ख्याल : मजाक है क्या ये
मुझे भी बता दो
अरसा हुए हँसे हुए
चलो , मैं भी हँस लेती हूँ
हा हा हा ...........
हकीकत :ऐसा क्या हो गया ?
रोज हँसा करो
मगर किसी के सामने नहीं
ख्याल: तो फिर कहाँ ?
हकीकत : अकेले में
ख्याल : क्यूँ ?
अकेले में तो
पागल हँसते हैं
क्या अब यही ख़िताब
दिलाना बाकी है
याद को यूँ दबाना बाकी है
किसी दर्द को यूँ जगाना बाकी है
आखिर कैसे हँसूँ ?
किस लीक का कोना पकडूँ
किस वटवृक्ष की छांह पकडूँ
कौन -सी अब राह पकडूँ
बिना लफ्ज़ के कैसे बात करूँ
ख़ामोशी भी डंस रही है
नासूरों सी पलों में बस गयी है
फिर कैसे अकेले में हँसे कोई?
हकीकत : ख़ामोशी भी पिघलने लगेगी
यादें भी सिमटने लगेंगी
दर्द भी बुझने लगेंगे
बस एक बार मुझे
गले लगाकर तो देख
मुझे अपना बनाकर तो देख
लबों पर मुस्कराहट भर दूँगा
तेरे ग़मों को अंक में भर लूँगा
बस एक बार मुझे
अपना बनाकर तो देख
चाहत का लिबास पहना दूँगा
तुझे तुझसे चुरा लूँगा
तेरे साये को भी
अपना साया बना लूँगा
बस एक बार मुझे
हमसफ़र बना कर तो देख
मेरी चाहत को अपना
बनाकर तो देख
रंगों को दामन में
सजाकर तो देख
मोहब्बत की रेखा
लांघकर तो देख
हर मौसम गुलों सा
खिल जायेगा
चाँद तेरे आगोश में
सिमट जायेगा
चाँदनी सी तू भी
खिल जाएगी
झरने सी झर- झर
बह जाएगी
बस एक बार तू
कदम बढाकर तो देख .........
46 टिप्पणियां:
हकीकत और ख्वाब के बीच संवाद.. लगा मानो मेरे भीतर का संवाद हो.. कविता का यह प्रारूप अच्छा लगा.. नया भी है... कविता के नए कलेवर के लिए बधाई एवं शुभकामना..
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यथार्थ के करीब एक बेहद सुन्दर संवाद॥
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बिलकुल सही कहा आपने हर एक लफ्ज अर्थपूर्ण है.... मनभावन प्रस्तुति
वंदना जी आपका लेखन काफी सराहनीय है | यूँ ही लिखती रहें |
...............ढेर सारी शुभकामनायें.
ख्याल और हकीकत का संवाद हर किसी को नयी दिशा दिखाये।
वंदना जी ...
वाह...एकदम नया प्रयास ....बहुत खूब.....बहुत प्रभावी रचना है ये आपकी....
पर बहुत ध्यान से पड़ने पर लगा की शायद आपने ख्याल की जगह हकीकत और हकीक़त की जगह ख्याल कर दिया है......शायद ये मेरा भ्रम हो....पर आप एक बार इस और ध्यान ज़रूर दें|
आज तो तबीयत में ;)
amazing sanvad.... vatvriksh ki chhaw mein bhej dijiye , kuch aur pathikon ko sunne ko mile khwaab aur hakikat kee baten
bbhavon ka manvikaran.
antarman ki kashamkash ka chitrankan.
khayal par hakikat ko tarjeeh.
bhav aur shaily dono badhiya!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...हकीकत और ख्बाव ... इन दोनों का आपसी संवाद रचना रूप में बेहतरीन लगा...आभार
ओह हो आज तो नया प्रयोग कर डाला .
बहुत अच्छा है.
बहुत रोचक रहा ख्याल और हकीकत का वार्तालाप !
सुन्दर प्रयोग !!!
भावुक अभिव्यक्ति....
Embracing reality in a beautiful way! Good post!
हकीकत और ख्वाब का ये रूप बहुत अच्छा लगा............
अभिनव, प्रयोग करती हुई सशक्त अभिव्यक्ति!
हकीकत और ख्याल के सुंदर तानेबाने को प्रस्तुत करती रचना ..... बेहतरीन
यह वार्तालाप तो बहुत उपयोगी रहा!
... nayaa prayog .... bahut sundar !!!
अच्छा प्रयास
हकीकत और ख्वाब के बीच के संवाद....दोनों के अंतर्संबंधों में निहित अनूठे आयामों को उजागर करती खूबसूरत और भाव प्रवण प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
Apke udgar prashasniya hai.Thanks.Plz. visit my blog.
मुझे हकीकत और ख़्वाब का संवाद बेहद पसंद है! बहुत सुन्दरता से आपने प्रस्तुत किया है ! उम्दा प्रस्तुती!
ख़याल और हकीकत का रोचक संवाद...
हकीकत ख्वाब को हकीकत में बदलने को बहला रहा है ...
अच्छी कविता !
यह संवाद भी बढ़िया रहा ...हकीकत का इसरार की हकीकत की तरफ एक कदम बढा कर तो देख ...अच्छी अभिव्यक्ति ..
बहुत खूब... बढ़िया प्रयोग... गज़ब का संवाद...
Sach kahaa aapne....
nice post...great
अक्सर ख्याल की आक्रमकता हकीकत से अधिक होती है किन्तु इस कविता में हकीकत की बानगी का पैनापन आधुनिक जीवन के सोच को बखूबी प्रस्तुत किया है .
ये संवाद यूँ ही चलता रहे......सुन्दर रचना के लिए आत्मीय धन्यवाद.
कविता का ये प्रारूप अद्भुद है..... संवादों के ज़रिये अपना नुक्ता नज़र पेश करने का तरीका अच्छा और प्रभावकारी रहा है ! उत्तम प्रस्तुति वंदनाजी ...!
ख़याल और हकीकत के बीच ये संवाद ... बहुत खूब ... हम शायद हकीकत को स्वीकार ही नहीं करना चाहते ... उसे स्वीकार करें तो ही खुश रह सकते हैं शायद ...
bahad umdaa ye baatey..vartalaap... andaaj naya .. bahut sundar lagaa.. kabile taareef..
behad sunder.
बहुत अच्छी लगी यह रचना। एक अलग फोर्मेट में। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार::आज महिला हिंसा विरोधी दिवस है
ख्याल और हकीकत के बीच का संवाद,आदमी के मन में सुलगते हुए उस अकुलाहट का प्रतिबिम्ब है जिसे हम साँस साँस जी रहे हैं!
नए प्रयोग के साथ संवेदना की नई अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आपकी एक रचना कल सुबह १० बजे मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित हो रही है...
संवाद प्रभावशाली हैं
अच्छी रचना पढवाने के लिए आभार
शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया .
ख्याल औऱ हकीकत में कई बार काफी अंतर होता है जी। ख्याल हकीकत के धरातल पर आकार ही सहीरुप ले पाते हैं। वरना ख्याल तो ख्याल ही रह जाते हैं बिना रुप के। अच्छी रचना।
वाह!बहुत खूब !!
Jab mai kabhi tanhaiyo me hasti hu..
Tanhai bhi mere saath-saath khilkhilaati hai..
ख्याल और हकीकत की जुगलबंदी .... सत्य का एहसास है ये रचना ... बहुत लाजवाब ....
bahut sundar sanwad hai.
हकीकत और ख्बाव इन दोनों का आपसी संवाद.... नया प्रयोग, अच्छी अभिव्यक्ति.
वाह वंदना जी, इस बार नए रूप में आपने बेहद प्रभावी रचना पोस्ट किया है, जिसे पढ़कर ऐसा लगा मानो शब्द आपके हैं और विचार हमारे हैं |
हमेशा की तरह बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकार करें |
मोहब्बत की रेखा लांघ कर तो देख
हर मौसम गुलों सा खिल जाएगा ....खूबसूरत रचना , दिल की गहराइयों तक उतर गई !
बहुत ही सुन्दर पंक्तिया लिखी है आपने ........
शुभकामनाएं !!
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