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मंगलवार, 4 जनवरी 2011

आत्ममंथन की प्रक्रिया में..................(1)

आत्ममंथन की प्रक्रिया में
कार्य प्रगति पर है
कृपया दस्तक ना दें
कहीं ऐसा ना हो
दस्तक देते ही प्रहार
आप पर हो जाये
और रिश्ता जो
कोई कहता है
कि है हमारा कुछ
वो टूट जाए
बच कर चलें
कहीं यूँ ना हो
सारा गरल आप पर
ही उंडेल दिया  जाए 





ज़िन्दगी ही इक गरल है जिसे सभी को खुद पीना पड़ता है ............मगर हर पीने वाला शंकर  नहीं होता .............अपने आप को चटकते देखना और कुछ भी करने में असमर्थ होना .............मगर फिर भी जीना ............आह ! जब अपने आप को ही तुम खुद चुभने लगो फिर कैसे बचोगे? और किससे? उफ़ ! खुद को सीना कितना मुश्किल होता है ना………देखो ना बीच बीच मे बखिया अब भी गायब हो रही है शायद टांके ठीक नही लग रहे…………अभी और आत्मविश्लेषण करना होगा…………शायद कोई सिरा जो छूट गया था किसी मोड पर एक बार मिल जाये और जीने का अर्थ समझ आ जाये………तब तक तो ये गरल पीना ही होगा .

क्रमशः .............

36 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना और उससे भी बढ़कर सन्देश!
--
गद्य और पद्य का यह संगम बहुत बढ़िया रहा!

वाणी गीत ने कहा…

हलाहल अपने मंथन का है तो खुद ही पीना होगा ...किसी और पर छलक ना जाये !

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आत्ममंथन कठिनतम प्रक्रियाओं में एक है।

Anamikaghatak ने कहा…

wah kya baat hai

M VERMA ने कहा…

आत्ममंथन की प्रक्रिया जारी रहे
गरल की तो आदत है

Satish Saxena ने कहा…

हुआ क्या ..??
शुभकामनायें !

Shikha Kaushik ने कहा…

vastav me aatamvishleshan dwara hi manav jeevan ko samjha ja sakta hai .yatharth ko chhoti hui rachna .
nav varsh ki hardik shubhkamnaye .

ZEAL ने कहा…

सही कहा आपने , अपने जीवन में आने वाली मुश्किलों से स्वयं ही लड़ना होता है।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

शिवजी ने तो एक बार ही गरल पीया था यहाँ तो रोज-रोज ही पीना पड़ता है। ना जी ना किसी को दस्‍तक नहीं।

केवल राम ने कहा…

कहीं ऐसा ना हो
दस्तक देते ही प्रहार
आप पर हो जाये
और ऐसी दस्तक अगर सकारात्मक रूप में हो तो ज्यादा खतरनाक हो सकता है ...आत्ममंथन की प्रक्रिया ...बहुत सोच समझ कर शुरू की जानी चाहिए ..शुक्रिया

निर्मला कपिला ने कहा…

अत्ममंथन से ये गरल अमृत भी बन जाता है जब इन्सान अपनी कमजोरिओं की पहचान कर लेता है। बहुत अच्छी रचना बधाई।

लाल कलम ने कहा…

बहुत सुन्दर गद्य और पद्य का मेल बहुत सुन्दर

Sushil Bakliwal ने कहा…

आत्ममंथन की जटिल प्रक्रिया. करते चलिये...

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत भाव पूर्ण रचना |बधाई
नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
आशा

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता ! आत्ममंथन तो सचमुच कठिन है ... जिसे आत्मज्ञान मिल गया उसे तो समझिए ब्रह्मज्ञान मिल गया ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय वन्दना जी
नमस्कार !
सही कहा आपने..आत्ममंथन की प्रक्रिया ...बहुत सोच समझ कर शुरू की जानी चाहिए

निर्झर'नीर ने कहा…

कहीं ऐसा ना हो
दस्तक देते ही प्रहार
आप पर हो जाये

aaj ek lambe antral ke baad aapki kai rachnayen padhi ..sab ek se ek behtar lekin ye kuch jyada hi kashish bhari lagii

बेनामी ने कहा…

क्या बात हैं वंदना जी.....आत्ममंथन तो बहुत ज़रूरी है जीवन में.......हम रूकावट नहीं डालेंगे...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

shiv ban payen ya nahi per halahal pina hai ...

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

वंदना शुक्ला जी आत्म विवेचन को ले कर अत्युत्तम प्रस्तुति है ये| मैने कभी के ग़ज़ल कही थी "कहीं कुछ है..........." उसे ढूँढ कर ब्लॉग पर पोस्ट करता हूँ, आप ज़रूर पढ़िएगा| वाकई इतनी अच्छी तरह आत्म स्वीकृति को उकेरा है आपने शब्दों के माध्यम से कि पढ़ते ही बनता है| एक बार फिर से बधाई|

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

वंदना शुक्ला जी आत्म विवेचन को ले कर अत्युत्तम प्रस्तुति है ये| मैने कभी के ग़ज़ल कही थी "कहीं कुछ है..........." उसे ढूँढ कर ब्लॉग पर पोस्ट करता हूँ, आप ज़रूर पढ़िएगा| वाकई इतनी अच्छी तरह आत्म स्वीकृति को उकेरा है आपने शब्दों के माध्यम से कि पढ़ते ही बनता है| एक बार फिर से बधाई|

राज भाटिय़ा ने कहा…

जिस ने यह आत्ममंथन कर लिया उस ने यह जग पा लिया,लेकिन यह बहुत कठिन हे जी, बहुत सुंदर रचना धन्यवाद

कडुवासच ने कहा…

... bahut khoob ... prasanshaneey !!

रंजना ने कहा…

अतिभावुक भावोद्गार...

शब्दों में निहित पीड़ा मन बोझिल कर गयी...

Manoj Kumar Singh 'Mayank' ने कहा…

वंदना जी
आत्ममंथन सागरमंथन से कुछ कम नहीँ है।देव और दैत्य दोनो ही शक्तियाँ तो अपनी अपनी रस्सियाँ लेकर इस आत्मसागर के विदोहन को तैयार खड़ी हैँ और यदि निरपेक्षता का सुमेरु वास्तव मेँ दृढ़ हुआ तो इसमेँ कोई दो राय नहीँ कि इस मंथन मेँ प्रथमतः आत्म हलाहल की ही प्राप्ति होनी सुनिश्चित है, आगे आपने कह ही दिया है कि प्रत्येक व्यक्ति तो शंकर होता नहीँ किन्तु मुझे पूरा विश्वास है कि आप आत्ममंथन की इस प्रक्रिया को अवश्य पूर्ण करेगीँ। एक बेहतरीन लेखन। वंदेमातरम

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

आत्ममंथन यानी स्वयं से साक्षत्कार होता है... इस प्रक्रिया में दखल केवल ह्रदय दे सकता है... अपने ह्रदय को साथ रखें.. शुभकामना सहित..

amit kumar srivastava ने कहा…

इतना स्पष्ट रहस्यवाद......

डॉ टी एस दराल ने कहा…

यदि हम खुद को पहचान लें तो सारे झंझट ही मिट जाएँ ।
अच्छी कशमकश है ये भी ।

shikha varshney ने कहा…

वंदना जी .......................ये क्या शुरू कर दिया आपने ...आत्म मंथन...बेहतरीन लिख रही हैं .जल्दी जल्दी लिखिए सब्र नहीं हो रहा.

अनुपमा पाठक ने कहा…

आत्ममंथन की प्रक्रिया तो सतत चलती ही रहती है...
सार्थक!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

"कार्य प्रगति पर है"

वन्दना जी, मैं तो प्रोजेक्ट समय पर पूर्ण होने की शुभकामनाये दूंगा !
भाव अच्छे इंगित किये है आपने रचना में !

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

aapke aatm-manthan men imaandaari kee mangalkaamna karta hua ek shkhs....

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

बेहतरीन रचना

Deepak Saini ने कहा…

जीवन हमारा है तो लडना भी हमे ही पडेगा

Minakshi Pant ने कहा…

क्यु हिज्र के शिकवे करता है ,
क्यु गम के रोने रोता है !
इश्क किया तो सब्र भी कर ,
इसमें तो ये सब होता है !!

खुबसूरत रचना बधाई दोस्त !

शारदा अरोरा ने कहा…

मन कितनी बातें करता है , हर मोड़ पे खुद से लड़ता है ...