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बुधवार, 29 अगस्त 2012

यहाँ तो सावन भादों को बरसते एक उम्र गुजर गयी

बरसात के बाद भी
थमी नहीं मेरी रूह
बरसती ही रही
हर मीनार पर
हर दीवार पर
हर कब्रगाह पर
हर ऐतबार पर
हर इंतजार पर
जरूरी तो नहीं ना
हर रूह पर छाँव हो जाए
और वो भीगने से बच जाये

मेरी रूह
मेरी कहाँ थी
मेरी होती तो
छुपा लेती आँचल में
समा लेती सारी कायनात उसकी आँखों में
जज़्ब कर लेती हर कतरा शबनम का
अपनी पनाहों में
आसमाँ से चुन लाती कुछ
दाने रौशनी के
टांग देती सितारे बना उसके
बेतरतीब दामन में
सजा देती उसकी
माँग में मोहब्बत का सिन्दूर
लेकर लालिमा दिनकर से
कर देती विदा दुल्हन बना
अजनबियत के साथ
मगर ये सब तो तब होता ना
गर मेरी रूह मेरी होती
वो तो तब ही छोड़ गयी मुझे
जब से तुमसे नज़र मिली
अब खाली खोली है
भीगते अरमानों की
जिसमे बीजता नहीं कोई बीज
फिर चाहे कितनी ही बरसात हो ले
जरूरी तो नहीं सावन का बरसना
यहाँ तो सावन भादों को बरसते एक उम्र गुजर गयी
मगर मेरी रूह को ना कहीं पनाह मिली

देखा है कभी रूहों का ऐसा सिसकना ............जहाँ रूह भी ना अपनी रही
बंद कोटरों के राज बहुत गहरे होते हैं ......सीप में छुपे मोती जैसे
और मोतियों को पाने के लिए गहराई में तो उतरना ही होगा

20 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ज्यादा बारिश भी बीजों को पनपने नहीं देती ... बहुत भावप्रवण रचना

mridula pradhan ने कहा…

wakayee, motiyon ko pana assan nahin.....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बरसता पानी भी ज्यादा बरस जाए तो पनाह नहीं मिल पाती ... रूह के दर्द की इस बरसात को रोकना ही अच्छा होता है ...
गहरे जज्बात ....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

रूह बरस रही
मुसलाधार
......... भीग रही हूँ

RITU BANSAL ने कहा…

बेहद उम्दा..!

s.tiwari ने कहा…

ati sundar abhivyakti....

Maheshwari kaneri ने कहा…

गहन भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति..

s.tiwari ने कहा…

ati sundar abhivyakti ...

kshama ने कहा…

Rooh ka siskna to koyi dekh sakta hai na sun...behad achhee rachana!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बंद कोटरों के राज बहुत गहरे होते हैं ......सीप में छुपे मोती जैसे
और मोतियों को पाने के लिए गहराई में तो उतरना ही होगा

बहुत ही बढ़िया

सादर

Unknown ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

धरती भिगो कर बीजों को पनपने का मौका मिले..

Ramakant Singh ने कहा…

khubsurat zajbaat.with emotions and feelings

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 30-08 -2012 को यहाँ भी है

.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....देख रहा था व्यग्र प्रवाह .

Ramakant Singh ने कहा…

आपकी रचना पड़ते समय एक बड़े कवि की एक लाइन याद गई आपको समर्पित [ मैं गोता खोर मुझे गहरे जाना होगा, तुम तट पर भंवर की बांते किया करो ]

Unknown ने कहा…

गहरे अंतर में उतर कर शब्दों को पिरोती है आप बधाई

Nidhi ने कहा…

मोतियों को पाने के लिए निस्संदेह गहरे पानी में उतरना होता है.किनारे बैठ कर या उथले पानी में खड़े रहकर मोती नहीं मिला करते.
सुन्दर प्रस्तुति!!

Amrita Tanmay ने कहा…

गहन भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति..

आनंद ने कहा…

जरुरी तो नहीं था हर रूह पर छाँव हो और वो भीगने से बच जाए

मेरी वाली भी मेरी नहीं है वंदना जी :((((

अब क्या किया किया जाए कुछ सुझाइए न !

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही उम्दा कविता |