तुम्हें
क्या फर्क
पड़ता है
मैं रहूँ
ना रहूँ
तुम्हारी
ज़िन्दगी में
मैं हंसूं
ना हंसूं
तुम्हें
अब फर्क
नहीं पड़ता ना
बस
तुम तो
अपने
मन की
अँधेरी
गुमनाम
गलियों में
गुम हो
क्या फर्क
पड़ता है
अब तुम्हें
जब खुद
से ही हमें
जुदा कर दिया
तेरी
बुत परस्ती
की आदत ने
हमें रुसवा किया
स्पर्श के
अहसास में
अंकित मेरे
वजूद को
अब कैसे
खुद में
समेटोगे
तुम्हारी
अधूरी
चाहत की
पूर्णता
अब कैसे
पाओगे
मेरे बिना
इतने जन्म
के बाद के
मिलन को
एक बार फिर
तुमने
अगले कई
युगों का
मोहताज़
बना दिया
मेरे वजूद
में जो तुम
अपना खुदा
तलाश रहे थे
मेरी साँसों
में अपनी
ज़िन्दगी
जी रहे थे
कहाँ गया
वो आखिरी
सांस तक
साथ जीने
का वादा
कैसे अब
हर कसम
निभाओगे
अब तुम
जन्म जन्म
के लिए
फिर ना
भटक जाओगे
मुझे अपनी
ज़िन्दगी
जन्मों के
तप का
फल मानने
वाले
कहो
अब कैसे
मेरे बिन
जन्म बिताओगे ?
39 टिप्पणियां:
तुम तो
अपने
मन की
अँधेरी
गुमनाम
गलियों में
गुम हो
गुम और गुमसुम को उबारने का दायित्व भी तो अहम होता है
सुन्दर अभिव्यक्ति और एहसास
सुन्दर रचना !
vndhna ji aap ka hardik aabhar
मुझे अपनी
ज़िन्दगी
जन्मों के
तप का
फल मानने
वाले
कहो
अब कैसे
मेरे बिन
जन्म बिताओगे ?.... प्रेम को नया आयाम देती यह कविता मनके भीतर समा गयी...
bhn ji guzri hui yaadon or fir aaj kaa drd bedrd baalmaa ki khaani bhut bhut achche maarmik dil ko chune vaale andaaz men lekh dali he bhut bhut mubark ho dipavli bhi bhut bhut mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan
आपकी कविताएँ पढ़ कर तो हमको मामला उल्टा लगता है .. !
अभ्व्यक्ति तो अच्छी है... कभी मिलन के बारे में भी लिखिये , कल्पनाओं में तो सब संभव है, तो फिर वो सकारत्मक क्यों न हो, यह मेरा निजी मत है .... ...
दीपावली की शुभकामनाए ....
मार्मिक रचना। बधाई। घर मे हर दिन मने दिवाली। लक्ष्मी का भण्डार कभी न हो खाली। दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें
बहुत सुन्दर .
अन्नकूट की बधाई !
बहुत सुन्दर .
अन्नकूट की बधाई !
सबका अपना अपना दिन है, अपनी अपनी रात
जितना जितना निभा सकें , रहो प्रेम से साथ
भाव पूर्णता से एह्स्ससों को व्यक्त किया है ..
मजाल साहब की सकारात्मकता वाले संकेत से सहमत !
कहाँ गया
वो आखिरी
सांस तक
साथ जीने
का वादा
कैसे अब
हर कसम
निभाओगे....
--
इस रचना पर तो एक शेर ही गढ़ दिया मेंने भी!
--
हम जिन्दगी गुजार ही लेंगे तेरे बिना
तुमने भी तो वफा में बेवफाई की बहुत!
--
सुन्दर रचना!
मगर इस रचना का जन्म किस चोट को खाकर किया है आपने!
but parasti ki aadat ne ruswa kiya ....... waah
सुन्दर भावमयी प्रस्तुति।
वन्दना जी,
बहुत सुन्दर...ऐसे लगा जैसे प्रश्नों पर ही यह पूरी रचना की गयी है |
भावुक हृदय का सहज उच्छलन दिखा इस रचना में...!
प्रेम की अंतर्ज्वाला से दग्ध व्यथित मन के खामोश पीड़ा जगत की बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
वंदना जी.. मेरी तरफ से आपको और आपके घर के सभी लोगो को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाये!!
ज़िन्दगी
जन्मों के
तप का
फल मानने
वाले
कहो
अब कैसे
मेरे बिन
जन्म बिताओगे ?
बहुत ही मार्मिक और ह्रदयस्पर्शी प्रस्तुति...इतनी कशक और दर्द..लाजवाब..दीपावली की हार्दिक शुभ कामनायें
क्या फर्क पड़ता है तुम्हे ...... दर्द कि गहराई.... उफ्फ .............
काश उस मुकाम पे पहुंचा दे उसका प्यार,
वो कामयाब होने पर , मुझको बधाई दे.......
सलाम...
उलाहना है या दर्द अपना बयान कर दिया ....
सुन्दर !
सुंदर अभिव्यक्ति , शुभकामनायें
मुझे अपनी
ज़िन्दगी
जन्मों के
तप का
फल मानने
वाले
कहो
अब कैसे
मेरे बिन
जन्म बिताओगे ?
बहुत सुन्दर कविता है वन्दना जी.
अच्छी रचना।
बहुत सुंदर वंदना जी ... हर बार की तरह ... आपने एक बहुत गहरे प्रश्न से अंत किया है कविता का ...
...
भावपूर्ण कविता
...
bhaavpoorna rachna!!!
सुन्दर रचना...
मार्मिक रचना और एहसास
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
bandana jee...ek aur khubsurat rachna ke liye badhai...vry heart touching words...
प्रेम को ... सम्बंदों को नए आयाम दे रही है आपकी रचना .... बहुत खूब ..
bahut khoob ....samay abhav ke karan kuhh hi rachna padh paya ....aapke blog par rehna sukun deta hai !!!
मन की उथलपुथल में सिमटी रचना.............बहुत भावपूर्ण.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति .
कृपया ग्राम-चौपाल में पढ़ें --
" प्रदूषण के डर से , ना निकला घर से "
http://www.ashokbajaj.com/2010/11/blog-post_07.html
utam - badi sahjta se bhavo ko piroya hai -****
vandana ji ,
achchha sawal kiya hai,
Most beautiflly written poems by VANDANA GUPTA. Really impressed by the style and emtions of the poetry by VANDANA.
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