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शनिवार, 7 जुलाई 2018

क्रूरतम अट्टहास

न रास्ता था न मंज़िल
न साथी न साहिल
और
एक दिन दृश्य बदल गया
कछुआ अपने खोल में सिमट गया

शब्द हिचकियाँ लेकर रोते रहे
अब बेमानी था सब
खोखली थीं वहां भावनाएं, संवेदनाएं
एक शून्य आवृत्त हो कर रहा था नर्तन

ये था ज़िन्दगी का क्रूरतम अट्टहास

1 टिप्पणी:

'एकलव्य' ने कहा…

निमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/