मैं , मैं रही
तुम , तुम रहे
कभी 'मैं ' को
'हम' बनाया होता
तो जीवन भी
मुस्कुराया होता
कभी जिस्म के
पार गए होते
कभी रूह को अपना
बनाया होता
कभी प्रेम का वो दीप
जलाया होता
जहाँ तुम , तुम न होते
जहाँ मैं , मैं न होती
कभी संवेदनाओं की जाली में
समय के झरोखों से
कुछ अप्रतिम प्रेम की
बरखा बरसाई होती
तन नही , मन को
भिगोया होता
कुछ देर वहां रुका होता
तो वक्त वहीँ ठहर गया होता
हमारे मिलन के लिए
ठिठक गया होता
प्रेम को प्रेम में
डूबते देखा होता
अंतर्मन की दरारों से
कभी प्रेमरस छलकाया होता
मधुर ह्रदय के तारों से
कभी प्रेम धुन गायी होती
सूनी अटरिया कभी तो
सजाई होती
तो जीवन की विष बेल
सुधा सागर में नहायी होती
फिर वहां
न 'तू' होता
न ' मैं होती
सिर्फ़ प्रेम की ही
बयार होती
और ' तू ' और ' मैं '
अलग अस्तित्व न होकर
प्रेमास्पद बन गए होते
17 टिप्पणियां:
जी हाँ सच हैं -जहाँ तू और मैं का बोध नहीं वहीं तो निर्बाध सहज प्रेम है !
behtareen sahbadon ke saath bahut hi behtaren kavita.......
तुम , तुम रहे
कभी 'मैं ' को
'हम' बनाया होता
तो जीवन भी
मुस्कुराया होता
कभी जिस्म के
पार गए होते
कभी रूह को अपना
बनाया होता
कभी प्रेम का वो दीप
जलाया होता
जहाँ तुम , तुम न होते
जहाँ मैं , मैं न होती
yeh panktiyan bahut khoobsoorat lagin aur dil ko choo gayin.....
Regards....
वाह वन्दना जी बहुत सुन्दर सही कहा जब *हम *सेहो जाते हैं मै और तू तब रह जाते हैं बहुत से सुन्दर पल जीने के बहुत सुन्दर रचना है बधाई
इसी थीम की रचना तो
शायद में आपके ब्लॉग पर पहले भी पढ़ चुका हूँ!
न 'तू' होता
न ' मैं होती
सिर्फ़ प्रेम की ही
बयार होती
और ' तू ' और ' मैं '
अलग अस्तित्व न होकर
प्रेमास्पद बन गए होते
तू-तू, मैं-मैं को लेकर
इस उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई!
रचना जीवन की अभिव्यक्ति है।
एक रसीले असली फलों वाले शरबत की तरह मिठास से भरी है ये कविता... सीख देती हुई सी.. पर कोई सीखे तो हर दाम्पत्य जीवन सरल और सुखी हो जाये...
जय हिंद...
vandana ji, kya kahun kabhi kabhi aapki kavita bahut bheetar tak kachot deti hai..........bahut khoob.
कभी 'मैं ' को 'हम' बनाया होता... main ko hum bana liya hota to itni sundar kavita kahan padhne ko milti... waise agar saare main agar hum ban jaye to jeevan sach mein muskurayega...
bahut khoobsurat
... बेहद प्रसंशनीय रचना !!!
तू तू न रहे ,मै मै न रहूं , इक दुनियां मे खो जायें ।मै को हम बनाना और रूह को अपना बनाना । विष बेल का सुधा सागर मे नहाना ।भाव प्रधान सुन्दर रचना
प्रेम की अति सुंदर अभिव्यक्ति. ह्रदयस्पर्शी रचना. बधाई.
बहुत ही सुंदर शब्दों का प्रयोग करके आपने उम्दा रचना लिखा है जो काबिले तारीफ है ! बहुत खूब!
सिर्फ़ प्रेम की ही
बयार होती
और ' तू ' और ' मैं '
अलग अस्तित्व न होकर
प्रेमास्पद बन गए होते
" प्रीत की ऐसी ही तस्वीर अब कहाँ बन पातीं हैं "
न तू होता
न मैं होती
सिर्फ प्रेम की ही बहार होती
--खूबसूरत एहसास जगाती कविता।
कभी कभी आपने आपने मैं इतने ऊंचे हो जाते हैं ...... की कुछ दिखाई नहीं देता ......... बहुत लाजवाब रचना है ..............
कभी जिस्म के
पार गए होते
कभी रूह को अपना
बनाया होता
कभी प्रेम का वो दीप
जलाया होता
जहाँ तुम , तुम न होते
जहाँ मैं , मैं न होती
मैं और तुम की जंग अच्छी लगी कई बार तो हम तक पहुंचते पहुंचते बहुत समय लग जाता है. बधाई
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