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गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

अब लक्ष्य निर्धारण नहीं करती

अब लक्ष्य निर्धारण नहीं करती
निर्धारण कर लो तो 
पाने की चाह
प्रबल हो जाती है
और उस जूनून में 
काफी कुछ बह जाता है
और बचता है तो सिर्फ 
रेतीले मटमैले पैरों में
चुभते से कुछ कंकर पत्थर 
और गाद में सड़ते पाँव 
और उनके निशाँ 
पीछे मुड़ने पर देखो तो
सिर्फ निशाँ ही होते हैं 
अकेले , नितांत एकाकी
बाकी तो वक्त के दरिया 
में बह जाता है और तब
लक्ष्य को पाना 
उसकी सफलता 
खोखली बेमानी हो जाती है
जब उन पदचिन्हों के साथ
एक भी निशाँ नज़र नहीं आता
इसलिए अब दिशाहीन जी लेती हूँ
जहाँ खोने को कुछ नहीं होता
और जो मिलता है वो ही 
लक्ष्य बन जाता है
या कहो जीवन की 
उपलब्धि इसी में है 
पाने की चाहत में 
सब कुछ खो देना तो 
लक्ष्य नहीं होता ना 
इसलिए
अब लक्ष्य निर्धारण नहीं करती

40 टिप्‍पणियां:

सुज्ञ ने कहा…

ओह!! लक्ष्य से पलायन?, खोने के भय से………
बहुत कुछ खोने में ही छुपा होता है,सर्वश्रेष्ठ पाना।

काव्य-भाव दृष्टिकोण अतिसुंदर

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

वजह से हम सहमत नहीं है, बाकी जिंदगी नकद में जीनी चाहिए, ये तो बिलकुल दुरस्त खयालात लगते है ...
लिखते रहिये ....

सदा ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ...।

kshama ने कहा…

Kitna sahi kaha hai tumne Vandana! Aisa khokhlapan bada bhayawah hota hai!

बेनामी ने कहा…

bilkul sahi karti ho...nirdharit lakshya hamesha takleef hi dete hain...

acchi nazm :)

बेनामी ने कहा…

@पाने की चाहत में
सब कुछ खो देना तो
लक्ष्य नहीं होता ना
इसलिए
अब लक्ष्य निर्धारण नहीं करती
--
बीती ताहि बिसार दे,
आगे की सुधि लेय!
प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना!

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई .....वंदना जी

कडुवासच ने कहा…

... bahut khoob ... behatreen rachanaa !!!

समय चक्र ने कहा…

सुन्दर रचनाधर्मिता ..... बढ़िया अभिव्यक्ति...आभार

Minakshi Pant ने कहा…

लक्ष्य को कभी मत भूलना दोस्त आपकी प्रगति का आधार आपका कठोर परिश्रम होगा अर्थात एक ईमारत की मजबूत नीव !
दिल से बयाँ की हुई एक दर्द बहरी आह !
बधाई !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

उन पदचिन्हों के साथ
एक भी निशाँ नज़र नहीं आता
इसलिए अब दिशाहीन जी लेती हूँ
जहाँ खोने को कुछ नहीं होता
yah sailaab har khone me hai , jahan kuch nahin hota

Minakshi Pant ने कहा…

लक्ष्य को कभी मत भूलना दोस्त आपकी प्रगति का आधार आपका कठोर परिश्रम होगा अर्थात एक ईमारत की मजबूत नीव !
दिल से बयाँ की हुई एक दर्द भरी आह !
बधाई !

Deepak Saini ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पाने की मृगतृष्णा जब बढ़ती ही जाये तो कुछ और पाना बेईमानी सा लगने लगता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

लक्ष्य निर्धारण न किया जाए तब भी कदम किसी न किसी मजिल की ओर ही बढते हैं ...अच्छी भाव प्रस्तुति ..

ZEAL ने कहा…

.

अब लक्ष्य निर्धारण नहीं करती....

बेहतरीन पंक्ति !
कर्म में सतत लगे रहने की प्रेरणा देती हुई सार्थक रचना के लिए आभार।

.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना। बधाई।

Akanksha Yadav ने कहा…

लक्ष्य निर्धारण की बजाय कई बार लक्ष्य प्राप्ति ज्यादा असरदार होती है..शानदार रचना..बधाई.

Shikha Kaushik ने कहा…

ek alag hi andaj me likhi gayi bhavbhari kavita .bahut khoob abhivyakti .

Kailash Sharma ने कहा…

पाने की चाहत में
सब कुछ खो देना तो
लक्ष्य नहीं होता ना
इसलिए
अब लक्ष्य निर्धारण नहीं करती...

गहन चिंतन से परिपूर्ण अहसास..बहुत हद तक सही है कि केवल लक्ष्य निर्धारण से कुछ नहीं होता, जिंदगी में जो कुछ मिलता जाए उसे संजोते चलो..यायावर जिंदगी का भी तो एक अपना सुख है..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार

माधव( Madhav) ने कहा…

बेहतरीन पोस्ट

shikha varshney ने कहा…

लक्ष्य हो या न हो जिंदगी तो फिर भी चलती जायेगी ..
सुन्दर भावपूर्ण रचना.

मेरे भाव ने कहा…

दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है . लेकिन बिना लक्ष्य जीवन नीरस भी तो हो जाता है. जीवन नें उर्जा और ऊष्मा बनी रहे इसके लिए लक्ष्य निर्धारण बेहद जरुरी है .

रंजना ने कहा…

लक्ष्य या भविष्य जैसे प्रश्न अनिश्चित काल के आगे क्या मायने रखते हैं...

सही ही है ,ऐसे में केवल वर्तमान में वर्तमान के भरोसे ही जीना उचित है...

सुन्दर भावोद्गार !!!!

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति .

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

'main jahan tak pahunch jaun
bas wahi gantay mera'
komal bhavov-kathor anubhootiyon se saji hui rachna..
bahut sunder.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

कविता की भावभूमि प्रखर है , प्रभावित करती है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

डॉ टी एस दराल ने कहा…

निर्धारण कर लो तो
पाने की चाह
प्रबल हो जाती है

बात तो सही है जी ।
लेकिन इस पाने की चाह में ही तो सारा आनंद है ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुंदर रचना जी धन्यवाद

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिये हैं।बधाई।

Atul Shrivastava ने कहा…

ये जिंदगी है खुदा की नैमत
कुछ तुझे तो कुछ मुझे मिला।
लिखी है सबकी तकदीर उसने
जिए जा मुकददर से क्‍या गिला।।

निर्मला कपिला ने कहा…

जिस लक्ष्य कोपाने की चाह मे-- मृ्गतृष्णा सी भूख अगर सताने लगे तो यही अच्छा है कि उस लक्ष्य से पलायन कर जाओ। बहुत अच्छी रचना। बधाई।

शिवम् मिश्रा ने कहा…


बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - विजय दिवस पर विशेष - सोच बदलने से मिलेगी सफलता,चीन भारत के लिये कितना अपनापन रखता है इस विषय पर ब्लाग जगत मौन रहा - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा

M VERMA ने कहा…

लक्ष्य जब अलक्ष्य हो तो निर्धारण बेमानी होता है.
बहुत खूबसूरती से एहसास को पिरोया है

श्रद्धा जैन ने कहा…

Lkashy nirdharan nahi karti .. bahut gahri kavita hai..

aapko padhna bahut achcha laga..

Devatosh ने कहा…

वंदना.....

लक्ष्य......बिना तो जीवन अर्थहीन है.....

और खासकर जो प्रेम से ग्रसित हों......उनके हाँथ तो कुछ बदनामी और कुछ रुसवाई ही लगा करती है......प्रियतम कि तो हर चीज़ प्यारी होती ..वो चाहे नफरत ही क्यों ना हो......

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लक्ष के बिना जीवन तो कुछ नहीं ... पर हाँ खोने का डर नहीं होता ... अर्थ पूर्ण रचना है ...

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

मेरी एक क्षणिकाओं की एक श्रंखला है जिसकी एक क्षणिका टिप्पणी स्वरुप दे रहा हूँ...
"
नहीं है
कोई लक्ष्य
जीवन में
नहीं यदि
तुम"..

अच्छी कविता है आपकी

बेनामी ने कहा…

वंदना जी,

बहुत सही फैसला है आपका.......जीवन का लक्ष्य तो एक ही है....

Pushpa Bajaj ने कहा…

आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .

* किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?

हाँ ! क्यों नहीं !

कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.

सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.

इसमें भी एक अच्छी बात है.

अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?

सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.

पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.

सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.

आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.