ऊष्मा
कभी देह की
कभी साँसों की
कभी बातों की
कभी नातों की
कभी भावो की
तो कभी
शुष्क मौसमों की
बंजर भूमि में
उगते कुछ
सवालों की.......
झुलसा जाती है
हर नेह को
हर गेह को
हर देह को
और बचे
रह जाते हैं
राख़ के ढेर में
कुछ तड़पते
सिसकते
काँटों की सी
चुभन लिए
कुछ अल्फाज़
कुछ घाव
कुछ बिखरे- बिखरे
से अहसास
अपनी बेबसी पर
लाचार से
आँसू बहाते
उम्र भर के
तड़पने के लिए
जो इतना नहीं जानते
ऊष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में
मौसम नहीं बदला करते
47 टिप्पणियां:
सही बात है प्यार भरे दिल के मौसम तो कभी नही बदलते । वक्त की टीस दे जाते हैं। दिल को छू गयी रचना। शुभकामनायें।
ऊष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में
मौसम नहीं बदला करते
bilkul sahi
उनके मौसम हैं उनके साथ , अपने मौसम भी तो उनके साथ साथ चला करते हैं ...
जो इतना नहीं जानते
ऊष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में
मौसम नहीं बदला करते
बहुत गहन बात .....सुन्दर रचना ..
लेकिन लोग तो बदल जाते हैं।
एक भौगोलिक परिस्थिति को जीवन की हकीकत से जोड़ कर बहुत सुन्दर और नवीन बिम्ब की रचना की है आपने.. आपकी रचनात्मकता एक नई ऊंचाई ले रही है..
bahut gahree baat.........
sateek abhivykti .......
aabhar
क्रोध और हठ की ऊष्णता से प्रेम की गरमाहट पर आना है।
बहुत खूब मोहतरमा ऊष्ण कटिबंधीय प्रदेशों से नए ख्याल के जरिये सुंदर और गहरी रचना से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया .
वंदना जी.......कितनी आसानी से , कितनी सहजता से आप दिल के गूढ़ भावों को व्यक्त कर लेती हैं.
आप मेरी बात कैसे जान लेती हैं.......आप की रचनाओं के बारे मैं कुछ कहना ....सीपियों से सागर को उलचने की बात है.
बहुत ही जोरदार रचना एक नए अंदाज में .... सचमुच आपकी सोच कमाल की है ...आभार
बहुत सुंदर रचना कही आप ने, धन्यवाद
प्रेम से उपजी ऊष्मा ठंडा नहीं पढ़ना चाहिए .. बहुत सुन्दर !
अत्यन्त ऊष्मा भरी रचना, असरदार अभिव्यक्ति
सच कहा है,
ऊष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में
मौसम नहीं बदला करते
बढ़िया कविता
... bhaavpoorn rachanaa !!!
वंदना जीईईईईइ , इतनी अच्छी कविता कैसे लिख लेती हो .....................................................
बहुत अच्छा backdrop है कविता का ....
१० में से १० मार्क ...
विजय
वंदना जी,
आपके लिखने का अंदाज भावनाओं को प्राणवान कर देता है ! कविता पढ़ कर यही लिख सकता हूँ कि कविता बहुत अच्छी लगी मगर वास्तव में कविता कितनी अच्छी लगी इसे शब्दों में नहीं व्यक्त कर सकता! शब्द शायद असमर्थ हैं !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सच कहा है,
...मौसम नहीं बदला करते
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई
बंज़र भूमि में उगते सवालों की ऊष्मा --अनुपम अभिव्यक्ति है दिल के दर्द की । कहाँ से लाती हैं आप ऐसे अहसास ।
सुन्दर रचना ।
बहुत खूब वंदना जी....
मैंने अपना पुराना ब्लॉग खो दिया है..
कृपया मेरे नए ब्लॉग को फोलो करें... मेरा नया बसेरा.......
अत्यंत भावपूर्ण कविता, शुभकामनाएं.
रामराम.
vandna ji.......aapki kalam kammal ka likhtee hai....
अद्भुत अभिव्यक्ति क्षमता है आपके शब्दों में . बेहद प्रभावशाली रचना .
ऊष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में
मौसम नहीं बदला करते
खूब ..... बहुत अच्छी लगी रचना
आखिरी २ पंक्तियाँ जैसे सागर की सी गहराई लिए हुए हैं..
बहुत उम्दा रचना.
कितनी दर्द है इस कविता, बड़ी सुन्दरता से गहराई में लें गयीं पाठक को... वंदना जी, जहां का मौसम ना बदले वो जगह तो बदली जा सकती है... दर्द रहे दिल में तो रहा करे... बारिश में तो भीगा जा सकता है? पर अगर हम ही वो ज़मीन हैं तो जगह कैसे बदलेंगे...? क्या उसे नियति समझ स्वीकार लें?
बादल ना भी आये, पर अगर हम ठान लें तो अपने ही अंदर के भूमिगत जल से तो अपना मौसम बदल ही सकते हैं... माफ़ कीजिएगा... छोटी सी टिपण्णी लिखनी थी और आपके साथ आपकी कविता द्वारा प्रेरित ये सारे विचार बाँट लिये... विचारों की एक नयी डगर पे ले चलने के लिये शुक्रिया...
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - देखें - 'मूर्ख' को भारत सरकार सम्मानित करेगी - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
एक बहुत ही प्यारी सी मीठी सी कविता लिखी है आपने वन्दना जी। बहुत ही उम्दा रब्त दिखलाया साहित्य से जुगराफ़िया का। बहुत ख़ूब।
शानदार लेखन है आपका वंदना जी.
इसे रहस्यमयी कविता कहने को जी चाहता है| आधुनिक कविता को बखूबी अलंकृत किया है आपने| बधाई|
वंदना जी अति सुन्दर रचना|
इस साहित्यिक रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई!
यह कालजयी रचना है आपकी!
बहुत सुंदर रचना और दिल को छूने वाले भाव...वाकई मन को छू गई...मन के रिश्ते-नाते मौसम की तरह नहीं बदलते....
http://veenakesur.blogspot.com/
सुन्दर कविता... गहन अभिव्यक्ति!
अभी तो सर्दी का मौसम है, कहाँ है उष्मा? हा हा हाह ा। अच्छी रचना।
वंदना जी प्रेम और संबंधों, रिश्तों और भावों का नया भूगोल बना रही है आपकी कविता..
bahut hi sundar rachna.
बहुत ही खुबसूरत रचना...मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ मेरी कविताएँ "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी हर सोमवार, शुक्रवार प्रकाशित.....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे......धन्यवाद
यह तो बहुत सुन्दर कविता है.
पाखी की दुनिया में भी आपका स्वागत है.
सच कहा है ... उष्म प्रदेश गर्म ही रहता हैं ... जलते हुवे .. गहरे भाव लिए रचना है ...
वंदना जी,
बहुत सुन्दर पोस्ट.....बढ़िया सच बताऊँ तो ७-८ क्लास में पड़ा था ऊष्ण कटिबंधीय प्रदेश....अब तो याद भी नहीं वो क्या होता था :-)
और हाँ मैंने एक मेल भेजी थी आपको आपने कोई जवाब नहीं दिया.....
सुंदर.
घुघूती बासूती
ऊष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में
मौसम नहीं बदला करते
बहुत सुंदर रचना
ऊष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में
मौसम नहीं बदला करते..
बहुत सही कहा है...कोमल भावों से सजी बहुत ही मार्मिक रचना...बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति...आभार
kya bat hai...kamal ki prastuti
sundar rachana
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