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मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

हाय ! सोशल मिडिया तूने बड़ा दुःख दीन्हा

बरसात के बाद उग आये
कुकुरमुत्तों से हम
आज के दौर के
कवि कहलाते हैं
एक लाइक और एक टिपण्णी
पर फूले नहीं समाते हैं
एक पत्रिका में छपने पर
एक सम्मान पाने पर
एक जुगाड़ लगाने पर
बांछें खूब खिलाते हैं
मगर असलियत
नहीं जान पाते हैं
पल दो पल के जीवन सा
ये सोशल  दरबार सजाया है
जिसने हर लिखने वाले को
कवि बनाया है
जो छोटी -छोटी उपलब्धियों पर
उड़ान भरने लगता है
मगर एक दिन खुद को
कुएं के मेंढक सा
जब घिरा पाता है
तब हाथ मलके पछताता है
हाय सोशल मिडिया
तूने बड़ा दर्द दीन्हा 


मेरा मुझमे जो
सुख चैन था
वो भी है छीना
अब न वो उड़ान
भर पाता हूँ
न मस्ती से जी पाता हूँ
बस कुछ न कुछ
जरूर लिखना है
चाहे साहित्यिक हो या नहीं
लिखने से न बच पाता हूँ
और ये सच भूल जाता हूँ
बरसाती कुकुरमुत्तों का
जीवन ना ज्यादा होता है
एक न एक दिन
उन्हें तो मिटना होता है
बिना किसी
पहचान के
हाय ! सोशल मिडिया
तूने बड़ा दुःख दीन्हा

27 टिप्‍पणियां:

mridula pradhan ने कहा…

kya andaz hai.......wah.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

पर सारे दुखों के मध्य मैं हूँ तो कल्पनाशील .......... मरूंगी नहीं,
कवि कहो या बेकार - लेती रहूंगी आकार

Aruna Kapoor ने कहा…

...जी, वंदना जी!...कविताएँ कवि अपने लिए ही मानों लिखता है!...ऐसे में कहीं से दो-चार टिप्पणियाँ मिल जाती है तो मन प्रसन्न हो जाता है...यही सच्चाई है!

Satish Saxena ने कहा…

एक लाइक२ और एक टिपण्णी ...
हाय आपने मर्म छेड़ दिया !

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

वाह जी वाह | आपने तो सोशल मीडिया वालों की क्लास लगा दी | सुन्दर भाव | आभार |

Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

Madan Mohan Saxena ने कहा…

very true. well said

Unknown ने कहा…

वंदना जी ब्लॉग वास्तव में एक पर्सनल डायरी मात्र है अंतर बस इंतना है की उस डायरी को हम सबको पढने के लिए उपलब्ध करा देते हैं और कुछ वाही वाही लूट लेते है और खुश होते हैं .साहित्य और असाहित्य , कविता और अकविता मात्र इसका उसका भ्रम है असली तो बस स्वयं की खुशी है बस और कुछ नहीं अब चाहे कविता लिखो या संकलन छापो और मुफ्त बांटो.

इमरान अंसारी ने कहा…

:-)))

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

मै अरुणा जी की टिप्पणी से सहमत हूँ,,,
अगर ऐसा नही है तो लोग कमेंट्स बाक्स बंद कर रखते,,,कमेंट्स ही रचना गढ़ने उत्साह बढाता है,,

RECENT POST बदनसीबी,

shikha varshney ने कहा…

हम्म है तो ऐसा ही ..पर बुरा क्या है :)

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इसमें मीडिया का क्या कसूर जी ... अपने दिल को समझा नहीं पाते हम ...
आपका ये निर्मल हास्य अच्छा लगा ....

Pratibha Verma ने कहा…

पर सारे दुखों के मध्य मैं हूँ तो कल्पनाशील ......... बहुत सुन्दर ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कितने सम्बन्ध बन जाते हैं, खिंचाव तो होना स्वाभाविक ही है वहाँ।

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सही बात कही है आपने भावनात्मक अभिव्यक्ति राजनीतिक सोच :भुनाती दामिनी की मौत आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

ये शोसल मीडिया भी बेचारा बलि का बकरा बन ही जाता है :)

Rajendra kumar ने कहा…

कुरुबंश जी और धीरेन्द्र जी के कॉमेंट्स से मैं सहमत हूँ,सोशल मीडिया की खाल उधेड़ती सुंदर रचना।

Rajendra kumar ने कहा…

कुरुबंश जी और धीरेन्द्र जी के कॉमेंट्स से मैं सहमत हूँ,सोशल मीडिया की खाल उधेड़ती सुंदर रचना।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हालात ही ऐसे हैं।
सोशल मीडिया भी तो मजबूर है!

सदा ने कहा…

सार्थकता लिये सशक्‍त लेखन ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

:):) .... इसी बहाने मन के कुछ भाव बाहर तो आते हैं .... थोड़ी शांति मिलती है ....

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

:) Baat To Sahi Hai....

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

:))) ... अपने दिल की बात खुद से कहते हैं ..... लिखकर एक अजब सा सुकून मिलता है ...
~सादर!!!

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

:))) ... अपने दिल की बात खुद से कहते हैं ..... लिखकर एक अजब सा सुकून मिलता है ...
~सादर!!!

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

:))) ... अपने दिल की बात खुद से कहते हैं ..... लिखकर एक अजब सा सुकून मिलता है ...
~सादर!!!

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

:))) ... अपने दिल की बात खुद से कहते हैं ..... लिखकर एक अजब सा सुकून मिलता है ...
~सादर!!!

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

बात पते की है !

Ramakant Singh ने कहा…

aapaka gussa sahi hai .