahin shbd chhote n pd jayen
bahur bahut hridy se aabhari hoon kripya swikar kren
email:dr.vedvyathit@gmail.com
बेहतरीन रचना'.
ये प्रीत की कौन सी
नयी रीत चली है
जहाँ दरिया तो बहता है
मगर जमीन सूखी है
किसी कोमल भाव की
अब भी भूखी है
एक बार तो कह दो ना जानम !
वाह वाह !! वंदना जी ... क्या शब्द दिए हैं भावों को ... बहुत खूब
ये प्रीत की कौन सी
नयी रीत चली है
जहाँ दरिया तो बहता है
मगर जमीन सूखी है
किसी कोमल भाव की
अब भी भूखी है
बहुत खूबसूरत भाव ...
जहाँ दरिया तो बहता है
मगर जमीन सूखी है
किसी कोमल भाव की
अब भी भूखी है
बहुत खूबसूरत भाव ...
अब कैसे धीर बनधाऊं,
नैनों को कैसे समझाउं
वाह बेहतरीन...
जहाँ दरिया तो बहता है
मगर जमीन सूखी है
किसी कोमल भाव की
अब भी भूखी है
बहुत खूबसूरत भाव ...
जहाँ दरिया तो बहता है
मगर जमीन सूखी है
किसी कोमल भाव की
अब भी भूखी है
बहुत खूबसूरत भाव ...
shingar ras ke viyog paksh ka sunder varnan hai , komalkant pdavli ka pryog. snkshep main shandar kavita
जहां दरिया तो बहता है
मगर ज़मीन सूखी है
कविता के सारे बिम्ब अच्छे लगे, पर यह सबसे न्यारा लगा।
मन के अंतर्द्वद्व को निरूपित करती एक अच्छी रचना।
Shingar ras ke vijog paksh ka sunder varnan , komalkant pdavali ka pryog , sankshep main shandar kavita
मन को आनन्दित कर गयी ये कविता.........
very nice post .............
Music Bol
Lyrics Mantra
खूबसूरत भाव प्रभावशाली सुन्दर अभिव्यक्ति
ये प्रीत की कौन सी
नयी रीत चली है
जहाँ दरिया तो बहता है
मगर ज़मीन सूखी है
ख़ूबसूरत रचना, सही कहा वंदना जी, प्रीत की रीत सदा अनोखी ही होती है .. भावपूर्ण प्रस्तुति
मंजु
वंदना जी मैं कई दिन बाद ब्लॉग पर आयी हूं आपकी बिटिया के जन्मदिन पर मेरी और से बहुत सारी शुभकामनाएं , भगवान उसकी झोली खुशियों से भर कर रखे । दुनिया का हर सुख मिले --जुग जुग जीये खीर खंड पीए ----
सुन्दर सुन्दर सुन्दर !!! bus Itana Hi kah sakate hai. thanks a lot to your kind Poem. Best of luck God bless you
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