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सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

बेरंग लिफ़ाफ़े सा जिनका वजूद


Photo: सुश्री वन्दना गुप्ता

मुझे कहा गया बेटियों पर 
कुछ लिखो,कुछ कहो 
और मैं सोच में पड गयी
क्या लिखूँ और कैसे लिखूँ 
इस सदी की या उस सदी की व्यथा 
कहो तो किस पर लिखूँ ?
बेरंग लिफ़ाफ़े सा जिनका वजूद 
कभी यहाँ तो कभी वहाँ डोलता रहा
मगर कहीं ना अपना पता मिला
और वो ढूँढती रहीं एक आशियाना
उम्र के ज़िबह होने तक …………

आह ! बेटी शब्द हथौडे सा 
सीने पर पड गया 
जब किसी ने मादा होने का 
उसे दंड दिया 
जब किसी ने अफ़ीम का सेवन
करा दिया 
जब किसी ने पायताने के नीचे
गला रेत दिया
जब किसी ने खौलते दूध में
उबाल दिया
जब किसी ने गर्भ में ही 
मरवा दिया 

बेटी पराया धन 
बेटी का कन्यादान
अब ये घर तेरा नहीं 
जैसे जुमलों ने 
उसके अस्तित्व पर 
प्रश्नचिन्ह बना दिया 
ना जाने कौन सी सोच ने
ना जाने कौन से ग्रंथ ने
ना जाने कौन से धर्म ने
ये फ़र्क पैदा किया 
जो अपने ही शरीर के अंग पर
समाजिक मान्यताओं का तेज़ाब गिरा दिया 
और झुलस गयीं सदियाँ ………
और वो अपना घर आज भी  ढूँढ रही है
फिर कहो तो कहाँ उसकी दशा बदली है 

बात चाहे शिक्षा की हो
चाहे खानपान की
बेटियों से ही त्याग कराया जाता है
कल हो या आज 
कोई खास फ़र्क नही दिखता है
क्योंकि 
तबका कोई भी हो 
ऊँचा या नीचा
छोटा या बडा 
हालात ना कहीं बदले हैं
बल्कि ये चलन तो 
ऊँचे तबके से ही
नीचले तबकों तक उतरे हैं
जिसका असर निरक्षरों पर ज्यादा दिखता है
बेशक आज का पढा लिखा भी यही सब करता है
मगर उसकी बनायी गयी राहों पर जब
कोई अनपढ चलता है तो दोषी नहीं रह जाता है 
क्योंकि 
उसके लिये तो बेटा कमाऊ पूत होता है
और बेटी बोझ …………

किस पर लिखूँ 
सोच मे हूँ 
क्योंकि
कल की तस्वीर ने 
आज भी ना रुख बदला है
कल जन्मने के बाद मरण तय था
आज जन्म से पहले 
फिर कैसे कहते हैं 
सभ्यता बदल गयी है
फिर कैसे कहते हैं 
स्थिति मे बदलाव आया है
पहले से काफ़ी ठहराव आया है
फ़र्क आया है तो सिर्फ़ इतना
कि सोनोग्राफ़ी की तकनीक ने 
खिलने से पहले ही कली को दफ़नाया है
ना सोच बदली ना मानसिकता
ना दशा ना दिशा 
फिर भी प्रश्न उठ जाते हैं 
आज तो बेहद सुखद परिस्थितियाँ हैं
बेटियाँ कल्पना चावला , मैरी काम , इन्दिरा नूई 
बन रही हैं 
उच्च पदासीन हो रही हैं
विश्व स्तर पर नाम रौशन कर रही हैं
फिर कैसे कह सकते हो 
कि व्यवस्था में दोष है 
मगर इस सत्य को ना किसी ने जाना है
सवा करोड की आबादी में
इन महिलाओं का प्रतिशत कितना है?
ना केवल महिलाओं बल्कि 
कितने प्रतिशत बेटियोँ को 
आज भी बेटे पर तरज़ीह दी जाती है
कभी ना इसका आकलन किया गया 
गर आँकडों पर गौर किया जायेगा
तो भयावह सच सामने आयेगा 
बेटियों की दशा और दुर्दशा में 
ना कल कोई फ़र्क था 
और ना आज कोई ज्यादा फ़र्क नज़र आयेगा
जब तक ना बेटियों के महत्त्व को
दिल से स्वीकारा जायेगा
जब तक ना बेटियों के अस्तित्व के लिये 
एक आह्वान खुद की जागृति का 
खुद से ना किया जायेगा
तस्वीर का रुख तो धुँधला ही नज़र आयेगा 
क्योंकि
मोतियाबिंद के इलाज के लिये चीर फ़ाड तो डाक्टर ही किया करता है 
और हम खुद ही बीमार हैं
और इलाज के लिये डाक्टर भी खुद ही हैं 
अब ये हम पर है 
पिछली सडी गली परिपाटियों को पीटते रहें
या एक नया इतिहास लिखें
जो आने वाले कल का स्वर्णिम पल बने
शायद कुछ भी कहना या लिखना तभी सार्थक होगा
और जिस दिन हर घर में बेटियों के आगमन पर ढोल नगाडा बजेगा
वो ही दिन , वो ही पल  पूर्णता का सूचक होगा…………एक नयी क्रांति का आगाज़ होगा


23 फ़रवरी को डायलाग में " बेटियों"  पर कविता पाठ करते हुये

17 टिप्‍पणियां:

Saras ने कहा…

वाकई ...सोच में क्रांति लानी होगी ..पूरा थोट प्रोसेस बदलना होगा .....कंडिशनिंग को शरीर में बहते रक्त से निचोड़ फेंकना होगा ...तभी कुछ संभव हो सकेगा ....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यह सोच एक न एक दिन बदलेगी, तब समाज और सुन्दर होगा।

Ayodhya Prasad ने कहा…

शायद कुछ कहना या लिखना तभी सार्थक होगा
और जिस दिन हर घर में बेटियों के आगमन पर ढोल नगाड़ा बजेगा

लाजवाब ...

skashliwal ने कहा…

Umda ~ kranti ki aagaz ke liye Sadhuwad ~

सदा ने कहा…

सार्थकता लिये सशक्‍त अभिव्‍यक्ति ... आभार

Dinesh pareek ने कहा…

सच और सच और कुछ नहीं इस मर्द को जो बीमारी लग गई है उस से निजात दिलानी होगी तभी ये संभव होगा पता नहीं क्यूँ अपने ही टुकड़े को टुकडो में बाटते है शर्म , लिहाज , क्यादा , कानून,मान, सामान ये शब्द तो जैसे किताबो के होकर रह अगये है
मेरी नई रचना

मेरे अपने

खुशबू
प्रेमविरह

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

vandna jee soch jarur badlegi ham mai n ....ham sabhi betiyaan ...maa bnkar parivartan la rahe hai ....chintan ke liye prerit karti rachna ....

shikha varshney ने कहा…

माहोल बदल रहा है ..मानसिकता बदलने में वक़्त लगेगा, पर बदलेगी जरूर

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बेहद सुन्दर प्रस्तुति | सादर |

Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

kuldeep thakur ने कहा…

सूचना...
आप की ये रचना शुकरवार यानी 01-03-2013 को
http://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जा रही है। इस हलचल में आप का स्वागत है।

Vandana Ramasingh ने कहा…

बदलाव की वाकई जरूरत है..... मन को िझंझोडती रचना

रचना दीक्षित ने कहा…

क्रांति ही शायद कुछ बुनियादी बदलाव ला सके. कविता एक व्यापक समस्या को समझने और हल ढूँढने का सार्थक प्रयास करती है.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये क्रान्ति तो लानी होगी ... अपने अंदर बदलाव तो खुद ही लाना होगा ... सोच बदलनी होगी ...

Ramakant Singh ने कहा…

सच कहा आपने

बेनामी ने कहा…

बेटियों के आगमन पर ढोल नगाडा बजेगा वो ही दिन , वो ही पल पूर्णता का सूचक होगा

Unknown ने कहा…

बदलाव की जमीन को तैयार करना ही होगा , मानसिकता को बदलकर और ये कठिन कार्य है मगर मुश्किल नहीं. सदी गली सोच जरूर बदलेगी..अच्छी कविता पाठ .

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सामाजिक वास्तविक परिस्थिति का लाजवाब अभिव्यक्ति ! बधाई
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