मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मैं
कौन सुनेगा और समझेगा क्यों उदास हूँ मैं
ना जाने कौन सी बर्फ़ जमी है
जो ना पिघली है ना रिसी है
कोई धधकता अलाव जला लो कि उदास हूँ मैं
ये जो दर्द की पोरे रिसती है
रस्सी की ऐंठन सी अकडती हैं
कोई इस दर्द को थोडा और पका दो कि उदास हूँ मैं
दिल की फ़टती बेचैनियों को समझा दो
मुझे मेरे रब से इक बार मिला दो
कोई अश्क मेरी आँख से ढलका दो कि उदास हूँ मैं
………किससे कहूँ ? कौन सुनेगा और समझेगा क्यों उदास हूँ मैं
20 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति वंदना जी,सादर आभार.
बहुत ही खूबसूरत भाव , बेहतरीन काव्य का नमूना बधाई
Very nice word filled with amazing sentiments.
Neeraj"neer"
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)
ये उदासी भी तो कुछ दे ही जाती है..
दिल से निकली आह!
जब भी हुआ उदास मैं
तुम बहुत याद आये ...
शुभकामनायें!
बेहद भावपूर्ण रचना..
..बहुत ही भावपूर्ण रचना...बधाई वन्दना जी!
सपनों को हौले हौले बहने दें, हम मानव हैं।
वाह वंदना जी क्या बात है इन शब्दो ने समां बांध दिया
bahut sundar bhav...
दिल की फ़टती बेचैनियों को समझा दो
मुझे मेरे रब से इक बार मिला दो
nari ka virah shrangar...bahut khoob
जादू कि जफ्फी बहुत काम करती है जी
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|
वाह ........"समझने वाला समझ ही लेगा क्यों उदास हो तुम"
यूँ उदास नहीं होते....दोस्तों से दिल की बात कह कर देखो ।
यह उदासी कुछ समय 'अपने' साथ बिताने का भी मौका देती है ....है न ...!!!! ....
शुक्रिया वंदना मेरी कविता को पसंद करने के लिए
आपकी ये नज़्म पढ़ी . बहुत सुन्दर लिखा है .. बधाई स्वीकार करिए . प्रेम के कई शेड्स है इसमें. शब्द भावपूर्ण है .और सच तो यही है कि उदासी अपनी होती है और ईसिस उदासी में बहुत कुछ रच जाता है .
विजय
www.poemsofvijay.blogspot.in
उदास भाव लिए ... गहरा एहसास लिए ...
उदासियों के सिले से निकल और भी जिन होगा,
ज़िन्दगी अभी तू बहुत बाकी है,यह भी सोचना होगा
एक अच्छी नज्म,
दिल की असमंजस भरी मौन व्यथा , कोई अपना ही समझ सकेगा |सुन्दर कविता हर मोड़ को इंगित कराती | बधाई
उदासियों का हक भी बनता है कई बार जिंदगी पर...
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