भटक रहा है ऋतुराज
मेरे घर के बाहर
अन्दर आने को उत्सुक
मगर आने के हर दरवाज़े पर
मैंने सांकल चढ़ा दी है अब
ऋतुराज भी वक्त के साथ आये
तभी अच्छा लगता है
बेवक्त का आना कब किसे सुहाता है
और देखो तो
अब उमंगों से सब नाते टूट चुके हैं
लाल रोशनाई से अब नहीं लिखती कोई ख़त
नहीं उगती क्यारियों में कोई मौसमी सब्जी
अब नहीं दिखता आईने में अक्स
जिसे देख आईना भी लजा जाता था
अब नहीं पड़ती सुबह की पहली किरण
किसी दरो- दीवार को रोशन करती हुई
नहीं होती कोई कविता अब अलंकृत
श्रृंगार रस के मधुर सरस बोलों से
और बसंत रोज दस्तक दे रहा है
कुण्डी खडखडा रहा है
मगर क्या करूँ
थाप सिर्फ सुनाई देती है
मगर निशाँ नहीं छोडती
जिस पर चलकर दरवाज़ा खोल सकूँ
कैसे खुले दरवाज़ा
जिसकी चाबियाँ तो
रूहों के तिलस्मों में ज़मींदोज़ हो चुकी हैं
चाबियों की खेती नहीं होती ना
कोई फसल नहीं होती
अब कौन से बीजों को रोपूं
जो नव पल्लव खिल जायें
नए बीज होते तो शायद
अंकुरित हो भी जाते
मगर अब कैसे भस्मीभूत बीजों में फिर से अंकुरण हो
25 टिप्पणियां:
बहुत बहुत सुन्दर वंदना जी...
सच है चाभियों की खेती नहीं होती..और सुख बड़े तालों में बंद होता है..
बहुत अच्छी रचना..
शुभकामनाये.
बहुत बढ़िया भाव लिए रचना,सुंदर प्रस्तुति..
NEW POST..फुहार..कितने हसीन है आप...
Kya likhtee ho.....mujhe to nishabd kar detee ho!
बसंत ने तो आना ही है...सुन्दर अभिव्यक्ति...
Very Niceeeeee Post our team Like this
Thanks
Team Loan NCR
कहीं न कहीं मन की पीड़ा को दर्शा रही है यह रचना .. अच्छी प्रस्तुति
बसंत दस्तक दे रहा है तो जरुर आएगा.बीजों में फिर से अंकुरण होगा...
सुन्दर भाव...
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
ऋतुराज को आने दें
छाई निराशा जाने दें...
सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत प्रशंसनीय.......
fir basant aayi....
talon ko tod de....
aur andar aane den bahar ko...!
jeevan mein bhi bina mausan ki
sabzi aur fal-fool ugaaye....
man ki bagiya ko hara-bhara rakhen....!
waah...bahut baut sundar rachna...kamaal ka shabd sanyojan kiya hai aapne..
बीज अवश्य अंकुरित होंगे...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
बसंत भी कभी कभी पीड़ा दे जाता है ।
भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
भटक रहा है ऋतुराज
मेरे घर के बाहर... dekh rahi hun , kabhi vallari ban jhank raha hai , kabhi khushboo ban rijha raha hai... bina izaazat aane kee aadat jo rahi , achha kiya saankal chadha di
सुन्दर कविता... बहुत बढ़िया...
बहुत सुंदर कविता. भस्मीभूत बीजों में अंकुरण का प्रयास एक नयी सोच को स्थापित करने का प्रयत्न है.
बधाई वंदना जी इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिये.
सचमुच ऋतुराज भटक रहे हैं और बेमौसमी सब्जियां खाकर गायों को लगाने वाले इंजेक्शन की सब्जियां खा कर हम खुश हैं...
'spring is at the door and door is closed.' what a wonderful creation!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जिंदगी के समानांतर चलती एक और अच्छी कविता।
spring is at the door and door is closed what a wonder creation a like it
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