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शनिवार, 21 नवंबर 2009

' तू ' और ' मैं '

मैं , मैं रही
तुम , तुम रहे
कभी 'मैं ' को
'हम' बनाया होता
तो जीवन भी
मुस्कुराया होता
कभी जिस्म के
पार गए होते
कभी रूह को अपना
बनाया होता
कभी प्रेम का वो दीप
जलाया होता
जहाँ तुम , तुम न होते
जहाँ मैं , मैं न होती
कभी संवेदनाओं की जाली में
समय के झरोखों से
कुछ अप्रतिम प्रेम की
बरखा बरसाई होती
तन नही , मन को
भिगोया होता
कुछ देर वहां रुका होता
तो वक्त वहीँ ठहर गया होता
हमारे मिलन के लिए
ठिठक गया होता
प्रेम को प्रेम में
डूबते देखा होता
अंतर्मन की दरारों से
कभी प्रेमरस छलकाया होता
मधुर ह्रदय के तारों से
कभी प्रेम धुन गायी होती
सूनी अटरिया कभी तो
सजाई होती
तो जीवन की विष बेल
सुधा सागर में नहायी होती
फिर वहां
न 'तू' होता
न ' मैं होती
सिर्फ़ प्रेम की ही
बयार होती
और ' तू ' और ' मैं '
अलग अस्तित्व न होकर
प्रेमास्पद बन गए होते

17 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

जी हाँ सच हैं -जहाँ तू और मैं का बोध नहीं वहीं तो निर्बाध सहज प्रेम है !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

behtareen sahbadon ke saath bahut hi behtaren kavita.......

तुम , तुम रहे
कभी 'मैं ' को
'हम' बनाया होता
तो जीवन भी
मुस्कुराया होता
कभी जिस्म के
पार गए होते
कभी रूह को अपना
बनाया होता
कभी प्रेम का वो दीप
जलाया होता
जहाँ तुम , तुम न होते
जहाँ मैं , मैं न होती

yeh panktiyan bahut khoobsoorat lagin aur dil ko choo gayin.....

Regards....

निर्मला कपिला ने कहा…

वाह वन्दना जी बहुत सुन्दर सही कहा जब *हम *सेहो जाते हैं मै और तू तब रह जाते हैं बहुत से सुन्दर पल जीने के बहुत सुन्दर रचना है बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

इसी थीम की रचना तो
शायद में आपके ब्लॉग पर पहले भी पढ़ चुका हूँ!

न 'तू' होता
न ' मैं होती
सिर्फ़ प्रेम की ही
बयार होती
और ' तू ' और ' मैं '
अलग अस्तित्व न होकर
प्रेमास्पद बन गए होते

तू-तू, मैं-मैं को लेकर
इस उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई!

मनोज कुमार ने कहा…

रचना जीवन की अभिव्यक्ति है।

दीपक 'मशाल' ने कहा…

एक रसीले असली फलों वाले शरबत की तरह मिठास से भरी है ये कविता... सीख देती हुई सी.. पर कोई सीखे तो हर दाम्पत्य जीवन सरल और सुखी हो जाये...
जय हिंद...

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

vandana ji, kya kahun kabhi kabhi aapki kavita bahut bheetar tak kachot deti hai..........bahut khoob.

Crazy Codes ने कहा…

कभी 'मैं ' को 'हम' बनाया होता... main ko hum bana liya hota to itni sundar kavita kahan padhne ko milti... waise agar saare main agar hum ban jaye to jeevan sach mein muskurayega...

Razi Shahab ने कहा…

bahut khoobsurat

कडुवासच ने कहा…

... बेहद प्रसंशनीय रचना !!!

BrijmohanShrivastava ने कहा…

तू तू न रहे ,मै मै न रहूं , इक दुनियां मे खो जायें ।मै को हम बनाना और रूह को अपना बनाना । विष बेल का सुधा सागर मे नहाना ।भाव प्रधान सुन्दर रचना

राकेश कौशिक ने कहा…

प्रेम की अति सुंदर अभिव्यक्ति. ह्रदयस्पर्शी रचना. बधाई.

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुंदर शब्दों का प्रयोग करके आपने उम्दा रचना लिखा है जो काबिले तारीफ है ! बहुत खूब!

गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' ने कहा…

सिर्फ़ प्रेम की ही
बयार होती
और ' तू ' और ' मैं '
अलग अस्तित्व न होकर
प्रेमास्पद बन गए होते
" प्रीत की ऐसी ही तस्वीर अब कहाँ बन पातीं हैं "

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

न तू होता
न मैं होती
सिर्फ प्रेम की ही बहार होती
--खूबसूरत एहसास जगाती कविता।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कभी कभी आपने आपने मैं इतने ऊंचे हो जाते हैं ...... की कुछ दिखाई नहीं देता ......... बहुत लाजवाब रचना है ..............

रचना दीक्षित ने कहा…

कभी जिस्म के
पार गए होते
कभी रूह को अपना
बनाया होता
कभी प्रेम का वो दीप
जलाया होता
जहाँ तुम , तुम न होते
जहाँ मैं , मैं न होती
मैं और तुम की जंग अच्छी लगी कई बार तो हम तक पहुंचते पहुंचते बहुत समय लग जाता है. बधाई