हम तो डूबे हुए अशआर हैं
दर्द बिन ग़ज़ल बन नहीं सकते
बहर मात्राओं की जुगलबंदी बिन
मुकम्मल शेर बन नहीं सकते
अब कौन पड़े जुल्फों के पेंचोखम में सनम
गिर- गिर के दरिया में अब संभल नहीं सकते
उजालों का सदा ही तलबगार रहा ज़माना
हम तो अंधेरों के सायों से भी अब लड़ नहीं सकते
ये मय्यतों पर झूठे आँसू बहाने वाले
कभी ज़िन्दगी के तलबगार बन नही सकते
दुआ दें या बददुआ उसके दरबार के कानून
किसी के लिए कभी बदल नहीं सकते
मुमकिन है बदल जाए ईमान शैतान का
इंसान में छुपे शैतान को कभी बदल नहीं सकते
49 टिप्पणियां:
सुंदर है जी.
आप बन जाए तो बेहतर 'मजाल',
कोशिश गजल में मगर कर नहीं सकते
Kabhi jab zindagee se jhoojhte hue thak jate hain,to bilkul aisahee lagta hai!
Bahut sundar likha hai,hameshakee tarah!
मुमकिन है बदल जाए ईमान शैतान का
इन्साफ में छुपे शैतान को बदल नहीं सकते ...........
सत्य बात निकली है.... काश मोबाइल फोन के न. की तरह इंसान में छुपे शैतान को भी बदल देते.
हम तो डूबे हुए अशआर हैं
दर्द बिन ग़ज़ल बन नहीं सकते
बहुत खूब वंदना जी. एक बार फिर शुक्रिया सुंदर ग़ज़ल पेश करने के लिए.
पढ़ चले।
गजल का हर एक कता बहुत बढ़िया है!
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हर शेर में सन्देश छिपा हुआ है!
भाई हमें तो आखिरी वाला शेर सबसे ज्यादा पसंद आया !
बड़ा सुन्दर।
मुमकिन है बदल जाए ईमान शैतान का
इन्साफ में छुपे शैतान को बदल नहीं सकते ...........
हकीकत का आइना दिखाया आपने
अच्छी रचना के लिए बधाई..........
Vandana,"Bikhare sitare'pe aapkaa shukriya ada kiya hai,zaroor padhen!
कुछ कहिये नहीं पा रहे हैं!!
अब कौन पड़े जुल्फों के पेंचोखम में सनम
गिर- गिर के दरिया में अब संभल नहीं सकते
वाह!
क्या बात है!!
आपकी पोस्ट रविवार २९ -०८ -२०१० को चर्चा मंच पर है ....वहाँ आपका स्वागत है ..
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत अच्छी रचना।
हिंदी, नागरी और राष्ट्रीयता अन्योन्याश्रित हैं।
मुमकिन है बदल जाये ईमान शैतान का
इंसान में बसे शैतान बदल नहीं सकते ...
क्या खूब पंक्तियाँ हैं ...
आपके तखय्युल की दाद देता हूँ जिन्होंने वज्न और काफिये की कमी को ढँक सा दिया है|
bahut khub vandana ji...
sundar hai bahut hi...
मुमकिन है बदल जाए ईमान शैतान का
इंसान में छुपे शैतान को कभी बदल नहीं सकते ..... bilkul badal sakte hain...yadi vo badalna chahe ya phir samne vale mein itni khubiyan aur dhairya ho jo shaitan ko bhi badal de. Ummid par duniya kayam hai.....
अपने मे लाजबाब शेरों को समेटे हुए एक बहुद ही उम्दा रचना वन्दना जी !
बहर मात्राओं की जुगलबंदी बिन
मुकम्मल शेर बन नहीं सकते
इसकी तो ज़रूरत ही नहीं है ..वैसे ही मुक्कमल है ....
मुमकिन है बदल जाए ईमान शैतान का
इंसान में छुपे शैतान को कभी बदल नहीं सकते
बहुत सटीक बात कह डी है ....खूबसूरत गज़ल कहूँ ? शेर कहूँ ? नज़्म कहूँ ?
क्यों की मुझे भी नहीं मालूम की गज़ल क्या होती है :)
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
मुमकिन है बदल जाए ईमान शैतान का
इंसान में छुपे शैतान को कभी बदल नहीं सकते
....sach mein jab insaan shaitan banta hai to kitna kuroop ban jaat ahai..
bahut sundar prastuti ke liye aabhar
वंदना जी....
तेरी इस ग़ज़ल पर, लिखें न अगर कुछ..
तो दिल ये न माने, हमारा भी ऐसे....
अशर-दर-अशर ये, ग़ज़ल जो कही है...
हुआ दर्द दिल में, बताएं तो कैसे....
सुन्दर ग़ज़ल...हर अशाअर एक से बढ़कर एक...
वाह....
दीपक....
: हम तो डूबे हुए अशआर हैं :
बढ़िया गजल .... हमेशा की तरह लाजबाब प्रस्तुति.....आभार
मुकम्मल शे'र भी कुछ कहने के लिए ही चाहिए। अंत में वाह न निकले तो मात्रा और छंद का समन्वय भी बेकार। जो आपने लिखा,कमोबेश,वही हम सबका अनुभव है।
बहुत खूब...
अच्छी कविता लिखी है आपने ...
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/
just amazing
मुमकिन है बदल जाए ईमान शैतान का
इंसान में छुपे शैतान को कभी बदल नहीं सकते
बहुत प्रभावशाली पंक्तियाँ हैं ! अति सुन्दर !
http://sudhinama.blogspot.com
.
कटु सत्य को दर्शाती बेहत खूबसूरत रचना।
बधाई ।
.
शैतान और ईमान ? बहुत अच्छी प्रस्तुति।
धन्यवाद !
ohho..kya baat hai :)
दुआ दें या बददुआ उसके दरबार के कानून
किसी के लिए कभी बदल नहीं सकते
बहुत खूब .. सच कहा है ... उसके दरबार में सब बराबर हैं ... न कोई राजा न रंक हैं ....
अच्छी प्रस्तुति.
मुमकिन है बदल जाए ईमान शैतान का
इन्साफ में छुपे शैतान को बदल नहीं सकते ...
सभी पंक्तियां अपने में जीवन की सच्चाइयां समेटे हुए है!...धन्यवाद!
हम्म रचना ठीक लगी.. सुन्दर भाव मैम..
सच कहा है इंसान के अन्दर छिपा शैतान कभी नहीं बदल सकता.......
वाह वाऽऽह !
बड़ा सुन्दर।
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आजकल आपके असिर्वाद की कमी सी महसूस हो रही हैं मुझे
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http://sometimesinmyheart.blogspot.com/
बेहद ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
हम तो डूबे हुए अशआर हैं
दर्द बिन ग़ज़ल बन नहीं सकते
बहर मात्राओं की जुगलबंदी बिन
मुकम्मल शेर बन नहीं सकते
bahut gahri baate kah gayi ,shaandaar rachna
Vandana,"Bikhare Sitare"pe phir ekbaar tumhara shukriya!
मुमकिन है बदल जाए ईमान शैतान का
इन्साफ में छुपे शैतान को बदल नहीं सकते
...आपकी ये अंतिम पंक्तियाँ सोचने पर मजबूर करती हैं...उत्तम प्रस्तुति..बधाई.
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'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)
श्रीकृष्णजन्माष्टमी की बधाई .
जय श्री कृष्ण !!!
मुमकिन है बदल जाए ईमान शैतान का
इंसान में छुपे शैतान को कभी बदल नहीं सकते
sahii kaha, ati sundar
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अकेला या अकेली
हम तो डूबे हुए अशआर हैं
दर्द बिन ग़ज़ल बन नहीं सकते
आप तो उभरते हुये अशार हैं जी
बहुत सुन्दर खास कर आखिरी पँक्तियां। शुभकामनायें
इंसान में छुपे शैतान को कभी बदल नहीं सकते. कटु पर परम सत्य.
bahut sundar.. saitan to insaan ban sakta hai par ma ke andar ke shaitan kaa kya ho... bahut sundar likha ..vandna ji....aapka shukriya..
outstanding...........
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