सुनो
कहो
..............
अरे कहो ना
अब खामोश क्यूँ हो?
जानते हो
कब से
शायद अनंत जन्म से
हम प्रतीक्षारत थे
और हर क्षण
एक दूजे की चाह
एक दूजे का साथ
एक दूजे में समाहित
हमारे वजूद थे
वजूद जानते हो ना कौन से?
हाँ जानता हूँ...........
रूहानी वजूद
जो मिटकर भी नहीं मिटते
जो दूर होकर भी
पास होते हैं
एक दूजे के साथ होते हैं
देखो ना
कहीं आज अमावस तो नहीं
पूनम तो कभी
हमारी ज़िन्दगी में आयी ही नहीं
कभी चाँदनी में
रूह मुस्कायी ही नहीं
कोई कली किसी गुलशन में
खिलखिलाई ही नहीं
हाँ सही कहते हो
शायद आज
चाँद भी शर्मिंदा है
दो चाहने वालों के प्रेम का
साक्षी जो ना बन पाया
शायद मालूम हो गया है उसे
अब चाँदनी की हसरत
रूहों पर नहीं उतरती
किसी सूईं में पिरो कर
कोई नहीं लगाता टांका
चाँदनी के तागों का
महबूबा के केशों में
देखो ना .............
शायद आज कोई
गवाह बनना नहीं चाहता
हमारे मिलन का
देखो तो .............
तभी सबने मुँह छुपाया है
जैसे प्रलय का कोई
चिन्ह नज़र आया है
जैसे सिर्फ एक
कँवल ही मुस्काया है
जिस पर हमारी प्रीत
का कोई मोती उभर आया है
अकेला बह रहा है
इस अथाह सागर में
आज शरीर होते
तो क्या हम होते?
नहीं ना...............
बस ये प्रेम ही है
जिसने प्रवाहमान बनाया है
शायद खुदाई नूर का
कोई करिश्मा नज़र आया है
तभी कहीं कोई विनाश का
चिन्ह ना नजर आया है
सिर्फ और सिर्फ
वो बहता हुआ
शांत सौम्य स्थिर अटल
एक ध्रुव तारा ही नज़र आया है
आओ चलें
आज प्रेम को
पूर्णविराम दे दें
युगों की प्यास को अभिशप्त होने से पहले
कहो
..............
अरे कहो ना
अब खामोश क्यूँ हो?
जानते हो
कब से
शायद अनंत जन्म से
हम प्रतीक्षारत थे
और हर क्षण
एक दूजे की चाह
एक दूजे का साथ
एक दूजे में समाहित
हमारे वजूद थे
वजूद जानते हो ना कौन से?
हाँ जानता हूँ...........
रूहानी वजूद
जो मिटकर भी नहीं मिटते
जो दूर होकर भी
पास होते हैं
एक दूजे के साथ होते हैं
देखो ना
कहीं आज अमावस तो नहीं
पूनम तो कभी
हमारी ज़िन्दगी में आयी ही नहीं
कभी चाँदनी में
रूह मुस्कायी ही नहीं
कोई कली किसी गुलशन में
खिलखिलाई ही नहीं
हाँ सही कहते हो
शायद आज
चाँद भी शर्मिंदा है
दो चाहने वालों के प्रेम का
साक्षी जो ना बन पाया
शायद मालूम हो गया है उसे
अब चाँदनी की हसरत
रूहों पर नहीं उतरती
किसी सूईं में पिरो कर
कोई नहीं लगाता टांका
चाँदनी के तागों का
महबूबा के केशों में
देखो ना .............
शायद आज कोई
गवाह बनना नहीं चाहता
हमारे मिलन का
देखो तो .............
तभी सबने मुँह छुपाया है
जैसे प्रलय का कोई
चिन्ह नज़र आया है
जैसे सिर्फ एक
कँवल ही मुस्काया है
जिस पर हमारी प्रीत
का कोई मोती उभर आया है
अकेला बह रहा है
इस अथाह सागर में
आज शरीर होते
तो क्या हम होते?
नहीं ना...............
बस ये प्रेम ही है
जिसने प्रवाहमान बनाया है
शायद खुदाई नूर का
कोई करिश्मा नज़र आया है
तभी कहीं कोई विनाश का
चिन्ह ना नजर आया है
सिर्फ और सिर्फ
वो बहता हुआ
शांत सौम्य स्थिर अटल
एक ध्रुव तारा ही नज़र आया है
आओ चलें
आज प्रेम को
पूर्णविराम दे दें
युगों की प्यास को अभिशप्त होने से पहले
44 टिप्पणियां:
आदरणीय वन्दना जी
नमस्कार !
बेहतरीन शब्दों से उकेरी गयी अंतर भावनाए बेमिसाल है संवेदनशील
मन के द्वन्द को बहुत सुन्दर शब्दों में संजोया है ! बेहतरीन रचना...
युगों -युगों से चाहते, इक दूजे का संग |
नारीश्वर की वंदना, चढ़े न दूजा रंग ||
आज प्रेम को,
पूर्णविराम दे दें ...
बहुत खूब ... बेहतरीन शब्दों का संगम ।
bhut hi gudh abhivyakti....bhut hi sunder...laazwab:)
प्यास शमित हो।
बहुत सुन्दर भाव हैं.
बहुत सुन्दर रचना!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 08 -09 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज ... फ़ोकट का चन्दन , घिस मेरे नंदन
Vandana....kya gazab kaa likhtee ho!Padhte hee rahne ka man karta hai!
chaht ko yun aayam dena... ek naam dena... waah...
kitnee khoobsoorat hai ye rachna... gahanta bhi hai, dwand bhee hai... ujwal bhi hai, prem bhee hai, prasang bhee hai...
mashallah...
बहुत ही भावपूर्ण, शुभकामनाएं.
रामराम.
बेहतरीन शब्दों का संगम ....बहुत खूब ...
आज प्रेम को पूर्ण विराम देदें ...........क्या बात बहुत सुंदर ....
चाँद भी शर्मिंदा है
दो चाहने वालों के प्रेम का
साक्षी जो ना बन पाया
जज्बात किस तरह बहार आये हैं ..और शब्दों का प्रयोग बेमिसाल है .....!
सुन्दर कविता...बहुत डूब कर लिखती हैं आप..
गहन शब्दों में व्यक्त गहरे प्रेम की अभिव्यक्ति । सुंदर ।
बस यह प्रेम ही है जिसने प्रवाहमय बनाया है...बहुत सुन्दर बात !!
प्रेम मय संवाद .. युगों की प्यास .. दूरी मिटने का एहसास .. मनवांछित आस ... बहुत अच्छी प्रस्तुति
"कभी चाँदनी में
रूह मुस्कायी ही नहीं"
प्रेम को पूर्णविराम दे दें ... पर कहने से क्या ऐसा होता है ... भावनाओं को सागर समेटा है ..
आज शरीर होते
तो क्या हम होते?
नहीं ना...............
बस ये प्रेम ही है
जिसने प्रवाहमान बनाया है...
वाह वंदना जी कितनी गहराई है इन शब्दों में, अजर अमर प्रेम ध्रुव तारे सा...
सुन्दर अभिव्यक्ति..
वंदना जी नमस्ते बहुत ही सुन्दर कविता बधाई और शुभकामनाएं
Aaj sharir hota to kya hm hote good
acha lga.
bahut sundar vandana ji.
वाह वाह..
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
सादर...
वाह...वाह...वाह....
और क्या कहा जाय...
कमाल कमाल कमाल...
प्रेम की गहनता में सिर्फ खुदा का नूर और रूहानी चैन ही नजर आता है ...
सुन्दर!
बहुत भावपूर्ण रचना है,वाह.
wah....kya baat hai.
ati sundar rachna Vandana jee
bahut sundar rachna Vandana jee
Bahut sundar rachna !!
bahut achchi rachna.sorry der se padhi.teen din se network nahi tha.
गहरे भाव ,
बहुत खुबसूरत कविता ||
दिल से बधाई ||
hamesha ki tarah jaandaar..
लाजवाब बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई ||
सटीक बात...सुंदर विचार...बहुत ही गहरे भाव !
गजब की कविता ..और हार कर दुःख भरी कामना "युगों की प्यास को अभिशप्त होने से पहले"... सुन्दर तरीके से भावनाओ को उकेरा है .
आपका अंदाजे बयां सचमुच मन को छू जाने वाला है।
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क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
प्रेम के एक विशिष्ट पहलू को दर्शाती एक अच्छी कविता।
गहरे प्रेम की अभिव्यक्ति बेमिसाल और संवेदनशील.
आज प्रेम को, पूर्णविराम दे दें...... ek sampurna sahamti ka aabhas man ke sath mastishk ka .....bahut sundtra se prstuti vandna ji....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।
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