काश !
मौन के ताले की भी कोई चाबी होती
तो जुबाँ ना यूँ बेबस होती
कलम ना यूँ खामोश होती
कोई आँधी जरूर उमडी होती
इन बेबसी के कांटों का चुभना …
मानो रूह का ज़िन्दगी के लिये मोहताज़ होना
बस यूँ गुज़रा हर लम्हा मुझ पर
ज्यूँ बदली कोई बरसी भी हो
और चूनर भीगी भी ना हो
ये फ़ितूरों के जंगल हमेशा बियाबान ही क्यों होते हैं?
मौन के ताले की भी कोई चाबी होती
तो जुबाँ ना यूँ बेबस होती
कलम ना यूँ खामोश होती
कोई आँधी जरूर उमडी होती
इन बेबसी के कांटों का चुभना …
मानो रूह का ज़िन्दगी के लिये मोहताज़ होना
बस यूँ गुज़रा हर लम्हा मुझ पर
ज्यूँ बदली कोई बरसी भी हो
और चूनर भीगी भी ना हो
ये फ़ितूरों के जंगल हमेशा बियाबान ही क्यों होते हैं?
13 टिप्पणियां:
इसलिए की फितूरों का कोई वजूद नहीं होता , होना भी नहीं चाहिए .मन में उपजे तो किनारे करने में ही भलाई है . गुस्ताखी माफ़ वंदना जी
हर शब्द की अपनी एक पहचान बहुत खूब क्या खूब लिखा है आपने आभार
ये कैसी मोहब्बत है
हर शब्द की अपनी एक पहचान बहुत खूब क्या खूब लिखा है आपने आभार
ये कैसी मोहब्बत है
हर शब्द की अपनी एक पहचान बहुत खूब क्या खूब लिखा है आपने आभार
ये कैसी मोहब्बत है
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...
आप भी पधारें
ये रिश्ते ...
बहुत उम्दा प्रस्तुति | बढ़िया रचना | बधाई
यहाँ भी पधारें और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
अच्छी रचना
बेहतरीन रचना
आज की ब्लॉग बुलेटिन ये कि मैं झूठ बोल्यां मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
इसीलिए तो इन्हें फितूर कहा जाता है.... :-)
~सादर!!!
क्योंकि फितूर तो है फितूर बेचारा अकेला ही रह जाता है।
सुन्दर शब्द-संयोजन
मौन के ताले की खोज बेबसी से आगे निकलने का मार्ग प्रशस्त करती है.
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