कुछ मौन मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं
और कभी शब्दों को भी जुबान नही मिलती
कभी मेरे मन को सहलाया होता
तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता
नासूरों पर कभी अश्क टपकाया होता
तो अश्क को भी जलता पाया होता
मोहब्बत के ज़ख्मों की इम्तिहाँ तो देख
हर ज़ख्म में अपना ही चेहरा पाया होता
कभी किसी रोयें को छुआ होता
तो हर रोयें पर लिखा अपना ही नाम पाया होता
26 टिप्पणियां:
कभी मेरे मन को सहलाया होता
तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता
OMG! in panktiyon ke liye kya kahun.... utar gayin hain dil ke andar tak....
bahut hi achchi kavita....
==================================
aapke sunder comment ka bahut bahut dhanyawaaad...
Bahut Dard hai,kahan chhupaya hai.
thoda-2 bantti hain...superb!
Bahut Dard hai,kahan chhupaya hai.
thoda-2 bantti hain...superb!
नासूरों पर कभी अश्क टपकाया होता
तो अश्क को भी जलता पाया होता
खूबसूरत भाव की पंक्तियाँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
कुछ मौन मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं
और कभी शब्दों को भी जुबान नही मिलती
silence is the best speaker
listen the sound by heart.
जी हाँ! बहुत खूब
कुछ मौन मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं
और कभी शब्दों को भी जुबान नही मिलती
कभी मेरे मन को सहलाया होता
तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता
वंदना कमाल की कविता है । ये दो तो बहुत ही बडिया हैं बधाई इतनी सुन्दर रचना के लिये
रचना मर्मस्पर्शी है
कभी किसी रोयें को छुआ होता
तो हर रोयें पर लिखा अपना ही नाम पाया होता
bahut bahut gajab,,,
badhai
kabhi kisi royen ko chhua hota...............apna hi naam paya hota. .........wah. rom rom men tu hi tu. behatareen. vandanaji, badhaai.
... bahut sundar !!!!
कुछ मौन -मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं .....बहुत ही सुन्दर....अल्फाज़ सीधे दिल को छूते हैं
Harek pankti dohraun..kya karun?
"कभी मेरे मन को सहलाया होता
तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता"
बेहद खूबसूरत और मुलायम पंक्तियाँ । आभार ।
हम तो समझे थे भर देगा वक्त का मरहम इन सबको
यादों का मौसम आकर 'जख्मों के फूल' खिलाता है
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
वाह वंदना जी आपने बेहद ख़ूबसूरत कविता लिखा है! आपकी कविता की हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई! इस शानदार कविता के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
कभी किसी रोयें को छुआ होता
तो हर रोयें पर लिखा
अपना ही नाम पाया होता
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
कुछ मौन मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं
और कभी शब्दों को भी जुबान नही मिलती...kuch moun kitna kuch kah dete hai..or kuee shabad mil ke bhi baat nahi bna pate.....man sahlati huee kavita......
कभी मेरे मन को सहलाया होता
तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता...
haan kaash aisa hua hota...
नासूरों पर कभी अश्क टपकाया होता
तो अश्क को भी जलता पाया होता ...
BAHUT ACHHE SHER HAIN ... LAJAWAAB LIKHA HAI ... IS SHER NE SABSE JYAATA PRABHAAVIT KIYA ..
कभी मेरे मन को सहलाया होता
तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता
bahut hi nazuk ahsaas hain....unglion me dard ka simtna...btfl
मैम,
बहुत अच्छा कहा है :-
कभी मेरे मन को सहलाया होता
तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत अच्छा लिखा है, बधाई।
behtareen achcha laga padhkar
वाहवा..... सुंदर रचना..
ye kavita hamen behad pasand aayi ...ati sundar abhivyakti ...
कुछ मौन मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं
और कभी शब्दों को भी जुबान नही मिलती_ sunder such bayan kiya hai aapne vandnaji.mere blog per tashreef lane ka shukriya.
एक टिप्पणी भेजें