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शनिवार, 27 नवंबर 2010

आँच

मद्धम- मद्धम 
सुलगती आँच 
और सीली 
लकड़ियाँ 
चटकेंगी तो
आवाज़ तो 
होगी ही
लकड़ियों का 
आँच की
तपिश से 
एकीकृत होना
और अपना 
स्वरुप खो देना
आँच की 
सार्थकता 
का प्रमाण 
बन जाना
हाँ , आँच
का होना
जीवंत बनाता 
है उसे 
सार्थकता का
अहसास 
कराता है 
आँच पर 
तपकर ही 
कुंदन खरा 
उतरता है
फिर चाहे 
ज़िन्दगी हो 
या रिश्ते 
 या अहसास
आँच का होना
उसमे तपना ही
जीवन का
सार्थक प्रमाण
होता है
लकड़ियाँ
सुलगती 
रहनी चाहिए
फिर चाहे 
ज़िन्दगी की 
हों या 
दोस्ती की 
या रिश्ते की
मद्धम आँच
का होना 
जरूरी है
पकने के लिए
सार्थकता के लिए
अस्तित्व बोध के लिए

44 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

दोस्ती की
या रिश्ते की
मद्धम आँच
का होना
जरूरी है
पकने के लिए
सार्थकता के लिए
अस्तित्व बोध के लिए

.....यक़ीनन ज़रूरी, बहुत ज़रूरी ....
कमाल की पंक्तियाँ हैं..... सुंदर वंदनाजी

ZEAL ने कहा…

एक बेहतरीन प्रेरणादायी रचना !

Sunil Kumar ने कहा…

दोस्ती या रिश्तों को पकने के लिए आंच का होना जरूरी है .............सुंदर रचना बधाई

Arvind Jangid ने कहा…

सुन्दर रचना, हमेशा कि तरह, वैसे आँच मध्यम रहे तो ठीक है, तेज आँच से पका हुआ भी जल जाता है, दिल कि बात कही आपने, जिंदगी कि तेज आँच भी कभी कभी जला डालती है.

पुनः धन्यवाद.

केवल राम ने कहा…

मद्धम आँच
का होना
जरूरी है
पकने के लिए
सार्थकता के लिए
अस्तित्व बोध के लिए
सही ..इसके बिना जिन्दगी अधूरी है ...शुक्रिया

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

फलसफाई ;)
आँच मद्धम ही रखी और उसमे सार्थकता भी ढूंढ ली, बहुत अच्छे ;)
अब दर्दे दिल में भी टीस नहीं, सार्थकता देखे, तो सोने पे सुहागा ....

लिखते रहिये ...

Deepak Saini ने कहा…

बहुत खुब,
रिस्तो मे प्रेम की आँच का होना बहुत जरूरी है
बधाई

Swarajya karun ने कहा…

नाज़ुक भावनाओं की कोमल अभिव्यक्ति. अच्छी कविता .

कडुवासच ने कहा…

... bahut sundar ... behatreen rachanaa ... badhaai !!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

लकडियाँ सुलगती ना रहे तो प्यार की तपिश बनी कैसे रहेगी , अंगारों पर चले बिना ज़िन्दगी की कोई शक्ल नहीं होती ....

बेनामी ने कहा…

वन्दना जी,

क्या बात है आजकल नए नए विषयों पर बेहतरीन रचनाये लिख रही हैं आप.....वो क्या कहते थे......हाँ..बिम्ब (सही है न?) क्या बेहतरीन इस्तेमाल किया है आपने......क्या सर्दियों में चूल्हा जला कर उसके सामने बैठ कर इन लकड़ियों को देखते हुए ये रचना लिखी है ?

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बढ़िया रही यह आंच की तपिश ...बिना तपन के कहाँ होता है किसी का भी अस्तित्व ...अच्छी रचना

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

आंच को आपने कितनी सार्थकता दे दी है.. रिश्तो की गर्माहट महसूस हो रही है.. सुन्दर कविता.. आपकी विम्ब योजना सुनियोजित हो रही है..

नीलांश ने कहा…

bahut sunder bhavpurna rachna....yatharth...

abhi ने कहा…

बिलकुल मानता हूँ...:)

Girish Kumar Billore ने कहा…

सार्थक चिंतन
नेटकास्टिंग:प्रयोग
लाईव-नेटकास्टिंग
Editorials

Girish Kumar Billore ने कहा…

परिपक्व्ता वास्तव में ज़रूरी है
नेटकास्टिंग:प्रयोग
लाईव-नेटकास्टिंग
Editorials

अनुपमा पाठक ने कहा…

मद्धम आँच की सार्थकता को दार्शनिक अंदाज़ में अभिव्यक्त किया है!
शुभकामनायें!

L.R.Gandhi ने कहा…

दिनकर अपनी तपिश से और शशि अपनी शीतलता से
धरा को निरंतर उसके अस्तित्व का एह्सास करवाते हैं
और इसी शीतल तपिश में हम अपने होने के अहसास -
अस्तित्व बोध को जीये जा रहे हैं........
सुभानाल्लाह क्या लिखते हैं आप... उतिष्ठकौन्तेय.

Kunwar Kusumesh ने कहा…

तपने के बाद ही खरे - खोटे की पहचान होती है.
'आंच' अच्छी कविता

Dorothy ने कहा…

मद्धम आँच
का होना
जरूरी है
पकने के लिए
सार्थकता के लिए
अस्तित्व बोध के लिए

गहन भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.

Dr Xitija Singh ने कहा…

मद्धम आँच
का होना
जरूरी है
पकने के लिए
सार्थकता के लिए
अस्तित्व बोध के लिए....

वाह!! क्या बात कही है आपने वंदना जी .... आंच सच में ज़रूरी है .. वो भी मद्धम ..

M VERMA ने कहा…

मद्धम आँच
का होना
जरूरी है
पकने के लिए
आँच कम होने पर न पक पाने का खतरा और तेज होने पर जल जाने का खतरा

बहुत सुन्दरता से परिकल्पित है यह रचना

शरद कोकास ने कहा…

आँच के बहुत से बिम्बों के साथ यह एक सार्थक कविता है ।

kshama ने कहा…

Phir ekbaar behtareen khayalon se saji umda rachana....maddham aanch! Kitni anoothee soch hai ye!

गौरव शर्मा "भारतीय" ने कहा…

वाह....
लाजवाब...
हमेशा की तरह शानदार रचना....

बंटी "द मास्टर स्ट्रोक" ने कहा…

ताऊ पहेली 102 का सही जवाब :
http://chorikablog.blogspot.com/2010/11/blog-post_27.html

Shah Nawaz ने कहा…

बेहतरीन रचना है... बहुत खूब!


प्रेमरस.कॉम

Kailash Sharma ने कहा…

मद्धम आँच
का होना
जरूरी है
पकने के लिए
सार्थकता के लिए
अस्तित्व बोध के लिए....

बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति.. लाज़वाब शब्द चित्र.आभार

Khushdeep Sehgal ने कहा…

आंच को सांच नहीं...

जय हिंद...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति...................

मनोज कुमार ने कहा…

सुंदर प्रतीक। अच्छी कविता। मध्यम आंच का होना बहुत ज़रूरी है, पकने के लिए।

वाणी गीत ने कहा…

मद्धम आंच का होना जरुरी है पकने के लिए ...
रिश्ते भी ऐसी ही आंच पर पककर सोने से होते हैं ...
सुन्दर !

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सार्थक रचना.

रामराम.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मद्धम आँच लगी रहे, हर ओर जीवन में।

#vpsinghrajput ने कहा…

सुंदर रचना बधाई चची जी

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

एकदम सही बात ... आग बुझनी नहीं है ... ये आग बुझ गई तो रिश्ते की गर्मी कहाँ से आयेगी ...

Devatosh ने कहा…

वंदना जी....... वेदना और प्रेम का अद्भुत मिश्रण है आप में जो आपकी रचनाओ मे झलकता है.

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! बधाई!

Dr Varsha Singh ने कहा…

बेहतरीन रचना। बधाई।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

bahut hi sundar kavita badhai vandanaji

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

blog per sundar comments ke liye aabhar

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति.. लाज़वाब

vijay kumar sappatti ने कहा…

रिश्तों को इतनी खूबसूरती से इतने अच्छे बिम्बो के माध्यम से बताया है कि क्या कहूँ..

जय हो जी

विजय