सुनो
तुम ज़लालत की ज़िन्दगी जीने
और मरने के लिये ही पैदा होती हो
सुनो
तुम जागीर हो हमारी
कैसे तुम्हारे भले का हम सोच सकते हैं
सुनो
तुम इंसान नहीं हो जान लो
कैसे तुम्हें न्याय दे
खुद अपने पाँव पर कुल्हाडी मार सकते हैं
सुनो
तुम बलात्कृत हो या मरो
कानून तुम्हारे लिये नहीं बदलेगा
सुनो
तुम्हारी कुर्बानी को सारा जहान क्योँ ना माने
मगर कानून तो अपनी डगर ही चलेगा
सुनो
शहादत तो सीमा पर होती है
और तुम शहीद नहीं
इसलिये नाबालिग के तमगे तले
बलात्कारी पोषित होता रहेगा
सुनो
तुम , तुम्हारे शुभचिन्तक, ये बबाली
चाहे जितना शोर मचा लो, नारे लगा लो
आन्दोलन कर लो
व्यवस्थायें , शासन और देश
तुम्हारे हिसाब से नहीं चलेगा
सुनो
तुम्हारे जैसी रोज मरा करती हैं
और तुम जैसी के मरने से
या बलात्कृत होने से
देश और व्यवस्थायें , समाज और कानून
परिवर्तित नहीं हुआ करते
संविधान में यूँ ही संशोधन नहीं हुआ करते
जब तक कि कोई कानून बनाने वाले
या देश पर शासन करने वालों के
घर की अस्मिता ही ना बलात्कृत हो
इसलिये
सुनो
सो जाओ एक बार फिर कु्म्भकर्णी नींद में
क्योंकि
नाबालिगता और दो साल की कैद
काफ़ी है तुम्हारे ज़ख्म भरने के लिये
इसलिये जान लो
विशेष परिस्थिति का आकलन और समयानुसार निर्णय लेना हमारे देश का चलन नहीं ………………
25 टिप्पणियां:
सच कहा वंदना.......उससे कहो कि वो जन्म ही न ले....काश के कन्या भ्रूण हत्या जुर्म नहीं होता......
सार्थक अभिव्यक्ति...
सस्नेह
अनु
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुती ..गुढ चिँतन लगभग ऐँसा ही बचपन से सिखाया समझा जाता रहा हैँ लडकियोँ को ...स्त्री को ...बहुत अच्छा
मासुम कली ... उमंगे और तरंगे
बहुत दुःख होता हैँ जब ये शब्द पन्नोँ से बारह प्रत्यक्ष दिखता हैँ
अफसोस इसी बात का है कि नाबालिग नौकरी तो नहीं कर सकता पर कानून की लचरता शर्मनाक काम करने की पूरी छूट नाबालिगों को दे रही है।
सादर
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
हालातों को देखते हुए अब तो यही सच लगने लगा है ....मरने वाला तड़प कर चला गया ...व्यवस्था अपने नफे नुकसान में लगी हैं
बहुत ही मार्मिक रचना,नाबालिगों को ज्यादा छुट देना आगे चलकर ज्यादा अपराध करने के लिए प्रेरित करेगा।
वंदना जी, बेहद मार्मिक प्रस्तुति ...
वंदना जी, बेहद मार्मिक प्रस्तुति ...
नाबालिग अगर बालिगों से क्रूरतम अपराध करेगा तो बालिग होने पर कितना क्रूर होगा , शायद कानून को इसे अभी समझना होगा और विचार करना होगा . एक झंकृत करने वाली कविता ... क्रांति के रूप में , झकझोरती हुयी बधाई
dardnaak... par kiya kya ja sakta hai...
शायद नारि होना अभिशाप है!
समाज पर करारी चोट करती हुई उम्दा प्रस्तुति!
अजब दस्तूर है..
उफ़ ..वाकई कानून अंधा है.
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति...
अफ़सोस... नाबालिग क्रूर कृत्य कर सकता है लेकिन सजा का हकदार नहीं???
gambhir hai ye samasya.....
सार्थक अभिव्यक्ति सुन्दर प्रस्तुति
एक सच को बयान करती दर्द और दर्द ....
sarthak aur sundar prastuti..
ये नाबालिग अभी इतना पापी है बड़ा होकर और न जाने कितने शिकार करेगा इसे तो अभी से ही ठिकाने लगा देना चाहिए..बेहद मार्मिक रचना...
Jab tak kanoon vyavasthayon mein sudhar nahi hota,tab tak koi ummed karna vyarth hai
Jab tak kanoon vyavasthaon mein sudhar nahi hota,tab tak koi bhi ummed karna vyarth hai
बहुत अच्छी कविता....वाकई दुख हुआ उस अपराधी के युं छूट जाने पर
सच को चिन्हित करती सशक्त रचना ।
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