मौत की नमाज़ पढ रहा है कोई
कीकर के बीज बो रहा है कोई
ये तो वक्त की गर्दिशें हैं बाकी
वरना सु्कूँ की नीद कब सो रहा है कोई
आईनों को फ़ाँसी दे रहा है कोई
सब्ज़बागों को रौशन कर रहा है कोई
ये तो बेबुनियादी दौलतों की हैं कोशिशें
वरना हकीकतों में कब लिबास बदल रहा है कोई
नक्सलवाद की भेंट चढ रहा है कोई
काट सिर दहशत बो रहा है कोई
ये तो किराये के मकानों की हैं असलियतें
वरना तस्वीर का रुख कब बदल रहा है कोई
आशिकी की ज़मीन हो या भक्ति के पद
यहाँ ना धर्म बदल रहा है कोई
मीरा की जात हो या कबीर की वाणी
सबमें ना उगता सूरज देख रहा है कोई
ये तो बुवाई हो रही है गंडे ताबीज़ों की
वरना फ़सल के तबाह होने से कब डर रहा है कोई
बिसात चौसर की बिछा रहा है कोई
दाँव पर दाँव चल रहा है कोई
ये तो अभिशापित पाँसे हैं शकुनि के
वरना यहाँ धर्मयुद्ध कब जीत रहा है कोई
21 टिप्पणियां:
प्रभावशाली ,
जारी रहें।
शुभकामना !!!
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sarthak abhivaykti....
खतरनाक हो रहे हालात सरहदी
दुश्मन सर उठा रहा है फिर कोई।
हालात वास्तव में ख़राब हैं।
बढ़िया प्रस्तुति है |
बधाइयां ||
खतरनाक हो रहे हालात सरहदी
दुश्मन सर उठा रहा है फिर कोई।,सार्थक पोस्ट
सरहद की स्थिति वास्तव में सोचनीय है,,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
बहुत सशक्त चित्रण किया है आपने, शुभकामनाएं.
रामराम
सही तस्वीर बयां करती ...
सार्थक रचना ..
सादर !
अति सुंदर कृति
---
नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें
आज के हालत पर सटीक विश्लेषण
हर द्वारों पर द्वन्द खड़ा है,
प्रश्न सभी का बहुत बड़ा है।
बिसात चौसर की बिछा रहा है कोई
दाँव पर दाँव चल रहा है कोई
ये तो अभिशापित पाँसे हैं शकुनि के
वरना यहाँ धर्मयुद्ध कब जीत रहा है कोई .......
सच तो यही है
:)
बहुत खूब .....
दरअसल हम सब केवल
और केवल "कोउ नृप होय
हमै का हानी" की अवधारणा के
साथ चल रहे हैं .....शायद यही
वजह है आज के हालात की ....
शुक्रिया !
चेतावनी।
ढ़
--
थर्टीन रेज़ोल्युशंस
आज के हालात का यथार्थवादी चित्रण..
सार्थक रचना बहुत ही शानदार
सार्थक रचना...
ये तो अभिशापित पाँसे हैं शकुनि के
वरना यहाँ धर्मयुद्ध कब जीत रहा है कोई
गहन अभिव्यक्ति ...लोहिड़ी व मकर संक्रांति पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ
बिसात चौसर की बिछा रहा है कोई
दाँव पर दाँव चल रहा है कोई
ये तो अभिशापित पाँसे हैं शकुनि के
वरना यहाँ धर्मयुद्ध कब जीत रहा है कोई ...
ये धर्मयुद्ध तो धर्म के साथ जो है वही जीतेगा ... पासे बस कुछ देर तक काम आ सकते हैं ... गहरी सोच के साथ ...
बिसात चौसर की बिछा रहा है कोई
दाँव पर दाँव चल रहा है कोई
ये तो अभिशापित पाँसे हैं शकुनि के
वरना यहाँ धर्मयुद्ध कब जीत रहा है कोई
....कब तक शकुनी जीतेगा...गहन भाव लिए बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति...
समय समाज की तस्वीर को बखूबी आपने इस रचना में समोया है।
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