जब चाहतें थीं तो
हर हसरतें फ़ना हो गयी
अब चाहतें नहीं तो
हर हसरत जवाँ हो गयी
कल जब बुलाते थे तो
दूर छिटक जाते थे
आज बिन बुलाये
चले आते हैं
ये कैसे हसरतों के साये हैं
बंद किवड़िया खडकाए हैं
खुशियों के दरवाजे
जब बंद कर दिए हमने
तो देहरी पर
दस्तक दिए जाते हैं
अब शाख से टूटे पत्ते को
दोबारा कैसे जोडूँ
मुरझाये फूल को
कैसे खिला दूँ
कौन सा वो सावन लाऊँ
जो गुलशन हरा हो जाये
अरमानो की कब्र पर
कौन सा दीया जलाऊँ
जो हर अरमान एक बार
फिर जी जाए
इक बार दफ़न हुई
अरमानों की दुनिया
फिर आबाद नहीं होती
किसी भी आरजू
किसी भी हसरत की
तलबगार नहीं होती
मुर्दे कब जिंदा हुए हैं
भुने हुए बीजों से
अंकुर नहीं उगते
इसीलिए शायद
इक बार दफ़न
हुई चाहतें
दोबारा कफ़न
नहीं ओढती
39 टिप्पणियां:
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
क्या बात है ..बहुत भावपूर्ण लिखा है.
इक बार दफ़न
हुई चाहतें
दोबारा कफ़न
नहीं ओढती
कितनी गहराई है इसमें..............
वन्दना जी आपकी कलम हमेशा जज्बातों का सैलाब लेकर आती है ...............
इक बार दफ़न
हुई चाहतें
दोबारा कफ़न
नहीं ओढती
कितनी गहराई है इसमें..............
वन्दना जी आपकी कलम हमेशा जज्बातों का सैलाब लेकर आती है ...............
सही बात है एक बार चाहतें दफन हो जायें तो मुश्किल से जिन्दगी पटरी पर्5 आती है बहुत भावमय रचना है। शुभकामनायें
शीर्षक से ही भावनाओं की गहराई का एह्सास होता है।
मुर्दे कब जिंदा हुए हैं
भुने हुए बीजों से
अंकुर नहीं उगते
इसीलिए शायद
इक बार दफ़न
हुई चाहतें
दोबारा कफ़न
नहीं ओढती|
अति सुन्दर सात्विक भावना!
सहज शब्दों में घेरा भाव लिखती हैं आप.. जिन्दगी कि विडंबना को बहुत सहजता से लिखा है.. सुंदर कविता
थैंक्स गॉड!
आपका ब्लॉग खुला तो सही!
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जब चाहतें थीं तो
हर हसरतें फ़ना हो गयी
अब चाहतें नहीं तो
हर हसरत जवाँ हो गयी
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बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति!
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इन पंक्तियों पर तो
गीत भी रचा जा सकता है!
sundar bhavabhvykti
Aah! Ye kya likh dala tumne!Dilpe ajeeb se saaye mandrane lage...
इक बार दफ़न
हुई चाहतें
दोबारा कफ़न
नहीं ओढती
एक खूबसूरत एहसास से परिपूर्ण सुंदर रचना और साथ ही बिम्बों का बेहतरीन प्रयोग, बहुत बधाई
कितनी सुंदर पर कितनी नैराश्य से भरी कविता ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
वंदना जी, शुभप्रभात.
सुबह सुबह ऐसी भाव पूर्ण रचना पढ़ना अच्छा अनुभव है. आपको बधाई. .
भुने हुए बीजों से
अंकुर नहीं उगते
इसीलिए शायद
इक बार दफ़न
हुई चाहतें
दोबारा कफ़न
नहीं ओढती
बहुत गहराई लिए हुए ..अच्छी प्रस्तुति
जी नहीं,
चाहतें कभी दफ़न नहीं होती
चाहतें कभी रहन नहीं होतीं
चाहतें न हों आपके मन में
तो दुनिया चमन नहीं होती
बहरहाल यह कहने का मौका देने के लिए शुक्रिया।
uf khudaya
बहुत उम्दा और सशक्त अभिव्यक्ति.
रामराम.
बहुत भावपूर्ण लिखा है ।
बहुत ही उम्दा रचना ...!!
गज़ब के बिम्ब तराशे हैं आपने इस बार फिर से.. खुद का ही एक शेर याद आ गया कि 'चलती नब्ज़ देखकर कहने लगा हकीम.. कि चाहतें बाकी रहीं बस, जिंदगी नहीं'
wahwa....kya baat hai......
Waah! bahut sundar likha hai aapane.
...behatreen ... jabardast rachanaa ... bahut bahut badhaai !!!
बहुत ही भावपूर्ण रचना...
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
gar dastaken hain to nihsandeh ankurit hongi chahten ....
vandana ji, bahut hi bhavpurn avam prabhav shali abhivyakti.har ek paira dil ki gahraiyo ko chhute hue nikla lagta hai.ati sundar----
poonam
vandana ji,
bahut hi gahanta liye bhavnatmak abhivykti.behad prashanshaniy.जब चाहतें थीं तो
हर हसरतें फ़ना हो गयी
अब चाहतें नहीं तो
हर हसरत जवाँ हो गयी
कल जब बुलाते थे तो
दूर छिटक जाते थे
आज बिन बुलाये
चले आते हैं
ये कैसे हसरतों के साये हैं
बंद किवड़िया खडकाए हैं
ek dam sahi chitran-----
poonam
दफ़न हुई चादरे कभी कफ़न नहीं ओढ़ती
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
धन्यवाद.
दफ़न हुई चादरे कभी कफ़न नहीं ओढ़ती
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
धन्यवाद.
ant tak aate-aate dil bhaari ho gayaa sach.....
अच्छी लगी आपकी पंक्तियां
स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं
हैपी ब्लॉगिंग
सच में बहुत मुश्किल है दफ़न हुई चाहतो को जिन्दा करना....फिर भी मुखोटे बदलने पड़ते हैं.
बहुत भावपूर्ण रचना.
अति सुन्दर सात्विक भावना!
वन्दे मातरम !
आपको भी स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ और एक सुन्दर रचना के लिए बधाई ख़ास कर यह पंक्ति "भुने हुए बीजों से अंकुर नहीं उगते" मुहावरे के तौर पर इस्तेमाल की जा सकती है।
बहुत खूब ... ये ही तो ज़माने की रीत है ... अरमान जागने पर हसरत नही रहती ... बहुत गहरी बात ...
dard aur sirf dard ..hasrato ne dard ki chaadar aod rakhi hai
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