दान करने के नाम पर
रहन रखने की
ये अजब रस्म देखी
बेटी ना हुई
कोई जमीन हुई
जिस पर जो चाहे
जैसे चाहे हल चलाये
या मकान बनाए
या कूड़े का ढेर लगाये
मगर वो सिर्फ
बेटी होने की कीमत चुकाए
उफ़ भी ना कर सके
दहलीज भी पार कर ना सके
ना इस दर को
ना उस दर को
अपना कह सके
जब दुत्कारी जाये
जब जीवन उसका
नरक बन जाये
जब साथ रहना दूभर हो जाये
कहो तो .........ओ ठेकेदारों
किस दर पर जाए
कहाँ जाकर गुहार लगाये?
अब बदलना होगा
ऐसी रस्मों को
समझना होगा
बेटी कोई वस्तु नहीं
जो दान दे दी जाये
बेटियां तो जान होती हैं
दो घरों की आन होती हैं
फिर कैसे कर देते हो
कन्यादान के नाम पर दान
क्या कभी नहीं
तुम्हारे अंतस ने
ये सवाल उठाया ?
क्या कभी नहीं
तुम्हारा जमीर जागा?
जिसे इतने नाजों से पाला पोसा
और एक ही पल में
उसे सारे हकों से
महरूम कर दिया
ब्याह के बाद
ना वो घर अपना बना
और ना मायका अपना रहा
दोनों ही घरों से
उसका हक़ तोड़ दिया
कन्यादान प्रथा ने
समाज को अभिशापित किया
कन्या का जीवन दूभर किया
सब जानते हैं
अब उस घर से इसके
सभी हक़ ख़त्म हुए
और मायके वाले भी
बाद में बोझ समझते हैं
फिर अत्याचारों का सिलसिला
कहर ढाता है
कभी दहेज़ के नाम पर
तो कभी लड़की जन्मने के नाम पर
उसी का शोषण किया जाता है
कभी ज़िन्दा जलाया जाता है
तो कभी बच्चा जनते जनते ही
उसका दम निकल जाता है
बेटी को हर अधिकार से वंचित कर दिया
दान दी जाने वाली चीज से
कोई हक़ ना रखना
इस प्रथा ने ही ऐसी
कुरीतियाँ फैलाई हैं
ज़रा सोचो
अगर ऐसा तुम्हारे साथ होने लगे
पुरुष का दान होने लगे
और किसी भी घर में
उसका कोई स्थान ना हो
कहीं कोई मान ना हो
अपनी कोई पहचान ना हो
कैसे तुम जी पाओगे?
ओ समाज के ठेकेदारों
जागो .........समझो
मत लकीर के फकीर बनो
जो रस्मे जज्बातों से खेलती हों
जिनसे कोई सही शिक्षा ना मिलती हो
जो विकास में बाधक बनती हों
उन रस्मों को , उन परिपाटियों को
बदलना बेहतर होगा
एक नए समाज का
निर्माण करना होगा
कन्यादान की रस्म को
बदलना होगा
लिंग भेद ना करना होगा
बल्कि कन्या को भी
सम स्तर का समझना होगा
कन्यादान को अभिशाप ना बनने देना होगा
दोस्तों ओ बी ओ पर महा लाइव उत्सव के अंतर्गत ये टोपिक दिया गया मगर पता नहीं ये रचना पहले ही लिख ली गयी थी तो आज वहां लगा दी ........शायद कुछ कामों की बुनियाद पहले ही पड़ चुकी होती है बस हमें पता बाद में चलता है .........तो सोचा आप सबको भी ये पढवानी बनती है
35 टिप्पणियां:
बेहद सशक्त अभिव्यक्ति वंदना जी..
बधाई आपको, इस कविता को जन्म देने के लिए..
कन्यादान को अभिशाप न बनने देना होगा ...सार्थक अभिव्यक्ति ।
दान के साथ गहरे अर्थ जुड़े हैं...
दान हमेशा सुपात्र को दिया जाता है... और जहां दान करने वाले और दान लेने वाले दोनों सुपात्र हों वहाँ दान की हुई कन्या की मानहानि कभी नहीं होती...!
यहाँ रीतियों में आई विकृतियों को बदलने के लिए हमें सदाचारी होना होगा... समाज को इन रीतियों का मान रखने की पात्रता हासिल करनी होगी!
"कन्यादान को अभिशाप ना बनने देना होगा"
इस सुन्दर आह्वान के साथ कविता का समापन करने हेतु हार्दिक बधाई!
अनुपमा जी कहने का सिर्फ़ इतना आशय है कि इंसान को दान की वस्तु मत बनाओ यानि कन्या को …………क्या वो एक वस्तु है? क्यों धर्म के नाम पर उसका दोहन हो ? क्यों नही इन कुरीतियों के प्रति आवाज़ उठायी जाये? सिर्फ़ सदाचारी होने से सब कुछ नही हो सकता उसके साथ साथ बदलाव लाने की भी हिम्मत करनी पडेगी और कन्यादान की वस्तु नही ये सबको समझना होगा ।
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...क्यों हमारी प्रथाएं हमारे अपने खून को एक परायी 'वस्तु' बना देती हैं ? हमें हमारी सोच में बदलाव लाना होगा.
कन्या कोई वस्तू नही है जब उसको वस्तु माना जाता है तो वह िस्तेमाल करके फेकने की चीज़ बन जाती है । समाज़ बदल रहा है, पुरुष भी बदल रहे हैं पर बहुत धीरे धीरे ।
सत्य कहा...
हमने भी कविता की प्रसंशा ही की... व्यक्त भावों का मान ही किया...
बस अज्ञानतावश प्रतिक्रिया उपयुक्त न हो पायी, क्षमा करेंगी!
very well written:)
बेहद सुन्दर बात कही आपने...
'कुछ कामों की बुनियाद पहले ही पड़ चुकी होती है बस हमें पता बाद में चलता है...' what a lovely co-incidence:)
संबंधों की गहराई को शब्दों के अर्थ मात्र से जोड़ने से अच्छा होगा कि कुरीतियों का सामना मिलकर करें, कन्यादान पर यदि दुख बढ़ता है तो गृहलक्ष्मी पर गर्व भी हो।
बेटी होने का दर्द , विरोध की अग्नि बन शब्दों में प्रवाहित हो रहा है
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-784:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
Khud mujhe 'kanyadaan;kee vidhise achraj hota hai! Bahut sundar rachana!
bahut shandar rachna.
आपने एक प्रश्न उठाया है ..निश्चय ही कन्या कोई वस्तु नहीं है .
kalamdaan.blogspot.in
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी,लाजबाब सशक्त प्रस्तुति ...
MY NEW POST...मेरे छोटे से आँगन में...
ओह बहुत कुछ है जो बदल हीं नहीं रहा.......
sorry...pl remove 2nd comm
सुन्दरता से एक सशक्त विषय पर लिखी पोस्ट ।
ये सवाल सभी बेटियों के मन में आते हैं...आपने उन्हें शब्द दे दिया|
बहुत सशक्त प्रस्तुतिकरण|
चिंतन करने योग्य प्रश्न उठाया है
प्रश्न उकेरती रचना ...
बहुत सुन्दर
कन्याये कोई वस्तु नहीं है जिसे दान में दिया जाये ,
फिर इसे कन्यादान नाम क्यों दिया गया ?
एक कन्या के मनः स्थिति को बहुत ही अनुपम शब्द रचना
से व्यक्त किया है ...
इतनी गहराई है इस रचना में ,,
बहुत ही सुन्दर ,बेमिसाल रचना है ..
prabhavshali rachna
सशक्त रचना ..सोचने पर मजबूर कराती हुई
betiyon ki suraksha aur bachane ke abhiyan me mere blog unnati ki or hamari betiyan me aapka swagat hai.
Bahut gehri sacchayi hai isme, jo aksar log samajhtey nahi ya samajhna nahi chaahtey
very nice
Bahut gehri sacchayi hai isme, jo aksar log samajhtey nahi ya samajhna hi nahi chaahtey :(
विचारणीय सशक्त अभिव्यक्ति..
अब बदलना होगा ऐसी रस्मो को..।
आह...बेटियों के लिए आपका दर्द कितना भावपूर्ण है...चिंतन योग्य ज्वलंत विषय
प्रिया
कुछ परम्पराएं आक्रोशित करती हैं।
बेटियों के हक के लिए जूझना जरूरी है।
अच्छी कविता।
सार्थक प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रिक हैं । धन्यवाद ।
अनुपमा पाठक जी और आपके बीच का उपरोक्त संवाद अच्छा लगा.
सोचने को बाध्य करती है आपकी यह अनुपम प्रस्तुति.
सुंदर प्रस्तुति.....
Things are not changing and we are sticking to tradition,customs,rituals,region,caste and so on We are bound from all sides and do not live a fuller life.We have lost love for life, flair for life.If you don't use your foot for a long time you lose walking power.You keep shut your eyes for two years and you lose your sight.The same way we have been following others and are not living as per our instinct and therefore we have lost flair for life.There is no motion and when energy is not in motion it perishes.So break the limits and we call it Break The Rule
yeh great things are same since ages
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