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बुधवार, 28 सितंबर 2011

तेरे बिना जिया लागे ना


सुनो 
देखो ना
इक युग बीता
मगर देखो तो
मेरी आस का टोकरा
कभी रीता ही नही
सबने मुझे बावरी बना दिया
तेरे विरह में ये नाम दे दिया
मगर तुम बिन मेरा ना
कोई पल रहा अछूता
फिर भला कैसे कहूं 
तेरे बिना जिया लागे ना
तुम तो सदा
मेरी आँख की ओट में

करवट लेते रहे
कभी नींद में तो कभी ख्वाब में
मिलते जुलते रहे
सुना है
दुनिया कहती है
तुम यहाँ कहीं नहीं हो अब
अब नहीं आओगे वापस
जाने वाले फिर नहीं आते
मगर ये तो बताओ
तुम गए कहाँ से हो
क्या मेरी यादों से
क्या मेरे नयनों से
क्या मेरे दिल से
हर पल तो तुम्हें
निहारा करती हूँ
हर पल तुम्हारा वजूद
मेरे ख्वाबों से
अठखेलियाँ करता है
कभी रूठा करते हो
कभी मनाया करते हो
कभी मेरी माँग
अपनी प्रीत से सजाया करते हो
कभी चाँदनी रात में
मेरी वेणी में फूल लगाया करते हो
कभी किसी झील के किनारे
ठहरे हुए पानी में
चाँद की सैर पर ले जाया करते हो
कभी तारावली के फूलों से
धरती सजाया करते हो
और मुझे वहाँ किसी
ख्वाब सा सजाया करते हो
तो बताओ ना
कौन है दीवाना
ये दुनिया या मैं
बताओ तो
जब हर पल
हर सांस में
हर धड़कन में
मेरी रूह में
तुम ही तुम समाये हो
फिर कैसे कह दूं
तेरे बिना जिया लागे ना

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