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शनिवार, 12 जनवरी 2013

मौत की नमाज़ पढ रहा है कोई

मौत की नमाज़ पढ रहा है कोई
कीकर के बीज बो रहा है कोई
ये तो वक्त की गर्दिशें हैं बाकी
वरना सु्कूँ की नीद कब सो रहा है कोई

आईनों को फ़ाँसी दे रहा है कोई

सब्ज़बागों को रौशन कर रहा है कोई
ये तो बेबुनियादी दौलतों की हैं कोशिशें
वरना हकीकतों में कब लिबास बदल रहा है कोई

नक्सलवाद की भेंट चढ रहा है कोई

काट सिर दहशत बो रहा है कोई
ये तो किराये के मकानों की हैं असलियतें
वरना तस्वीर का रुख कब बदल रहा है कोई

आशिकी की ज़मीन हो या भक्ति के पद

यहाँ ना धर्म बदल रहा है कोई
मीरा की जात हो या कबीर की वाणी
सबमें ना उगता सूरज देख रहा है कोई
ये तो बुवाई हो रही है गंडे ताबीज़ों की
वरना फ़सल के तबाह होने से कब डर रहा है कोई


बिसात चौसर की बिछा रहा है कोई

दाँव पर दाँव चल रहा है कोई
ये तो अभिशापित पाँसे हैं शकुनि के
वरना यहाँ धर्मयुद्ध कब जीत रहा है कोई


21 टिप्‍पणियां:

आर्यावर्त डेस्क ने कहा…

प्रभावशाली ,
जारी रहें।

शुभकामना !!!

आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

विभूति" ने कहा…

sarthak abhivaykti....

डॉ टी एस दराल ने कहा…

खतरनाक हो रहे हालात सरहदी
दुश्मन सर उठा रहा है फिर कोई।

हालात वास्तव में ख़राब हैं।

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति है |
बधाइयां ||

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

खतरनाक हो रहे हालात सरहदी
दुश्मन सर उठा रहा है फिर कोई।,सार्थक पोस्ट

सरहद की स्थिति वास्तव में सोचनीय है,,,,

recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...


ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सशक्त चित्रण किया है आपने, शुभकामनाएं.

रामराम

शिवनाथ कुमार ने कहा…

सही तस्वीर बयां करती ...
सार्थक रचना ..
सादर !

Vinay ने कहा…

अति सुंदर कृति
---
नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज के हालत पर सटीक विश्लेषण

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हर द्वारों पर द्वन्द खड़ा है,
प्रश्न सभी का बहुत बड़ा है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बिसात चौसर की बिछा रहा है कोई
दाँव पर दाँव चल रहा है कोई
ये तो अभिशापित पाँसे हैं शकुनि के
वरना यहाँ धर्मयुद्ध कब जीत रहा है कोई .......
सच तो यही है

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

:)

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

बहुत खूब .....

दरअसल हम सब केवल

और केवल "कोउ नृप होय

हमै का हानी" की अवधारणा के

साथ चल रहे हैं .....शायद यही

वजह है आज के हालात की ....

शुक्रिया !

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

चेतावनी।

--
थर्टीन रेज़ोल्युशंस

Anita ने कहा…

आज के हालात का यथार्थवादी चित्रण..

Ramakant Singh ने कहा…

सार्थक रचना बहुत ही शानदार

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

सार्थक रचना...

संध्या शर्मा ने कहा…

ये तो अभिशापित पाँसे हैं शकुनि के
वरना यहाँ धर्मयुद्ध कब जीत रहा है कोई

गहन अभिव्यक्ति ...लोहिड़ी व मकर संक्रांति पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बिसात चौसर की बिछा रहा है कोई
दाँव पर दाँव चल रहा है कोई
ये तो अभिशापित पाँसे हैं शकुनि के
वरना यहाँ धर्मयुद्ध कब जीत रहा है कोई ...

ये धर्मयुद्ध तो धर्म के साथ जो है वही जीतेगा ... पासे बस कुछ देर तक काम आ सकते हैं ... गहरी सोच के साथ ...

Kailash Sharma ने कहा…

बिसात चौसर की बिछा रहा है कोई
दाँव पर दाँव चल रहा है कोई
ये तो अभिशापित पाँसे हैं शकुनि के
वरना यहाँ धर्मयुद्ध कब जीत रहा है कोई

....कब तक शकुनी जीतेगा...गहन भाव लिए बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति...

मनोज कुमार ने कहा…

समय समाज की तस्वीर को बखूबी आपने इस रचना में समोया है।