बरसात के बाद भी
थमी नहीं मेरी रूह
बरसती ही रही
हर मीनार पर
हर दीवार पर
हर कब्रगाह पर
हर ऐतबार पर
हर इंतजार पर
जरूरी तो नहीं ना
हर रूह पर छाँव हो जाए
और वो भीगने से बच जाये
मेरी रूह
मेरी कहाँ थी
मेरी होती तो
छुपा लेती आँचल में
समा लेती सारी कायनात उसकी आँखों में
जज़्ब कर लेती हर कतरा शबनम का
अपनी पनाहों में
आसमाँ से चुन लाती कुछ
दाने रौशनी के
टांग देती सितारे बना उसके
बेतरतीब दामन में
सजा देती उसकी
माँग में मोहब्बत का सिन्दूर
लेकर लालिमा दिनकर से
कर देती विदा दुल्हन बना
अजनबियत के साथ
मगर ये सब तो तब होता ना
गर मेरी रूह मेरी होती
वो तो तब ही छोड़ गयी मुझे
जब से तुमसे नज़र मिली
अब खाली खोली है
भीगते अरमानों की
जिसमे बीजता नहीं कोई बीज
फिर चाहे कितनी ही बरसात हो ले
जरूरी तो नहीं सावन का बरसना
यहाँ तो सावन भादों को बरसते एक उम्र गुजर गयी
मगर मेरी रूह को ना कहीं पनाह मिली
देखा है कभी रूहों का ऐसा सिसकना ............जहाँ रूह भी ना अपनी रही
बंद कोटरों के राज बहुत गहरे होते हैं ......सीप में छुपे मोती जैसे
और मोतियों को पाने के लिए गहराई में तो उतरना ही होगा
थमी नहीं मेरी रूह
बरसती ही रही
हर मीनार पर
हर दीवार पर
हर कब्रगाह पर
हर ऐतबार पर
हर इंतजार पर
जरूरी तो नहीं ना
हर रूह पर छाँव हो जाए
और वो भीगने से बच जाये
मेरी रूह
मेरी कहाँ थी
मेरी होती तो
छुपा लेती आँचल में
समा लेती सारी कायनात उसकी आँखों में
जज़्ब कर लेती हर कतरा शबनम का
अपनी पनाहों में
आसमाँ से चुन लाती कुछ
दाने रौशनी के
टांग देती सितारे बना उसके
बेतरतीब दामन में
सजा देती उसकी
माँग में मोहब्बत का सिन्दूर
लेकर लालिमा दिनकर से
कर देती विदा दुल्हन बना
अजनबियत के साथ
मगर ये सब तो तब होता ना
गर मेरी रूह मेरी होती
वो तो तब ही छोड़ गयी मुझे
जब से तुमसे नज़र मिली
अब खाली खोली है
भीगते अरमानों की
जिसमे बीजता नहीं कोई बीज
फिर चाहे कितनी ही बरसात हो ले
जरूरी तो नहीं सावन का बरसना
यहाँ तो सावन भादों को बरसते एक उम्र गुजर गयी
मगर मेरी रूह को ना कहीं पनाह मिली
देखा है कभी रूहों का ऐसा सिसकना ............जहाँ रूह भी ना अपनी रही
बंद कोटरों के राज बहुत गहरे होते हैं ......सीप में छुपे मोती जैसे
और मोतियों को पाने के लिए गहराई में तो उतरना ही होगा
20 टिप्पणियां:
ज्यादा बारिश भी बीजों को पनपने नहीं देती ... बहुत भावप्रवण रचना
wakayee, motiyon ko pana assan nahin.....
बरसता पानी भी ज्यादा बरस जाए तो पनाह नहीं मिल पाती ... रूह के दर्द की इस बरसात को रोकना ही अच्छा होता है ...
गहरे जज्बात ....
रूह बरस रही
मुसलाधार
......... भीग रही हूँ
बेहद उम्दा..!
ati sundar abhivyakti....
गहन भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति..
ati sundar abhivyakti ...
Rooh ka siskna to koyi dekh sakta hai na sun...behad achhee rachana!
बंद कोटरों के राज बहुत गहरे होते हैं ......सीप में छुपे मोती जैसे
और मोतियों को पाने के लिए गहराई में तो उतरना ही होगा
बहुत ही बढ़िया
सादर
सुन्दर अभिव्यक्ति.
धरती भिगो कर बीजों को पनपने का मौका मिले..
khubsurat zajbaat.with emotions and feelings
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 30-08 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....देख रहा था व्यग्र प्रवाह .
आपकी रचना पड़ते समय एक बड़े कवि की एक लाइन याद गई आपको समर्पित [ मैं गोता खोर मुझे गहरे जाना होगा, तुम तट पर भंवर की बांते किया करो ]
गहरे अंतर में उतर कर शब्दों को पिरोती है आप बधाई
मोतियों को पाने के लिए निस्संदेह गहरे पानी में उतरना होता है.किनारे बैठ कर या उथले पानी में खड़े रहकर मोती नहीं मिला करते.
सुन्दर प्रस्तुति!!
गहन भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति..
जरुरी तो नहीं था हर रूह पर छाँव हो और वो भीगने से बच जाए
मेरी वाली भी मेरी नहीं है वंदना जी :((((
अब क्या किया किया जाए कुछ सुझाइए न !
बहुत ही उम्दा कविता |
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