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शनिवार, 6 नवंबर 2010

अब कैसे मेरे बिन जन्म बिताओगे ?

तुम्हें
क्या फर्क 
पड़ता है 
मैं रहूँ 
ना रहूँ
तुम्हारी 
ज़िन्दगी में
मैं हंसूं 
ना हंसूं
तुम्हें
अब फर्क
नहीं पड़ता ना
बस 
तुम तो 
अपने 
मन की
अँधेरी
गुमनाम

गलियों में
 गुम हो 
क्या फर्क 
पड़ता है 
अब तुम्हें
जब खुद 
से ही हमें 
जुदा कर दिया 
 तेरी 
बुत परस्ती 
की आदत ने
हमें रुसवा किया 
स्पर्श के
अहसास में 
अंकित मेरे 
वजूद को 
अब कैसे 
खुद में
समेटोगे 
तुम्हारी
अधूरी 
चाहत की 
पूर्णता 
अब कैसे 
पाओगे 
मेरे बिना 
इतने जन्म
के बाद के 
मिलन को
एक बार फिर
तुमने 
अगले कई 
युगों का
मोहताज़ 
बना दिया 
मेरे वजूद 
में जो तुम
अपना खुदा
तलाश रहे थे
मेरी साँसों 
में अपनी 
ज़िन्दगी 
जी रहे थे
कहाँ गया 
वो आखिरी
सांस तक
साथ जीने

 का वादा
कैसे अब

हर कसम 
निभाओगे 
अब तुम
जन्म जन्म
के लिए
फिर ना
भटक जाओगे
मुझे अपनी
ज़िन्दगी 
जन्मों के 
तप का 
फल मानने 
वाले
कहो
अब कैसे 
मेरे बिन 
जन्म बिताओगे ?

39 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

तुम तो
अपने
मन की
अँधेरी
गुमनाम
गलियों में
गुम हो
गुम और गुमसुम को उबारने का दायित्व भी तो अहम होता है
सुन्दर अभिव्यक्ति और एहसास

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

सुन्दर रचना !

vedvyathit ने कहा…

vndhna ji aap ka hardik aabhar

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

मुझे अपनी
ज़िन्दगी
जन्मों के
तप का
फल मानने
वाले
कहो
अब कैसे
मेरे बिन
जन्म बिताओगे ?.... प्रेम को नया आयाम देती यह कविता मनके भीतर समा गयी...

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhn ji guzri hui yaadon or fir aaj kaa drd bedrd baalmaa ki khaani bhut bhut achche maarmik dil ko chune vaale andaaz men lekh dali he bhut bhut mubark ho dipavli bhi bhut bhut mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

आपकी कविताएँ पढ़ कर तो हमको मामला उल्टा लगता है .. !

अभ्व्यक्ति तो अच्छी है... कभी मिलन के बारे में भी लिखिये , कल्पनाओं में तो सब संभव है, तो फिर वो सकारत्मक क्यों न हो, यह मेरा निजी मत है .... ...

दीपावली की शुभकामनाए ....

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

मार्मिक रचना। बधाई। घर मे हर दिन मने दिवाली। लक्ष्मी का भण्डार कभी न हो खाली। दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें

ASHOK BAJAJ ने कहा…

बहुत सुन्दर .
अन्नकूट की बधाई !

ASHOK BAJAJ ने कहा…

बहुत सुन्दर .
अन्नकूट की बधाई !

राजेश उत्‍साही ने कहा…

सबका अपना अपना दिन है, अपनी अपनी रात
जितना जितना निभा सकें , रहो प्रेम से साथ

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भाव पूर्णता से एह्स्ससों को व्यक्त किया है ..

उम्मतें ने कहा…

मजाल साहब की सकारात्मकता वाले संकेत से सहमत !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

कहाँ गया
वो आखिरी
सांस तक
साथ जीने
का वादा
कैसे अब
हर कसम
निभाओगे....
--
इस रचना पर तो एक शेर ही गढ़ दिया मेंने भी!
--
हम जिन्दगी गुजार ही लेंगे तेरे बिना
तुमने भी तो वफा में बेवफाई की बहुत!
--
सुन्दर रचना!
मगर इस रचना का जन्म किस चोट को खाकर किया है आपने!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

but parasti ki aadat ne ruswa kiya ....... waah

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर भावमयी प्रस्तुति।

बेनामी ने कहा…

वन्दना जी,

बहुत सुन्दर...ऐसे लगा जैसे प्रश्नों पर ही यह पूरी रचना की गयी है |

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

भावुक हृदय का सहज उच्छलन दिखा इस रचना में...!

Dorothy ने कहा…

प्रेम की अंतर्ज्वाला से दग्ध व्यथित मन के खामोश पीड़ा जगत की बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.

Somendra Kataria ने कहा…

वंदना जी.. मेरी तरफ से आपको और आपके घर के सभी लोगो को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाये!!

Kailash Sharma ने कहा…

ज़िन्दगी
जन्मों के
तप का
फल मानने
वाले
कहो
अब कैसे
मेरे बिन
जन्म बिताओगे ?

बहुत ही मार्मिक और ह्रदयस्पर्शी प्रस्तुति...इतनी कशक और दर्द..लाजवाब..दीपावली की हार्दिक शुभ कामनायें

Devatosh ने कहा…

क्या फर्क पड़ता है तुम्हे ...... दर्द कि गहराई.... उफ्फ .............

काश उस मुकाम पे पहुंचा दे उसका प्यार,

वो कामयाब होने पर , मुझको बधाई दे.......



सलाम...

वाणी गीत ने कहा…

उलाहना है या दर्द अपना बयान कर दिया ....
सुन्दर !

केवल राम ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति , शुभकामनायें

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

मुझे अपनी
ज़िन्दगी
जन्मों के
तप का
फल मानने
वाले
कहो
अब कैसे
मेरे बिन
जन्म बिताओगे ?
बहुत सुन्दर कविता है वन्दना जी.

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छी रचना।

Dr Xitija Singh ने कहा…

बहुत सुंदर वंदना जी ... हर बार की तरह ... आपने एक बहुत गहरे प्रश्न से अंत किया है कविता का ...

मनोज भारती ने कहा…

...
भावपूर्ण कविता
...

अनुपमा पाठक ने कहा…

bhaavpoorna rachna!!!

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

सुन्दर रचना...

रचना दीक्षित ने कहा…

मार्मिक रचना और एहसास

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

Anupriya ने कहा…

bandana jee...ek aur khubsurat rachna ke liye badhai...vry heart touching words...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रेम को ... सम्बंदों को नए आयाम दे रही है आपकी रचना .... बहुत खूब ..

बेनामी ने कहा…

bahut khoob ....samay abhav ke karan kuhh hi rachna padh paya ....aapke blog par rehna sukun deta hai !!!

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

मन की उथलपुथल में सिमटी रचना.............बहुत भावपूर्ण.....

ASHOK BAJAJ ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति .

कृपया ग्राम-चौपाल में पढ़ें --
" प्रदूषण के डर से , ना निकला घर से "

http://www.ashokbajaj.com/2010/11/blog-post_07.html

Aditya Tikku ने कहा…

utam - badi sahjta se bhavo ko piroya hai -****

Renu Sharma ने कहा…

vandana ji ,
achchha sawal kiya hai,

world of pkroy ने कहा…

Most beautiflly written poems by VANDANA GUPTA. Really impressed by the style and emtions of the poetry by VANDANA.